Monday, 18 November 2013

जनता का संकल्प

राजनीतिक दल में
अपराधी
व्यभिचारी
बलात्कारी
माफिया
धनपति
बाहुबली
दबंग
अपनी हठ धर्मिता पर
उम्मीदवार बन कर जब भी जुटे
ऐसे धूमिल छवि वाले को
वोट नहीं देने का
जनता को लेना होगा संकल्प
कोई भी दूसरा नहीं है विकल्प
चुनाव में राजनीतिक दल को
आईना दिख जाएगा
अपराध की जाल से
राष्ट्र निकल पाएगा ।

युवा और वोट

युवाओं को पसंद है
दीपिका पादुकोण  के प्रेम प्रसंग
कैटरीना के  नए आशिक़
चिकेन कबाब
डी जे पर नाच
बीयर का स्वाद
वोट मांगने के लिए
क्यूँ करें फ़रियाद   
युवाओं को अच्छा लगता है
सोशल साइट्स पर करना चैट
अच्छी तरह समय कटता है इसमें बैठ
आज़ादी के बाद
युवा नेता वर्ग को पहचान गया है
वोट की राजनीति में
शतरंज का मोहरा हम नहीं होंगे
यह मान गया है ।
    

वोट की राजनीति

युवा
राजनीति
और वोट
चुनाव के माहौल में
इसी पर हो रहा है चोट
राजनीतिज्ञों की निगाहें
अठारह वर्ष के युवाओं की वोट पर
यही होंगे
हार जीत के निर्णायक
युवा वर्ग ही है इसके लायक
राजनीति में युवाओं की बुद्धिमत्ता पर विश्वास
ग्राफ बढ़ा है या
दिन दिन हो रहा है ह्रास
इस बार अवश्य सामने आएगा
अठारह वर्ष के युवाओं की राजनीति
वोट में अलग रंग दिखाएगा । 

वादें हैं वादों का क्या

चुनावी मैदान में नेता जी
वादों का पिटारा लेकर आए हैं
पाँच वर्षों के बाद
जनता को फिर भरमाए हैं
जनता जानती है
आज बड़े -बड़े वादों के सहारे ही
राजनीति होती है
नेता जी !
जनता की  उम्मीदों पर सिर्फ
आश्वासनों का मरहम नहीं लगाएं
आश्वासनों का कुछ प्रतिशत भी तो
वास्तविकता में लाएं
जनता चाहती है
हर बार की तरह
इस बार न गुनगुनाएं
कसमें वादें प्यार वफ़ा सब
वादें हैं वादों का क्या । 








चुनावी घोषणा पत्र

राजनीतिक दल
मतदाताओं  को लुभाने के लिए
पुनः चुनावी घोषणा पत्र बनाने में है व्यस्त
हर वार की तरह इस वार भी
जनता यह देखकर है त्रस्त
घोषणा पत्र मात्र छलावा होता है
इसके बारे में ना तो उम्मीदवारों को
और ना ही राजनीतिक दल के
कार्य - कर्ताओं को होता है पता
यह मात्र दिखावा होता है
इसमें मतदाताओं को
मुंगेरी लाल के हसीन सपने
दिखाए जाते हैं
समय आने पर रेत की ढ़ेर की तरह
बिखर जाते हैं
सत्ता हासिल होने के बाद
घोषणा पत्र हवा हो जाता है
मतदाता इसके फेर में पड़कर
हाथ मलता रह जाता है । 









कथनी और करनी

चुनाव घोषणा के बाद
नेताओं द्वारा
कश्मीर से धारा तीन सौ सत्तर हटाना
समान नागरिक संहिता लाना
बेरोजगार को रोजगार
अपराधों पर अंकुश
महिलाओं की  सुरक्षा
भय,भूख और भ्रष्टाचारमुक्त शासन का
वादा  किया जाता है
पर ना तो भूख खत्म हुई और ना ही भय
असुरक्षा बोध दिन-दिन
बढ़ता नजर आता है
 न्यायपूर्ण और समतावादी शासन तो दूर
कथनी और करनी की खाई
साफ-साफ दर्शाता है।
\   

Sunday, 17 November 2013

सोना नागपुर

कभी था सबकुछ
अनछुवा और  कुंवारा
यह प्राकृतिक स्थल
छोटानागपुर !
सोना नागपुर !!

प्रकृति और जीव जहां एकाकार हों
जहाँ एक ही सत्ता राज हो
वह होता है प्रेम
उसी प्रेम स्थल का नाम है
छोटानागपुर !
सोना नागपुर !!

यहाँ की जन जातियां
एक दूसरे में एकात्म
न कोई स्त्री न कोई पुरुष
किसी भी भेद-विभेद से परे
दोनों के बीच घटती
एक  साधारन सी शारीरिक क्रिया
अलौकिक लगती है
वह प्रेम का प्रतीक है
छोटानागपुर !
सोना नागपुर !!

सब कुछ रोमांचकारी
वह अनुभव जो अनुभूति तो किया जा सके
पर व्यक्त नहीं
सम्भवतः परानुभूति कहते हों शास्त्र
वह ही है
जीवन शैली की परिकाष्ठा
छोटानागपुर !
सोना नागपुर !!

इस अनोखे आकर्षक स्थल पर
स्वयं वनस्पति बन कर उगना
शहद का छत्ता बन कर
मनुष्य और भाल पर टपकना
तितली बन कर फूलों से बतियाना
रहस्यमय हैओ इस स्थान का साधारनपन
सच्चेपन की परिकाष्ठा के कारन
असाधारनता प्रदान करता
ही साकार करेगा
अभिव्यक्त करेगा
बतायेगा क्या है
छोटानागपुर !
सोना नागपुर!!


Saturday, 16 November 2013

सचिन...सचिन

सचिन सचिन 

क्रिकेट का बादशाह
क्रिकेट का गौरव
क्रिकेट का विजेता
क्रिकेट का प्रणेता
क्रिकेट खेल के
ड्रेस में  दस नम्बरी
अर्ध शतक बनाने में
शतक जमाने में
रानों की संख्या बढ़ाने में
मैन ऑफ़ द मैच में
मैन ऑफ़ द सीरीज में
अनेक में
सब में एक नम्बरी
क्रिकेट का शिखर पुरुष
क्रिकेट का सिकंदर
दो सउआ खेल खेलते समय
वानखड़े स्टेडियम के अंदर
अपने धरती की  माटी को
सर पर लगाकर
खेल कि महत्ता बता कर
१६ नवंबर २०१३ के दिन
सजल नयनों से वक्तव्य देकर
विदा हो गया
भारत रत्न से अलंकृत होने वाले
क्रिकेट खेल के धुरंधर
क्रिकेट के भगवान्
हमें सचिन पर है अभिमान
हर क्षण याद रहेगा
अश्रुपूरित नयनों के साथ
तुम्हारी अस्मरणीय विदाई
सचिन बधाई बधाई बधाई । ।

Thursday, 14 November 2013

शुभकामनायें सचिन

शुभकामनायें सचिन

खेल जीवन के इतिहास में
दो सौवां खेल खेलकर
चौहत्तर रन की बढ़त
अर्जून जैसा लक्ष्यधारी
हाथ में
बल्ला में अतुलित बल
क्रिकेट का दीवाना
नज़ाकत के साथ ताकत
चौबीस साल तक
खुशियों से झोली भरनेवाला
सचिन तेंदुलकर
अलविदा कहकर चला गया
खेल में आई यह रिक्तता
कैसे होगी पूर्णिता
पूरा भारत यह सोंचता है
खेल पर कौन रख पायेगा अंकुश
शुभकामनाएँ प्रेषित करता है
खेल प्रेमी
निरंकुश ।                                                                                                

सचिन तेंदुलकर सलाम

रजनी तेंदुलकर का लाड़ला
क्रिकेट का भगवान
मास्टर ब्लास्टर
खेल के मैदान का सिकन्दर
क्रिकेट खिलाडियों का प्रणेता
विश्व का चहेता
अपना दो सौवां खेल खेलकर
खेल के दिन
भारत बंद की स्थिति
सुखद आनंद की अनुभूति
क्रिकेट खेल में
भारत को शिखर तक पहुंचानेवाले
लोकप्रियता की परिकाष्ठा
खेल को अलविदा कहनेवाले
स्वर्णाक्षर में इतिहास गढ़नेवाले
सचिन तेंदुलकर
झारखण्ड हिन्दी साहित्य विचार मंच के
समस्त सदस्यों का
सलाम । 

Wednesday, 13 November 2013

अपने शहर की सड़क


नई चमचमाती काली सड़क पर
रात पैदल चलते हुए
अनायास याद आता है
अपने शहर का
लाल लाल मोरम से बना
 टेढ़ी मेढ़ी वह सड़क ।

दिन बीत गए
बरसों गुजर गए
उस समय की सड़क में
एक नई रवानगी थी
अपनापन था
भले ही वह आज की तरह
चिकनी फिसलनवाली नहीं थी
खुरदरी थी
पर प्रिय थी ।

समय के साथ साथ
वह काली हो गई
पसर गयी
और चौड़ी हो गयी
वर्षों पहले शहर के राहगीरों ने
बसाया था छोटा सा
अपना एक संसार
नुक्कड़ पर दोस्तों से मुलाकात
झोपड़ीनुमा दूकान पर
चाय पिलाती शुक्राइन
बाल बनाने वाला कलिया हजाम
कपडा धोकर लोहा करता रफ़ीक
दोने में धुसका चटनी खिलाती सोमरी
कैरम बोर्ड जमाते वीरू भाई
साइकिल मरम्मत करता भोला
बुक स्टाल वाले इंदु भाई
और भी न जाने कितने जाने अनजाने
सभी मिले-जुले  सुख दुःख में ।

अब दुनिया कितनी बदल गयी
अनजाना लग रहा है सुब कुछ
चौड़ी सड़क पर
कंक्रीट के बने
अट्टालिकाओं प्रतिष्ठानों
मॉलों के बाजारों ने
दूर कर दिया सभी को
एक दूसरे से
हम टूट गए
छूट गए
विकास के नाम पर । 

मै और मेरा शहर

मैं छोटा था
शहर भी छोटा था
इसलिए सुंदर था
शांत था
रमणीय था
और  अलग भी
दूसरे अन्य शहरों से

मैं बड़ा होगया
शहर भी बड़ा हो गया
फैल गया
मेरी तरह ख़त्म हो गयी
उसकी भी शांति

चंचलता शोखपन
रवानगी दीवानगी
मेरी नष्ट हो गयी
नष्ट हो गयी है
शहर की भी सुंदरता  
दफन हो गयी है
इसकी भी  इंसानियत
यही है हकीकत

याद आ गयी
बहुत पहले कही गयी बातें
छोटी चीज़ों  में छिपा रहता है
इस तरह उनका बड़प्पन
कि  बड़ी चीज़ें
बहुत छोटी हो जाती हैं
उनके सामने

बड़ा होना खल गया
मुझे भी और
अपने शहर रांची को भी ।


Sunday, 10 November 2013

गायिका रेश्मा

सितारों को सरहदें कभी
अलग कर सकती नहीं
उसकी धड़कनें हर दिल में सुनायी देती है
'लम्बी जुदाई ' गाने वाली मशहूर गायिका
हम सबसे जुदा हो गयी
पाकिस्तान के सबसे बड़े नागरिक सम्मान
सितारा-ए-इम्तियाज़ से नवाज़ी गयी
हिंदुस्तान के गीत प्रेमियों की चहेती
पकिस्तान की आंखों का तारा
जीवन और मृत्यु से लड़ती हुई
सदा के लिए चली गयी
बीकानेर राजस्थान के
बंजारा परिवार में जन्मी
रेश्मा की  रेशमी आवाज़
खामोश हो गयी
अब भी सुनायी पड़ती है
'दमादम मस्त कलंदर'
'हवो रब्बा ' नहीं लगदा दिल मेरा'
'सुन चरखे दी मिटटी मिटटी '
'मैं चोरी चोरी '
'अंखियों नू रहने दे'
'अँखियाँ दे कोल कोल '
सरहदी सीमाओं को मिटाने वाली
सबके दिलों में बसने वाली
मशहूर गायिका रेश्मा
अलविदा। …  । । 


 

श्रद्धांजलि - राजेंद्र यादव

'हंस' को अमृत रुपी दूध पिलाने वाला 
हिंदी साहित्य का चितेरा
सारे बंधनों को तोड़कर
सदा के लिए चला गया
 हिंदी साहित्याकाश के देदीप्यमान  नक्षत्रों में
स्थायी स्थान उसने बना लिया
हिंदी के वृक्ष पर
कांव कांव कर रहे कव्वुओ में से
प्रेमचंद के हंस को
पुनर्जीवित करने वाले की कमी को
कौन भर पायेगा
तुम तो चले गए
सदा के लिए मौन हो गए
परन्तु 'प्रेत बोलते हैं'
'सारा आकाश ' विद्यमान है
'अनदेखे अनजान पुल ' पर
'शह और सात ' प्रमुख उपन्यास संग
'एक इंच मुस्कान' दृष्टव्य है
हिंदी साहित्य में नयी कहानी शुरुआत करने वाले
महामनीषी !
साहित्यकार!!
राजेंद्र यादव !!!
श्रद्धा सुमन अर्पित
शत शत नमन ।  

संकल्प

दीपावली के शुभ  अवसर पर

पाटाखों के बदले

अपने मन के संकुचित भाव

किसी के प्रति द्वेष

काम क्रोध लोभ मोह

मन से हटाकर

मत्सर को जलाकर

स्नेह भाव के दीपक जलाएं

अज्ञान के अन्धकार को हटाएं

अंधियारी गलियों से निकलकर

उजास भरे आसमान की  ओर सफ़र कराएं

एक दीया 

इन्ही संकल्पों के साथ जलाएं ।
 

Tuesday, 5 November 2013

चित्रांश

चित्रगुप्त पूजा के शुभ अवसर पर 
सभी चित्रांश 
अपने मन के संकुचित भाव 
किसी के प्रति द्वेष 
मत्सर को जला कर 
कलम कागज दवात को 
पूजा के थाली में सजा कर  
भाई-द्विज के दिन बहिन के घर जाएं  
स्नेह भाव के दीपक जलाएं 
चित्रगुप्त के वंशज है हम 
अज्ञान के अन्धकार को हटाएं 
जीवन की अंधियारी गलियों से निकल कर 
उजास भरे आसमान की ओर सफर कराएं 
कलम उठा कर एक दीया 
इन्ही संकल्पो के साथ जलाएं 

ज्योति पर्व

ज्योति पर्व  यह मगलमय हो।
सृष्टि जगत पर सदा सदय हो।

संघर्षो की कठिन राह हो
या हो सघन अँधेरा ,
साहस सम्बल धीरज धर्म
हमसे कभी न क्षय हो।

कर्म के बल बढें सभी
उन्नति के पथ पर,
विघ्न बढाओं से जूझें
लेकिन सदा विजय हो।

दीप प्रज्वलित हो सर्वत्र
मिटे घोर अँधेरा,
हँसी खुशी हो हर प्राणी में
यह सदैव सुखमय हो।

रोग द्वेष भय मुक्त धरा हो
सुभ संचय हो ,
दुख दरिद्र विकार मिटे
इन सब का क्षय हो।

बुद्धि विवेक ज्ञान यश हो
नव ऊर्जा हो सिंचित,
ज्योति पर्व  पर धरा
समूची ज्योतिर्मय हो।

Saturday, 2 November 2013

दीया जलाएं

महंगाई की आंच ने
रखा नहीं काबिल
फिर भी दीया उठाएं
अपनापन के घी में
प्रेम कि बाती डुबोएं
दीया जलाएं।

खुशियों का त्यौहार
घोलेगा रिश्तों में मिठास
दिवाली की झोली में
खुशियाँ ही खुशियाँ हैं
मन के अंधियारे को मिटाएं
दीया जलाएं।

'इट ड्रिंक एंड मेरी'
त्यौहार नहीं है
अपनी संस्कृति को याद कर
आनंद और मौज मस्ती
अपने परिवार में लाएं
दीया जलाएं।

अमावस का अंधेरा छँटेगा
उजाले की बरसात होगी
रौशनी की जगमग खिलखिलाहट में
दीप की पंक्तियों में जुड़कर
दीया जलाएं।

रौशनी बिखेरती मोमबत्तियाँ
रंग-बिरंगे बल्बों की लड़ियाँ
घर दरवाजे पर सजे रंगोलियाँ
इन सब में भागीदारी निभाएं
दीया जलाएं।

लक्ष्मी प्राप्ति हेतु बुद्धि
गणेश जी प्रदान करें
धनवान बनने की राह में विघ्न बाधाएं
विघ्न विनायक हटाएं
लक्ष्मी गणेश की मूर्ति के समक्ष
श्रद्धा लगन के  साथ
दीया जलाएं।



दीपक

समय  के   साथ   बदले   हैं  दीपक।
नहले   पे   आज  दहले   हैं   दीपक।।
फैशन  युग  में    बन   गए  मॉडर्न।
दीपावली  में   ये  बिरले  हैं  दीपक।।
रौशनी पर फैली महंगाई की छाया।
फिरभी   भाता   पहले    है   दीपक।।
 बदलते समय  में ग्राहको के लिए।
अपना   स्वरुप   बदले   हैं   दीपक।।
साथी बनाकर कैंडिल  रंगीन बल्बें।
सबमे टिमटिमाता पहले है दीपक।।

Friday, 1 November 2013

ज्योतिपर्व की शुभकामनाएं

१.
संदेह के
अँधेरे को
हटाएं
रौशनी के इस त्यौहार में
एक दीप
विश्वास के साथ जलाएं
दीपावली की शुभकामनाएं।

२.
इस दिवाली में
किसी और के चेहरे पर
मुस्कान लाएं
उसकी जिन्दगी को रोशनी से भर दें
हँसें हँसाऐं
मुस्कराते हुए दीप जलाएं
दीपोत्सव की शुभकामनाएं।

Thursday, 31 October 2013

श्रद्धांजलि राजेन्द्र यादव

'हंस' को अमृत रूपी दूध पिलानेवाला 
हिंदी साहित्य का चितेरा 
सारे बंधनों को तोड़ कर 
सदा के लिए चला गया। 
हिंदी साहित्याकाश के देदीप्यमान  नक्षत्रो में 
स्थायी स्थान उसने बना लिया।
हिंदी के वृक्ष पर काँव काँव कर रहे कौवों में से
अब प्रेमचंद्र के 'हंस' को 
पुनर्जीवित करने वाले की कमी को कोन भर पाएगा।
तुम तो चले गए 
सदा के लिए मौन हो गए, परन्तु 
'प्रेत बोलते हैं'
'सारा आकाश' विद्यमान है 
'अनदेखे अनजान पुल' पर 
'शह और सात प्रमुख उपन्यास' संग 
'एक इंच मुस्कान' दृष्टव्य है। 
हिंदी साहित्य में
नयी कहानी की शुरुवात करनेवाले 
महामनीषी !
साहित्यकार !!
राजेंद्र यादव!!!
श्रद्धा-सुमन अर्पित 
शत् शत् नमन 

Sunday, 14 July 2013

माँ की तलाश


वह नन्हा बालक
माँ की थपकियाँ
ममत्व  भरी निगाहें
कोमल मृदु स्पर्श
आशा भरी लालसा  से
स्वयं को धन्य समझकर
धीरे-धीरे अपनी आँखें  मुदते
न जाने कब सो गया ।

रात को अचानक
एकाएक जागा
बीच  नींद में
और  पाया स्वयं को
अन्य लोगों के बीच सोते
निहारा उसने
चारों ओर
सोए  लोगों को
परिचित चिन्हों को
सभी  चेहरे  जाने-पहचाने
सभी चिन्ह प्रतिदिन देखते
किन्तु नहीं कर पाए  आश्वस्त
उस बालक को
पुनः सोने के लिए  ।

वह ढूँढने लगा
माँ को
फिर से आश्वस्त होकर
सोने के लिए
अंत में रोने लगा
माँ के साथ होने के खातिर
वह चाहता था
माँ का मृदुल स्पर्श
ममता भरी निगाहें
प्यार की दुलार की
मादक थपकियाँ
कौंध गया था
अनेक बार
उसके मन में
असुरक्षा का भाव ।

वह था बेचैन
न सो पाया
परिचित चेहरों  के बीच
माँ की तालाश में
माँ के आभाव में ।



























Thursday, 20 June 2013

प्रश्न



विश्व मे
सबसे खुश देश : कोलंबिया
सबसे शिक्षित  देश :कनाडा
सबसे अमीर देश : क़तर
सबसे शांत और साफ देश : आइसलैंड
सबसे अच्छा देश महिलाओं के लिए : न्यूजीलैंड
कहा जाता है
तब भारत किस श्रेणी में आता है ?
शिक्षक ने छात्रों से पूछा -

एक छात्र ने जवाब दिया
जब से भारत इंडिया बन गया है
यहाँ की खुशियाँ छिन गईं
सुन्दरता कास्मेटिक वस्तुओं के सेवन से धुमिल हुई
शिक्षा का स्तर नैतिकता में गिरा है तथा
कागजों पर बढ़ा है
विश्व में शांति का सन्देश देनेवाला भारत
हो गया अशांत
सोने की चिड़िया कहा जाने वाला देश अभाव-ग्रस्त
महिलाओं पर प्रतिदिन लगता है ग्रहण
जबसे पाश्चात्य सभ्यता अपनाया है
रिश्वतखोरी कालाबाजारी और भ्रष्टाचार में
सर्वोत्तम अंक पाया है
इसीमे नाम कमाया है ।


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस



मै :                       नवजात शिशु
नाम :                    कुछ भी नहीं
उम्र :                     दो महिना
जन्म स्थान :          अज्ञात
कद :                     साढ़े छप्पन सेंटीमीटर
शिक्षा :                   अक्षरहीन
शौक :                    माँ की गोद में रहना
इच्छा :                  माँ के स्तन का दूध पीना
काम :                    संघर्षमय जीवन जीना
माता पिता का नाम : पता नहीं
क्यों :                     वे  नहीं चाहते सार्वजनिक करना
                            माँ नहीं चाहती मातृत्व सुख
                            मै नहीं हूँ पाप का परिणाम
                             पिता सामने आने में असमर्थ
                             वे नहीं चाहते मेरा भरण पोषण
                             किसी अन्य ने मुझे अपनाया है
                             अपनी गोद में सुलाया है
                             वे  चाहते हैं मै दुनिया देखूँ
                             हवा मुझे छुवे
                             सूर्य की ऊष्मा मुझे रोग रहित करे
                             सृष्टी रचयिता मुझे बचाएं
                             चाँद से मेरा भी परिचय कराएँ
                             और क्या बताऊँ
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस झूठलाता है
समाज का खोखलापन सामने आता है
दबी हुई किलकारी किसे सुनाऊ
मेरी रोने की आवाज कितनी बार दुहराऊ
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस क्या यह सुन पाएगा
मेरे जैसे का गुण गाएगा
नहीं नहीं कभी नहीं ।
          

Monday, 17 June 2013

डिजिटल संस्कृति


अब नहीं रहा
महज डिलिवरी का माध्यम
सभी पढ़े लिखे इसमे जुटे हैं
इसकी संख्या अब हो गयी है अधिकतम

इसके प्रयोग में युवाओं में
मानसिक रोग तैयार किया है
एक डिजिटल वातावरण में
पूरी मानव मस्तिष्क को जकड़ लिया हैं

डिजिटल संस्कृति
इससे होती है दुर्गति
युवाओं के लिए
बेह्तर  दुनिया के बजाये
तकनीकी हावी की दुनिया में
धकेल रहा है
हर युवा इस तकनीक से खेल रहा है

मानवी दुनिया बन रहा है नर्क
मानव और मशीन के बीच
कम से कम हो रहा है फर्क
आज अधिकांश समय
हम स्क्रीन पर बिताते हैं
सुबह से शाम तक
हाई-फाई गतिविधियों में लगाते हैं

मानवी दुर्गुण
क्रोध घृणा द्वेष हिंसा की प्रवृति
सिखाता है नेट
इंटरनेट और नयी तकनीक के नशे में
डूबता है नेट
यह कोकिन अवशाध के चक्र को देता है इंधन
इससे  त्रस्त होगा जन-जन
इन्टरनेट हमें सनकी बना रहा है
तनाव ग्रस्त मानवी व्यवहार से हटा रहा है

भौतिक और काल्पनिक जगत का साथ
मानव और कंप्यूटर का साथ
पाकिट में की-बोर्ड और रेडियो ट्रांसमीटर
आँखों के सामने कंप्यूटर स्क्रीन
बिगाड़ता है दिन
हम बिस्तर से उठते ही
 ऑनलाइन हो जाते हैं
टेक्स्ट मेसेज के द्वारा
साइबोर्ग बनने पर अघाते हैं ।


आदमी और भ्रष्टाचार



आम आदमी और भ्रष्टाचार
इन दोनों में है गहरा नाता
पहले लोग नेताओं की तस्वीरें
दीवारों पर लगाते थे
उनके आदर्श और चरित्र
भूल नहीं पाते थे
अब बढ़ते भ्रष्टाचार
फैलते व्यभिचार
देखकर अब  जुलूसों में
पुतला दहन के काम आते हैं
दोनों एक दूसरे के
बन गए हैं पहचान
छूट गया है धर्म और ईमान
अधिकांश नेता और सरकारी अधिकारी
चमचे प्रवृतिवाले कर्मचारी
हो गए हैं भ्रष्ट
जनता झेलती है कष्ट
हमारा लोकत्रंत्र
बन गया है भ्रष्टतंत्र
इनसे निबटने के लिए
आम आदमी को सौपनी होगी
कुछ चाबियाँ
जिससे दूर होवे खामियाँ
कानून की समझ जागरुकता
शिक्षा नैतिकता
रक्षा हेतु अस्मिता
तय करनी होगी
दूर करनी होगी
ऊँच -नीच जात -पात
तब होगा देश का कल्याण
इनसे बचाओ भगवान । 

सावन की बूंदें



सावन की बूंदें झर जहर बरसे

रिमझिम बरसा बहुत सुहाती
झूला  झूल कर कजरी गाती
झर = झर झरती फुहार से
गोरी का देह सोने सा चमके।

काले   मेघा  घिर  घिर आए
बरस बरस कर तपिस बुझाए
घटा  देख  वह रोक  न  पाई
मन - मयूर भींग  कर बहके ।

नई   नवेली   राह    निहारे
कहाँ गए तुम प्रियतम  प्यारे
बहती  बयार  काम  जगाती
कैसे  रहूँ  मै  इससे  बचके ।

तीज त्यौहार सावन में आया
हरियाली  है  मन  को  भाया
हरे  रंग  की  घाघरा- चुनरी
हरी चुदियाँ खन खन खनके ।

पेड़   कटे   घन     दूर   हटे
बढ़ते  फ्लैटों  से  छटा  घटे
प्रकृति  रूठ  गई  है  हमसे
जन -मानस हैं भटके भटके ।
 

मचलते ख्वाब

मचलते ख्वाब 

वीणा के तार को छेड़ते 
बीना श्रीवास्तव के " आस का पंछी "
" यादों की लाठी " थामे 
" नया आयाम " गढ़ता है 
प्रश्न भी करता है 
" कहाँ गया "
"आँखों में पलता ख्वाब "
" हिंदुस्तानी का मन "
"परीक्षा " में उत्तीर्ण होता है 
और "वृक्षों से जीवन " का सीख देता हुआ 
"दया नहीं  स्वाभिमान दो "
यह कामना कर 
"प्यार की फसल " उगाने के लिए 
"आँखों में तैरते बादल" को 
"प्यार का"दामन" थामकर
"मुठ्ठी में चाँद" कसता है 
और तब" दस्तक" देता है 
ताकि "भरी रहे उमंगें"
इन्हें " संतोष" है 
"आँखों की चमक " दर्शाती है 
"अमावास" की काली रात में भी
"जरुरी है नया पथ "{
प्रेम का ..।   
 

Sunday, 16 June 2013

आमंत्रण



फैली पहाड़ियों की श्रृंखला से 
दूर दूर तक फैले जंगलों से 
हरे भरे पत्तों की हलचल से 
प्रवाहित होती नदियों की कल-कल से 
दसों दिशाओं से 
मन्द-मन्द बहती हवाओं से 
प्रतिदिन मिलता है 
आमंत्रण 

आमंत्रण 
पुरातन संस्कृति का 
मेल-जोल की संगति का 
जनजातियों की सभ्यता का 
आदिवाशियों की नम्रता का 
आतिथ्य सत्कार का 
मृदुल स्नेहिल प्यार का 
मांदर की थाप पर थिरकते पाँव का 
थके हारे वृछ की छाव का 
गोदना दगे चेहरे पर मुस्कान का 
छल कपट से दूर सम्मान का 
सदैव मिलता रहा है 
आमंत्रण 

साहित्यकारों को 
कलाकारों को 
भक्तों को 
संतो को 
सैलानियों को 
तीर्थ -यात्रियों को 
शोध कर्ताओं को 
युगों से झारखंडी 
जोहार करते हुए 
दे रहे हैं आगमन का 
आमंत्रण।


Saturday, 15 June 2013

माँ की अस्मिता

परिवर्तित हो गयी थी 
मेरी शिथिलता 
स्फूर्ती में 
उमंग में 
माँ का सिर पर फेरते ही हाथ 

झुर्रीदार चेहरा 
सिकुड़ी हुई आँखें 
मातृत्व  से भरा 
अमूल्य प्रसाद 
प्रेम से छलकता ह्रदय 
देता है हर पल 
मेरा साथ 

स्मृति के पन्ने 
फड़फडाने लगे 
दिखने लगी 
पुनः अवतरित हुई 
रामायण  बांचती 
भजन गाती 
प्रसाद खिलाती 
मेरी गलतियों को
करती माफ़ 

माँ से पाया था 
दूसरों के ह्रदय को 
शीतल करने का ग्यानामृत 
चेहरे में 
अपने  कई लोगों के 
मुस्कुराते चेहरे 
दिख रहे हैं साफ़ 
आज भी। 

अपनी यंत्रवत्त सी ज़िन्दगी में 
माँ से ही मैंने पाया है 
अपना अस्तित्व 
उनके स्वर 
अब भी हैं 
तितली झरने कोयल 
नदी की तरह 
और सब हैं माँ के साथ। 




महिला दिवस

 
मानव सभ्यता का उन्मेष
नारी का सहभागिनी बन कर प्रवेश
दोनों की सहकारिता से
समाज का निर्माण
विश्व में बना चुका है प्रमाण

नारी का विपुल व्यक्तित्व
दर्शाता है साहित्य
'यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता'
अंतर-राष्ट्रीय महिला दिवस
हर ओर मनाने का दे रहा है नेवता

सम्पूर्ण प्रकृति की सृष्टि में
यौवन का
सौंदर्य का
आकर्षण का
प्रसन्नता का
मादकता का
महिला दिवस इंगित करता है
सभी को देना है
नारी का सम्मान
तभी होगा
राज्य देश या विश्व का उत्थान । 

दरिद्दर खेदना



पूर्व में दादी का 
बाद में माँ का 
और अब पत्नी का
हंसुए से सूप बजाकर 
दरिद्दर खेदना 
ऐश्वर्य का 
अपनी जिन्दगी में 
प्रविष्ट कराने का 
उम्मीद भरा संकल्प है 
बुरी शक्तियों को भगाने का व्रत है 

वर्षों गुजर गए 
घर से दरिद्दर भगाते 
सूप बजाते 

दरिद्दर लम्बे अरसे से 
हमारे मन में घुसा है 
सभी में यह फंसा है 
सडकों पर कूड़ा बिखरा रहे 
हम चुप रहेंगे 
एम्बुलेंस में रोगी तड़पता रहे 
हम सड़क से नहीं हटँगे 
भ्रष्ट अपराधी छवि के नेताओं को 
घर में बैठ कोसेंगे 
उनके खिलाफ चले अभियान में
मुह बन्द रखेंगे 
मनचले लड़कियों पर फ़ब्तियाँ कसे 
हम चुप रहेंगे 
नागरिक बोध का संकल्प 
सभाओं में दुहराएंगे 
व्यक्तिगत जीवन में नहीं लाएंगे 

तब दरिद्दर तो रहेगा ही 
हम सभ्रान्त हैं 
आधुनिक सभी सयंत्र हैं घर में 
पर सूप नहीं है 
मन में साधुत्व स्वभाव भी नहीं है 
फिर क्यों दरिद्दर भगाएं 
घर की महिलाओं को कह देवें 
वह दरिद्दर खेदते समय 
न बुदबुदाए 
लक्ष्मी आए 
दरिद्दर जाए । 
  

नज़र

 


नज़र ने जब नज़र से नज़र को छिपाया 
छिपाकर नज़र को नज़र से मिलाया 
सुनकर मैं ने भी नज़रें चुराकर 
बगल में बैठी पड़ोसिन से नज़रें मिलाकर 
बातें करने की ठानी 
उसने भी औरों से नज़रें छिपाकर मुस्कराकर 
मेरी स्वीकारोक्ति मानी । 

तभी से जब भी 
कवि = सम्मेलन या मुशायरे में जाता हूँ 
श्रोताओं को नज़र के महत्त्व को बताता हूँ 
पत्र लिखना तो इतिहास बन गया 
मोबाइल रखने की चाहत 
बन गयी है आदत 
यह भले हे दूरियाँ  घटाता है 
दिल की बात एसएम्एस के जरिये दर्शाता है 
कभी न कभी 
कोई न कोई 
इस हकीकत को जान जाता है
इसी लिए पुरानी पद्धति में आईये 
नज़र से नज़र मिलाईये 
आँखों का बड़ा महत्त्व है 
अगर हम में आत्मविश्वास है 
दृढ़ता है 
स्वाभिमान है
तो आँखों से आँखें मिलाकर बात करते हो 
और गोपनीयता की बात हो तो 
औरों से आँखें चुरा कर बात करते हैं 

         हमारे व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब है आँखें 
         समुद्र से भी गहरा बिम्ब है आँखें
नज़रों में है 
चंचलता शोखी 
बेचैनी बेरुखी 
भय बेबसी
प्रेम नफरत 
सच झूठ 
नाराज़गी अलगाव बेवफाई  

        हम नज़र मिलाकर बातें करना 
        नज़रों को पढना सीखें 
        मानवीय संबंधों में 
        गज़ब का सुधर आएगा 
        नज़रों से नज़रों में प्यार भाएगा 

नज़र नज़रों की भाषा का सन्देश ही पड़ता है 
किसमे कितना है 
प्यार लगाव अलगाव या मनमुटाव 
देखकर बढ़ता है 

        बातें करे नज़र मिलाकर 
        नज़र को पढना सीखें 
        कौन है अपना कौन पराया 
        नज़रों को जानना सीखें । 



    

Thursday, 13 June 2013

कुर्सी का मोह



एवरेस्ट से लुढककर 
तराई में धराशायी हो गए 
पार्टी से निकलकर 
मान मनौवल के बाद 
फिर शीर्ष पद पर आ गए 
वाह रे जिन्दगी 
कुर्सी के मोह में 

उम्र अधिक हो गई 
राजनीति से निवृति नहीं लेंगे 
शारीरिक क्षमता क्षीण हो गई 
पद से इस्तीफा नहीं देंगे 
वाह रे जिन्दगी 
कुर्सी के मोह में

कौन कहता है 
इस्तीफा देना और पुनः स्वीकार करना 
अर्थहीन एवं बचकानी है
किसी के सही सलाह पर 
राजनीति में बने रहना नादानी है
वाह रे जिन्दगी
कुर्सी के मोह में

आज सभी नेताओं को
मान मनौवल भाती है
बूढ़े उम्र में भी रवानगी
कुर्सी पर बैठने से आती है
वाह रे जिन्दगी
कुर्सी के मोह में

युवा वर्ग एकजुट होकर
शोर मचाओ नारे लगाओ
राजनीति में
कुर्सी पर जमे रहने के लिए
अनुभव के साथ दाँव पेंच भी जरुरी है
वाह रे जिन्दगी
कुर्सी के मोह में । 

Wednesday, 12 June 2013

बाप रे बाप



क्रिकेट खेल में
खिलाड़ी द्वारा
एक ओभर में साठ लाख
वाह रे सटोरिया
वाह रे सट्टाबाज
बाप रे बाप

यह और बात है
वे फँस गए हैं आज
बीता हुवा कल फिर आता है
और कलंकित कर जाता है
कोई खेल ख़राब नहीं होता
परन्तु ऐसा न हो
क्रिकेट के खेल से
अपने जीवन का खेल ख़राब हो जाए

बड़े लोगों द्वारा प्रायोजित क्रिकेट खेल में
सटोरिये सट्टेबाज पर
बनाया जाए सख्त कानून
ख़त्म हो जाए धनार्जन का जुनून
नेताओं और उद्योगपतियों द्वारा
खेल को व्यवसाय न बनाया जाय
उनकी खेल में पनप रही पैठ को हटाया जाय

खेल शारीरिक क्षमता बढ़ाने
साहस निर्माण
बौद्धिक विकास
आत्म-संयम
सामाजिक समरसता के
संपोषण में सहायक होता है
खेल एकता भाईचारा स्वस्थ मनोरंजन
का सबक सिखाता है
खिलाडियों और दर्शकों के बीच
अपनापन बढ़ाता है

जनता समझ गयी
क्रिकेट खेल है पतंग
बड़े बड़े पूंजीपति हैं पतंगबाज़
वही हैं सटोरिए सट्टेबाज़
वे धनाढ्य हो गए
एक ही खेल में अपने आप 
वाह रे सटोरिया
वाह रे सट्टाबाज
बाप रे बाप

भर गया है ग्लास



टेबुल  पर नेताओं  के भर गया है  ग्लास
भ्रष्टाचार से  लबालब  भर गया  है ग्लास

बाहुबली  माफिया लुटेरों के  हाथ पड़कर
चियर्स के  बोल पर  टकरा  रहा है ग्लास

फिस चिकन  मटन के  साथ रोज रात में
व्हिस्की रम से  नशा  बढ़ा  रहा है ग्लास

भूना काजू बादाम पिस्ता रखा है मेज पर
नेताओं के होंठ से वहाँ सट  रहा है ग्लास

उत्तेजक  वस्त्रों  में थिरकती  हैं कॉल  गर्ल
मदभरी नशा  के लिए भरा  पड़ा है ग्लास

सत्य अहिंसा  प्रेम की जगह  नहीं यहाँ है
बलात्कार लूटमार से तड़प  रहा है ग्लास

वोट का  माहौल  ज़ल्द  फिर आ रहा   है
जनता तबाह होगी यह कह रहा है ग्लास 

   

Tuesday, 11 June 2013

नेताजी का प्रश्न



चुनावी माहौल में
लोकतंत्र के प्रतिनिधि
समय निकलकर
दूसरे दावेदारों से आँखे चुराकर
साहित्यकार के निवास पर
मन में उठे प्रश्न का
सही जवाब जानने के लिए आए

साहित्यकार जानता था
जब भी राजनेता
शब्दों के जाल में फँस जाता है
उसे सुलझाने हेतु
 साहित्यकार के पास आता है
राजनीति जब जब लडखडाती है
साहित्य ही उसे बचाता है

नेताजी ने  पूछा
वाद और गिरि का अर्थ बताइए
दोनों में क्या सम्बन्ध होता है
यह भी समझाइए

वाद
सिद्धान्त नियम कानून  सीमा दर्शाता है
गिरि सिद्धान्त के प्रणेता
नियम निर्धारक
क़ानून विशेषज्ञ और
सीमा निर्धारित करनेवाले की बनी हुई राह पर
अपनी कदम बढ़ाता है

वाद के दिन अब लद गए
वाद का सीधा ताल्लुक विचारों से होता है
हम विचारहीन समय में रह रहें हैं
अनायास बिना सोंचे बिचारे
अमानुषिक दुषित हवा में बह रहें हैं

वाद का समर्थक
कभी नहीं करता फ़रियाद
वाद की सीमओं
सिद्धान्तों वसूलों को
हरदम रखता है याद

नेताजी!
पहले गांधीवादी
लाखों की संख्या में मिल जाते थे
जो राष्ट्र के प्रति समर्पित नजर आते थे
लेकिन आज कल वे
उसी तरह अंतर्ध्यान होते जा रहे हैं
जैसे जमीन से गिद्ध
जंगलो से शेर
समुद्र से व्हेल

इस युग में
साम्यवाद
समाजवाद
कलाबाद
रुपवाद
दादावाद की तरह
चमचावाद की हवा
जबरदस्त चल रही है
जनता इन वादों के मकड़जाल में पल रही हैं

आज गिरि का जबरदस्त जमाना है
गिरि को ही सर्वोपरि मना हैं
नेतगिरी
भड़वागिरी
चमचागिरी
हर ओर चल रहा है
इसी में लोकतंत्र पल रहा है
आप भी अपने नाम से
----गिरि चला सकते हैं
वाद को छोड़िये
गिरि चलाइए
सांसद हैं हद तक बढ़ जाइए
यही लोकतंत्र के मजे हैं
मतदान के समय
भिन्न-भिन्न  प्रकार के गिरि से
बाजार आज सजे हैं
नेताजी बिना कहे चुपचाप  
चलते नजर आए
साहित्यकार उन्हें देखकर
धीरे से मुस्कुराये।





   








Sunday, 9 June 2013

बच्चा



बड़ों को देखकर बड़ा होने से डरता है बच्चा
छोटा भले है वह मगर बड़ों से  वह है सच्चा

झूट की धरातल पर खड़े हैं उम्रदराज लोग
बच्चा यह समझता है अभी भी है वो कच्चा

बड़े का घर में रहते हुए  आता अगर  कोई
नहीं हैं झूट सुन उसे लगता नहीं है अच्छा

यहाँ छोटे बड़े का अंतर तो  जानते सभी हैं
बड़े क्यों झूट बोलते नहीं समझ पता बच्चा

रहन-सहन बड़ों का दिन-दिन बदलते देख
अब बनावटी माहौल में पल रहा है  बच्चा  

एक दूजे के लिए



देह रचना की पारम्परिक परिभाषा
और मानकों के अनुरूप
शीरी
लैला
हीर
रूपमती
मंजरी
अनारकली
मस्तानी
वसंत सेना
सोहनी
क्लियोपेट्रा
हेलेना
जोसेफीन
ज्यूलियट
महान रूपवती नहीं थीं

फ़रहाद
मजनू
रांझा
बाज बहादूर
लोरिक
सलीम
बाजीराव
देवदास
चारुदत्त
महिवाल
एंटोनी
पेरिस
नेपोलियन
रोमियो
परम रूपवान
देहयष्टि के लिहाज से
बलिष्ठ पुरुष थे
ऐसी बात नहीं

सभी प्यार के रंग में रंगे थे
प्रेम में एक दूसरे के सगे थे
प्रेम की आन्तरिक बुनावट
उसे निखारती है
सौन्दर्य दिल के भीतर
रोशनी की किरण बनकर दमकता है
खुबसूरती त्वचा के सतह पर नहीं
इसकी गहराई में होता है
प्यार ह्रदय से होता है
प्रेमी इसीमे जीता है
कभी ठंढा नहीं होता है
निष्ठावान ह्रदय
गर्माहट लिए हमेशा
धड़कता  रहता है ह्रदय
प्रेमी के लिए
प्रेमिका के लिए
एक दूजे के लिए . .




Saturday, 8 June 2013

पत्नी

जीवन भर साथ निभाती है पत्नी
पतिश्री की पूरक कहलाती है पत्नी

पति समस्या में उलझ जाये जब भी
उसे झटपट सुलझाती है पत्नी

हर रिश्तों में उसकी झलक दिखती है
बेटी बहन माँ  में वही मिलती है पत्नी

कष्ट सहकर घर को बनाती है मंदिर
सुख का माहौल बस दिलाती है पत्नी

निरंकुश से पूछो पत्नी क्या है होती
गीत ग़ज़ल कविता के शब्दों में पत्नी


Thursday, 6 June 2013

बृद्ध पिता



नहीं रोक सका स्वयं को 
निकल पड़ा 
उमंग उल्लास के साथ 
जो सपने अपने मन में संजोये थे 
उसे साकार करने की लालसा में 
वह वृद्ध पिता । 

आग बरसाती हवा 
तपती धूप 
लू का प्रकोप 
गमछे से सर और मुँह लपेटे 
तर-तर बहता पसीना 
अंगार की तरह जलती जमीन 
हर तरफ सन्नाटा 
दूर तक कोई नहीं 
सुनसान सड़क 
पर उसके कदम गन्तव्य  तक 
पहुँचने के लिए गतिमान 
कहीं - कहीं पेड़ों की छांव तले 
कुछ देर सुस्ताता 
पुनः आगे बढ़ जाता 
वह वृद्ध पिता । 

न तो भूख थी न प्यास 
चिलचिलाती धूप में 
गर्मी से शुष्क गले 
जीभ के निकलते लार से तर करता 
झुर्रीदार चेहरे पर बहते पसीने को 
गमछे से पोंछता 
वात्सल्य रस से ओत प्रोत हो 
वर्षों बाद पुत्र से मिलने को आतुर 
बढ़ता ही जाता 
वह वृद्ध पिता 

अन्ततः पहुँच ही गया 
शहर के बीच 
चमचमाते उस आलीशान भवन में 
सुसज्जित कमरा 
ए सी ऑन 
सोफे पर धंसा वह युवक 
बियर भरे गिलास से 
स्नैक्स के साथ 
टी वी पर आँख गडाए 
एडल्ट मूवी में मग्न 
बेफिक्र उस युवक की नज़र 
ज्यों ही पिता पर पड़ी 
उसने धिक्कारा 
यह कैसी बेवकूफी 
इस वक़्त आपका अचानक आना 
ऐसी देहाती वेश भूषा में 
मेरे स्टेटस पर धब्बा लगाएगा 
इसका ख्याल किये बगैर धमक जाना 
क्या उचित है 
सुनकर हतप्रभ था 
किमकर्तव्यविमूढ था 
अपने पुत्र के समक्ष
वह वृद्ध पिता । 

बीस बरस विदेश में रहने के पश्चात 
शहर में रहने की खबर सुनकर 
नहीं रोक सका था स्वयं को 
अश्रु-कण आँखों से बह निकले 
मन धिक्कारने लगा 
पुत्र मोह को नहीं रोक पाने पर 
करने लगा पश्चाताप 
एक शब्द भी मुह से नहीं निकले 
अनायास लौट पड़े
उसके लड़खडाते कदम 
अपने घर की ओर 
दुखी होकर 
मन ही मन से करने लगा प्रश्न  
कष्ट सहकर जीवन भर पढ़ाने 
सुख सुविधा मुहैय्या कराने 
ऊँचे ओहदे का पद पाने पर 
क्यों खुश था मैं 
कोई प्रत्युतर नहीं सूझा 
क्या सोचा था क्या पाया 
वह वृद्ध पिता। 

Tuesday, 4 June 2013

वह लड़की



भरे-पूरे घर में
भीड़ में भी स्वयं को
अकेला महसूस करती थी
वह लड़की!

खिड़की के भीतर से
आसमान निहारती
सन्नाटे में डूबे
जेठ की तपती दुपहरी में
गर्म हवा को झेलती
अपने खालीपन को
प्रियतम के होने का
अहसास भरते हुए खड़ी थी
वह लड़की!

वह चाहती थी
प्रिय के साथ आवारा हवा की तरह
धरती की सौंधी सुगंध को
सुंघते हुए उड़ना
चिडियों की तरह फुदकना
फूट पड़े बरसो से शुखा झरना
खिल जाए मन की  कलियाँ  
यही तो चाहती थी
वह लड़की!

बंदिशे
रोका-टोकी
समाज के दिखावी खोखलेपन
परिवार की नकारात्मक प्रवृति
रुढ़िवादिता से टूट चुकी थी
वह लड़की!

प्रियतम से यादों में महफूज़
मुरझा गया है उसका
खिलता गुलाबी चेहरा
कल तक जो खड़ी थी
खिड़की पर
जग जाती थी आहटों से
निढाल होकर
विवश हो कर लेटी है
टूटने वाली ख़ामोशी की चादर ओढ़े
अब नहीं खेलना चाहती
सुनहरी धूप से
झुलस चुकी है किरणों से तपिश से
हार चुकी है
जिंदगी का आखिरी दांव
प्यार करने पर
वह लड़की!

Monday, 3 June 2013

प्रेमी और प्रेमिका



प्रेम में डूबा प्रेमी
प्रेमिका को देखने में आतुर
प्रेमिका अपने प्रेमी के प्रति
सबकुछ समर्पित करने को न्योछावर

प्रेम स्वयंम सौन्दर्य है
सौन्दर्य की परिकाष्ठा है
सौन्दर्य है एक अनुभूति
एक दृश्य
एक दृष्टि

प्रेमिका को देखते ही प्रेमी ने कहा -
तू खुशबू है
ख़ुदा की मुलाकात है
आशिक की सदा है
अल्लाह की रज़ा है
सारी कायनात है
प्रेमिका सुनकर मुस्कराई
प्रेमी के करीब आई और फरमाई
तू खुदा का अंदाज़ है
इश्क की दरगाह है
रूह की आवाज़ है
अज़ल का इकरार है
जोग की राह है
फानी हुस्न का नाज़ है
जग का इनकार है

दोनों का कथन साफ-साफ बताता है
यही तो प्रेम है
सांसो का सांस होना
धडकनों का धड़कन होना
दोनों में प्रेम का ही आगाज़ है
एक साज़ है तो दूसरा आवाज़ है

दोनों ने सौन्दर्य का
सबसे बिराट प्रतिमान गढ़ लिया
एक दूसरे को पढ़ लिया
उनके समक्ष सबकुछ रीत गया
उनका एहसास जीत गया .   

राजनीति

                                                                                                                                                                   

यह कहते हैं
' नीति का जहां होता है अंत
होती है वहीँ राजनीति की शुरुवात '
राजनीति के गुरु बृहस्पति ने कहा है
राजनीति का मूल मंत्र है
' किसी पर बिश्वास मत करो '
तब राजनेता को क्यों कोसते हैं
राजनेता का जनता के साथ प्रतिकूल ब्यवहार
मूल मंत्रो के आधार पर उचित है
राजनेताओं का जनता से सम्पर्क
मात्र वोट तक अनुचित है
कुछ नेताओं के स्वार्थ लिप्सा मनमानी के कारण
देश निरन्तर रसातल की ओर बढ़ रहा है
छल कपट द्रोह हिंसा का पारा
दिनोदिन चढ़ रहा है
हम जागें नेता को जगाएं
राष्ट्र कल्याण के लिए
नेता की अकर्मण्यता को भगाएं
देश-प्रेम सर्वोपरि है
राष्ट्रीयता में राजनीति
लाती है दुर्गति
यह महापुरुषों की वाणी है
इसे करना होगा साकार
हम नहीं हैं लाचार
उसमे अदभूत शक्ति निहित है
जो करते हैं देश से प्यार
मानव-धर्म को माने 
अपनी शक्ति पहचाने।  


   

Saturday, 1 June 2013

आई पी एल



देश के लाखों लोगों का 
खेल प्रेमियों का  
प्रिय मनोरंजक खेल 
आईपीएल 

खेल देखकर 
समझ जाते थे 
कौन जीतेगा 
वे न तो ज्योतिषी थे 
और न ही खेल विशेषज्ञ 

वर्षों पहले क्रिकेट खेल में 
खेल फिक्सिंग 
स्पॉट फिक्सिंग 
की चर्चा थी आई 
कोई ठोस निर्णय नहीं निकल पाया 
जनता ने उसे भुलाया
इस बार के आईपीएल में
पुनः सट्टेबाजी  की बात
खेल प्रेमियों को लगा आघात 
यह साफ हो गया 
क्रिकेट के सट्टेबाजी हमाम में सब नंगे हैं 

खेल ख़त्म हो गया 
सट्टेबाजी पर खुलकर हो रही है 
जोरदार बहस 
कहीं ये न कर दे 
खेल को ही तहस-नहस 
सट्टेबाज अब किसपर  सट्टा लगायेंगे 
आईपीएल में देश के लाखों अधेड़ 
'चीयर लीडर्स' को मटकते कैसे देख पायेंगे 
'नाइट पार्टीज' का क्या होगा 
बड़े लोग अधिक पैसेवाले लोग 
दीख रहें हैं परेशान 
आम जनता का टूट गया अरमान 

यह बात समझ में आ गई 
लाखों कमाने के लिए 
क्रिकेट खेल देखिए 
एक ही रात में
मालामाल हो जाइएगा 
अन्य खेलों में क्यों समय गंवाइएगा 
काफी खर्च कर 
अन्य काम छोड़कर 
मात्र क्रिकेट खेल देखिए 
रात भर जागकर आनंद उठाइए 
दिन में भले ही कार्यालय में ऊंघते रहिए 
आप भी सट्टा लगाइए 
खूब धन कमाइए 
खेल सौहार्द्य प्रेम और अपनापन का प्रतीक होता है 
क्रिकेट खेल में यह तो भूल ही जाइए .     




न जाने किसकी है बारी



दिनों दिन
बढ़ता जा रहा है
माओवादी
आतंकवाद का तांडव
भयभीत है मानव
छोटे-छोटे हमले से शुरू होकर
अब होने लगे हैं
बर्बर हमले
देश की आन्तरिक सुरक्षा को
सबसे बड़ा खतरा
वामपंथी अतिवाद
नक्सलवाद का गहराता साया
साफ  साफ नज़र आता है
कारण है
केंद्र तथा राज्यों में
राजनीतिक इक्षा शक्ति का अभाव
धीरे धीरे पसरता जा रहा है
नक्सली प्रभाव
आज सबसे बड़ी समस्या
आतंकवाद से भी बड़ी समस्या
नक्सली हिंसा है
बुरी तरह कुछ राज्य इसमे फसा है
इस विनाशकारी घड़ी में
सरकार
सुरक्षाबलों
खूफिया एजेंसियों
राजनीतिक कार्यकर्ताओं और आमजन
अपने कर्तव्यबोध को जानें
यही निर्णायक घड़ी है
यह मानें
अक्षम्य भयावह चूक से बचें
ठोस आर-पार की कारवाई हो
जो जनता को जँचे
सर के ऊपर से बहने लगा है पानी
उसे अपनी औकात दिखाएं
हिंसा की  फिर वारदात  न करने पाए
यह सोचना लाजिम है
कल थी छत्तीसगढ़ की  बारी
आने वाले दिन में
न जाने किस राज्य की है पारी .

Friday, 31 May 2013

चुनाव



चुनाव सर पैर है 
सब पार्टियाँ 
एक दुसरे पर 
कर रही हैं तीखे प्रहार 
अशोभनीय बयानबाज़ी 
अमानवीय करतूतों का 
हो रहा है प्रचार
चन्द फायदे के लिए किया जाएगा 
नए प्रत्याशी को शामिल 
पहले वे रहेंगे हिल-मिल 
फिर पार्टी की होगी फज़ीहत 
इतिहास लिखेगा हक़ीकत 
चुनाव से पहले  हर दल में 
तमाम पैराशूटर आते हैं 
टिकट भी हथियाते हैं 
जीत गए तो पार्टी गले लगाती हैं 
हार गए तो दुत्कारने से 
बाज़ नहीं आती हैं 
यह समय चिन्तन-मनन का हैं 
हार जीत या तत्कालिक फायदा 
पार्टी के सिद्धान्तों और नीतियों से 
सामंजस्य कैसे बिठा सकता हैं 
राजनीति को साफ़ कैसे रहने दे सकता है।

Wednesday, 29 May 2013

चुप्पी तोड़ो दोस्त



बताओ दोस्त 
आखिर क्या निकला 
उसके साथ घटे 
दुर्दिन शर्मनाक के क्षण का परिणाम 

हम प्रगति पर हैं 
बहुत जल्द पहुंचाए 
उस घटना को 
पूर्ण विवरण के साथ 
आकाशवाणी 
दूरदर्शन 
विभिन्न चैनलों के अलावा 
अनेक समाचार पत्रों में 
सुर्ख़ियों के साथ 
प्रसारित और प्रकाशित कर 

धरनाएं  
नारे 
पोस्टर 
जुलूस 
नारी के सवेदना को समेट कर 
निकाले गए प्रशासन द्वारा 
शांति बनाये रखने के लिए 
बरसी लाठियाँ 
फेंके गए 
छोड़े गए 
तेज पानी की बौछारें उनपर 

समझे न दोस्त 
क्या हुआ 
इन सबका परिणाम 
उस घटना के घटे 
दिन सप्ताह महीना वर्ष भी बीत गए 

क्या दोस्त 
फिर टाँय टाँय फिस्स ..
क्या अब भी लोग नहीं समझ पाए 
औरत एक निर्वाह है 
एक संस्कृति और सभ्यता है 
एक उपदेश है 
एक सदाचार है 
एक कुलीन दीपक है 
जो तिल तिल जलती है 
अंतिम साँस तक 
हादसों से टूटकर भी 
हौसले बुलन्द रखती है औरत 
आत्मविश्वास से लबरेज़ अपना जीवन 
अपने बलबूते पर जीती है औरत 

कभी कभी यह लगता है 
मेरे दोस्त 
ये बातें पुस्तकों में कैद हो गई हैं  
दूसरी पुस्तकें 
हवा में फडफडाई है 
जिसमे अंकित है 
नारी की अस्मिता पर लगे दाग 
बलात्कारियों की मनमानी 
हैवानियत को जकड़े 
कामुक स्थितियां 
बिगड़ती परिस्थितियां 
नारी की छटपटाती जिजीविषा 
जिसे सब देखते हैं 
सब पढ़ते हैं 
चाहकर भी नही बदल सकते 
घृणित घटनावों को 

तुम्हारे पास इसका हल है 
तो बताओ दोस्त 
चुप्पी तोड़ो दोस्त .   
 

Tuesday, 9 April 2013

सुनहरे भविष्य के लिए


मिट्टी के गिलावे से
जमा किये गए
टूटे-फूटे ईंट को जोड़कर
खड़ा किया उसने
अपना आशियाना
रहने के लिए लगाया उसने
कनस्तर टिन का छत
और लकड़ी का दरवाजा
बहुत मुश्किल से
वर्षों बाद जमा किया
कुछ सिक्के औ' रुपए
दुर्दिन जानलेवा बीमारी
आतंकित भूख से सामना करने के लिए
कभी-कभी गिनता रहा
उन संचित राशि को 
सारे खिड़कियाँ दरवाजे बंद कर।
खिड़कियाँ और दरवाजे तो बंद हैं
फिर भी खुले हैं
उसके मन में शंकाओं के द्वार
आ रहा है उनमे से झोंका
लूट और धोखे से छिन जाने का
चौबीसों घंटे
अभावों का ऑक्सीजन
लेता वह व्यक्ति
शायद यह नहीं जानता कि
अभावों के साथ साथ
वह जी रहा है
वर्तमान में सुनहरे भविष्य के लिए
जो सपने उसने
मन में संजोकर रखे हैं...



Monday, 8 April 2013

औरत



अँधेरी रात
सड़क के किनारे विशाल भवन
उस विशाल भवन के ठीक नीचे
पीछे तरफ
अँधेरे कोने में
झोपड़ीनुमा घर
मिट्टी के बने चूल्हे की आग से
रौशनी की काम लेती
एक औरत
गिन रही है
अपने बच्चों को खिलाने के लिए
सुबह की बनी हुई रोटियाँ

विशाल भवन के
एक सुसज्जित कमरे में
ए .सी ऑन कर
सारे दरवाजे खिड़कियाँ बंद कर
मध्यम नीली रौशनी में गिन रही है
एक औरत
अपने रखे नोट के गड्डियों को
निहारती है ख़रीदे गए आभूषण औ' जेवरात को
भविष्व में
सौन्दर्य प्रसाधन
आधुनिक वस्त्र
खरीदने के लिए
ताकि दिखा सके स्वयं को
मॉडर्न फैशनेबल एडवांस
भविष्व में होने वाली
किट्टी औ' कॉकटेल पार्टी में।

आदमी



चमचमाती दौड़ती कार
कार की पिछली सीट पर बैठा
सूट पहने चश्मे के भीतर से झांकता है
बन रही शानदार अपार्टमेंट को
एक आदमी।

वर्तमान में लाखों खर्च हुए
पर भविष्य बहुत लाभप्रद होगा
यह विश्वास है
यह भी विश्वास है उसे
वर्तमान में बीमारियाँ झेलता शरीर
हाई ब्लड प्रेशर
ड़ाइबिटिस
ओर्थोराइटिज
हार्ट अटैक से बचाव हेतु
खर्च करने पर भी
भविश्व को शायद ही सुखमय रखे

फटी शर्ट पुराना पैन्ट पहने
टुकडे-तुकडे खपरैल से छाया हुआ छत
मिट्टी के मकान में
प्रशन्नचित मुद्रा में गुज़र करता है
एक दूसरा आदमी

वर्तमान में कमा कर
अपने परिवार के साथ रुखा-सूखा खाकर
खुश है
चिन्तामुक्त है
कठिन परिश्रम करने के बाद भी
उसे किसी बीमारी की दवा का नाम पता नहीं 
थकान होने पर
शरीर टूटने पर
तुलसी का काढ़ा
हल्दी मिश्रित गरम दूध
अदरक गुड काली मिर्च को पीस कर
पकाया गया लेप
सेवन करने पर
चुस्त महसूस करता है
वह दूसरा आदमी।

वह रोग-ग्रसित नहीं है
उसका भविष्य उज्ज़वल  है
शांत मन से
भजन औ' भोजन के कारण।


Sunday, 7 April 2013

दुखद घड़ी


विदा की दुखद घडी में
अश्रुपूरित है नयन 

पुष्प जो तुझपर चढ़ाए
मुरझाकर सब सुख गए
बहती हवा में धीरे धीरे
सारे के सारे उड़ गाए
उसे डंस गया कुंवारापन

तुम तो जीना चाहती थी
अंत में निकले थे शब्द
तेरी आर्त्तनाद सुनकर
पूरा देश भी था स्तब्ध
निरर्थक गया तेरा नमन

धरी की धरी रह गई
दी गई शुभकामनाएं
तेरह दिनीं तक लड़ी थी
सहती रही थी यातनाएं
नारी अस्मिता का हुवा  हवन

कब्र पर बसी यह दिल्ली
फिर कहानी कह गई
हैवानियत दरिंदगी से
एक अबला मर गई
फिर क्यों न हिला था भुवन

इस देश में इस देश के
लोगों के द्वारा लुट गई
लाडो स्वयं को कैसे संभाले
जिंदगी ही रूठ गई
देख रो पड़ा धरती गगन

भूल गए हम नारी की
सृष्टि सेवा औ समर्पण
बनावटी लगाने लगा
शव पर चढ़ाए फूल अर्पण
वह करती रही कष्ट का सहन  






आजाद भारत का काला अध्याय



देश की राजधानी में
कुछ दरिन्दगो ने लिख डाला
सोलह दिसम्बर दो हजार बारह को
काला अध्याय

राजघानी की सड़क पर
सरपट दौड़ती सवारी बस
बस में नारी
दबोच ली गई
उन बहशियों द्वारा
बलात्कार की शिकार
गिड़गिड़ाई
चिल्लाई 
अपनी अस्मत को नहीं बचा पाई
अंततः चलती बस से
दी गई नीचे फेंक
मानवता का यह था अतिरेक
हो गई वह लहू-लुहान
देख कर स्तब्ध था हिन्दुस्तान
मेरा भारत महान
 
वह चाहती थी जीना
किसी ने नहीं सूनी उसकी पुकार
अंततः जीवन से गई हार
तेरह दिनों तक
कष्टप्रद जीवन जिया
काल ने उसे
अठारह दिसम्बर को छीन लिया
इस घटना से हर ओर मचा चित्कार
बलात्कारियों को फाँसी मिले
यही थी पुकार
इसी पर वहाँ रखा गया ध्यान
मेरा भारत महान

घटना के बिरोध में
शांति पूर्वक प्रदर्शन करने पर
क्यों बरसायी जाती हैं लाठियाँ 
क्यों फेका जाता उनपर
पानी का बौछार 
प्रदर्शनकारियो पर
क्यों होता ही प्रहार
नारियों की कब होगी सुरक्षा 

कब कहेगें
आज़ाद भारत है अच्छा
इस पर रखे ध्यान
मेरा भारत महान

हर शहर में
नगर में 
डगर में 
 प्रत्येक दिन घटती है घटनाएँ
खुलेआम छेड़खानियाँ 
सुनती हैं फब्तियाँ
होती है बलात्कार की शिकार
बलात्कारियों की भरमार
क्यों विवश ही सरकार
सियासती गलियारों से क्यों नहीं आता
अनुकूल बयान
मेरा भारत महान

जनता की है यह मांग
बलात्कारियों को फांसी पर झुला दी जाए 
बनाया जाए ऐसा कानून
बहसियों का खत्म हो जुनून
अच्छा होता
कठोर दंड का प्रावधान
उसे सबक सिखाता
उन्हें फांसी पर झुला दिया जाता
इसी पर टिका है
सबो का ध्यान
मेरा भारत महान

कविता की वापसी


कविता
महानगरों के
शोर शराबा
भीड़ भाड़
भागती दौड़ती
धरातल से ऊबकर
वापस लौट रही है
घर की ओर
वह चाहती है
अपने लोंगों के बीच रहना
बच्चों की किलकारी सुनना
बाग बगीचों  में देखना चाहती है
खिलते हुए फूल
पेड़ की टहनियों पर
चिड़ियों का चहकना
घर के मुंडेर पर कौवे का काँव काँव
दालान की चौकी  पर बैठे
बाबा के भजन गाने की आवाज
दुवार पर बंधे बैल की घंटी की ध्वनि
बछड़े का कुलाँचे भरकर
गाय के थन पर मुह मारना
 झुर्रीदार चेहरे  से अपनापन और स्नेह के साथ
दादी द्वारा लकड़ी की आग पर
मक्के की रोटी सेंककर
गरम गरम परोसना
मटमैली साडी में सिमटी
चूड़ियों की खनक के साथ
गरम दूध का गिलास लिए
पत्नी का बढ़ता हुआ हाथ
कविता चाहती है
शब्दों में भरना


चिट्ठी नारी के नाम


खुला लैपटॉप
की-बोर्ड पर दौड़ती उंगलियाँ 
माउस की हलकी सी हरकत
एक छालान्गनुमा डग भरने पर
एक आकृति उभरी

लावान्यमयी नारी को देख
आँखें ठहरी
उसके सामने संसार के सारे खजाने बेमोल
उसे नहीं सकता कोई तोल
देखते ही देखते
लिख डाली एक चिट्ठी और किया प्रेषित
उसी नारी के नाम
जिसे कुछ शब्द-शिल्पी
करना चाहते हैं बदनाम

पूर्वाग्रह से ग्रसित
अपने आप में भ्रमित
जो स्वयं को समझते हैं
साहित्यकारों के धरातल पर सर्वोपरि हरदम
वे नहीं कर पाते हज़म
ख्याति प्रशंसा
राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नारी का
जीवन के रंग से अछुते
एक सुस्त बेरंग बेढंग और नीरस
ज़िन्दगी जीने वाले
वे तथाकथित लोग
पाखी को पंख विहीन नहीं कर सकते
ईश्वर प्रदत है नारी में
महुआ की मादक सुगंध
चंचल नयन
आकर्षक सुगठित देंह
पायल की रुनझुन
चूड़ियों की कनक के साथ नारी ने कलम उठाई है
उपन्यास के पात्रों के माध्यम से
जीवन की विमांशा समझाई है
नारी-माँ बेटी बहु पत्नी और प्रेमिका
होने का कराती है एहसास
नारी ही पूरे रुग्ण
 समाज की रीढ़ की हड्डी को मजबूत कर
स्वस्थ समाज का करती है निर्माण
इसी से होता है जन्म-कल्याण
तुम ही  रख सकती हो
भटको पर अंकुश
तुम्हारा निरंकुश 











Saturday, 6 April 2013

कविता का तत्व

विश्वास तो था ही मुझे
अपनी कविता पर
आस्था ने उसकी जड़ें
और भी मजबूत कर दी हैं 
कविता अब सीमित नहीं है
साम्प्रदायिकता विरोध
सत्ता विरोध
महंगाई विरोध
बाज़ार विरोध जैसे चालू नुस्खों तक
कविता
अस्थानियता और लोक से जुड़कर
कविता लोक का
एक नया प्रतिरूप गढ़ती हुई
आगे बढ़ी है
कविता यह ताड़ गयी है
महाकवियों को कहाँ फुर्सत है
गाँव क़स्बा किसान को देखने की
कविता ने इस ओर अब
अपना रुख किया है 
गाँव से जुड़ी
संस्कृति की माटी से
जन्म लेना चाहती है कविता
गाँव के खेतों की माटी की गंध से
आने लगी है आवाज़
यहाँ पार्टियों के धर्मों के झंडे मत गाड़ो
माटी के भीतर छिपे दबी हुई तह से
तड़प के दर्द की  टीस की
कर्राहती हुई आवाज़ निकलने लगी है
भीतर अन्न का दाना है
पनपने दो उसे
वही कविता का तत्व है
मर्म है
अर्थ है
धर्म है!!!

Wednesday, 3 April 2013

कान्हा और राधा



 कान्हा और राधा          
पहले कान्हा एक था
 राधा एक थी
और गोपियाँ अनेक थी
आज भी कान्हा एक है
राधा अनेक है
और गोपियाँ
सब राधा बनने को  तैयार
राधा बनने पर होंती है
आधुनिक कान्हा द्वारा तार तार
तभी तो
होली के अवसर पर
रंग खेलने के बहाने
घृणा पूर्ण हरकतें
नशीली वस्तुवों का प्रयोग
घूरती शरारती आंखे
आधुनिक वस्त्र
कामुक स्थिति जगाने में है सक्षम
कोई किसी से नहीं है कम
अपनापन
सौहार्द्य
प्रेम
कटता नज़र आता है
होली त्यौहार
परम्परावों से
टूटता और बिखरता नज़र अता है  

पाकिस्तान से सबंध


पाकिस्तान से  सारे सबंध
तोड़ लिया जाए
साफ़ सुथरा एक नया अध्याय
जोड़ दिया जाए 

वह है गैरजिम्मेदार
वह नही बनेगा वफ़ादार
किसी भी प्रकार का बातचित
उससे कर देवें बंद
यही भारत के लिए होगा अकलमंद

विश्व स्तर पर पाक को घेरें 
किसी भी स्थिति में
कभी न छोडें
भारत उन्ही देशों से रखे
व्यापारिक राजनीतिक  संबंध
जो ना  हो पाक का सहयोगी
तभी जनता की ख्वाईश  होगी पूरी

पकिस्तान के गुनाहों में
जो किसी प्रकार से हो सामिल
उससे रखें दूरी
चाहे कितनी भी हो मज़बूरी
उसके लिए बाजार कभी न खोले
वह भले येन केन प्रकारेन बोले 

Sunday, 31 March 2013

मस्ती लेकर होली आयी

 

अंगिया के टूटे सब बंध
मादक देंह यह लगे छंद
मन अब गाने लगा मल्हार
रंग की झड़ने लगी फूहार
फागुन की बहती बयार ने
पोर पोर में आग लगायी।
मस्ती लेकर होली आयी।।

बिंदिया फ़ैल गयी भाल पर
गुलाबी अबीर बिखरा गाल पर
खनक खनक कर कंगना बोले
बिखर बिखर कर गजरा डोले
अंग अंग रंग से भीगी
पूरी फिजा में मस्ती छाई।
मस्ती लेकर होली आयी।।

मादक पवन आग लगाये
जंगल झाड़ी बहुत सुहाए
खिल गया पलाश लाल लाल
प्रकृति की छटा हुई निहाल
पुरवइया बहती बहती धीरे धीरे
प्रेम प्रीत की आस जगाई।
मस्ती लेकर होली आयी।।

गेंहू की बालियाँ लगीं फूलाने
चने लगे यौवन पर आने हर
हरे खेत में सरसो फूली
आम्र मंजरी में सुध बुध भूला
नयी कोपलें फूट पड़ी हैं
सृष्टि रागिनी ने तान लगायी।
मस्ती लेकर होली आयी।।

कोयल कूक कूक गीत गाती
सब चिड़ियाँ मिल गीत सुनाते
फुदक फुदक कर हौले हौले
तोता मैना  डाल पर डोले
पंख पसार मोर नांच कर
मयूरी की पुकार लगायी।
मस्ती ले कर होली आयी।।


 

होली का प्रभाव

होली का प्रभाव 


आओ मस्ती में रंग लगाएं
भूल सभी भेद-भाव
कभी नहीं दिख पाए
आपस में अलगाव।
होली का यही प्रभाव।।

तन रंगे और मन रंगे
चाहत की बस आस जगे
लाल गुलाल गाल पर भाए
भूल कर बैरी भाव।
होली का यही प्रभाव।।

रंग रंगीला हर घर हो
मस्ती में डूबे नारी नर हो
ओसारे से गाँव तक फैली
प्रेम रंग की छाँव।
होली का यही प्रभाव।।

आग प्रकृति की छटा निराली
सातो रंग सजाने वाली
सात सुरों में मिल कर गाते
फगुआ गीत घर गाँव।
होली का यही प्रभाव।।

रंगों में घुली सोंधी गंध
माटी कहती कविता औ' छंद
हरी भरी टहनी पे बैठे
कोयल भरती है घाव।
होली का यही प्रभाव।।

ऋतुराज आज घर घर आए
पलाश फूल हैं वन में छाए
मन मयूर अब नाच नाच कर
दिखा रहा है भाव।
होली का यही प्रभाव।।

डूब कर रंग में अस्त व्यस्त
भांग घोंट हुए अलमस्त
लिए रंग पिचकारी में
हर कान्हा ढूंढे राधा सा भाव।

होली का यही प्रभाव।।

Saturday, 30 March 2013

मस्तीवाली आई होली

मस्तीवाली  आई  होली 


पग पग में हुड्दंग  मचावे
रंग  दिखावे  भाँग की  गोली
बात  बात  में हँसी ठिठोली     
भीगा  आंचल  भीगी  चोली
रस  में  डूबी  फाग  की बोली
मस्तीवाली आई  होली।

सुन्दर  गोरी  साँवरी  बाला
तान  रंगोली  क्या  लहराई
फागुन  की  बहती बयार में
नाचने लगी घर  अंगनाई
फाग  की ताल पे नाचे टोली
मस्तीवाली आई होली।  

फागुन मास तो आ ही गया
आओ गले हम मिल जाए
इस होली में राष्ट्र प्रेम का
प्रेम तराना झूम कर गाँए
माँ भारत की पुण्य भूमि पर
झगड़ा -वगड़ा मारो गोली
मस्तीवाली आई होली।
 

होली में कॉम्पटिशन

होली में कॉम्पटिशन 


मल्लिका शेरावत

लोगो के लिए आफ़त

राखी सावंत का आना

सबकी धड़कने बढ़ जाना

बूढ़े भी देखने के लिए तरसते हैं

फब्तियाँ एक दूसरे पर कसते हैं

दोनो होली मिलन में आई हैं

महफ़िल में आग लगाई हैं

एक तोप हैं, दूसरी बम हैं

कोई किसी से नहीं कम हैं

आज दोनो की होगी कॉम्पटिशन

आप संभाले अपनी पॉजिशन

एक मात्र तौलिया पहन आएगी

दूसरी रुमाल में दिख पाएगी

सभी इस दृश्य का कर रहे थे इंतजार

अचानक बिजली गुल होने के कारण दिल हुआ तार तार

सभी ने अँधेरे में रंग लगाया

इस वर्ष होली का भरपूर लाभ उठाया। 

Friday, 29 March 2013

होली महान है

होली महान है

कल ही रात
मेरे नन्हे ने
मेरे लल्ले ने
मेरे बेटे ने
मुझसे पूछी यह बात
होली में सभी लगाते हैं
तरह तर के रंग
चेहरा हो जाता है बदरंग
फिर भी क्यूँ झलकती है
सुबके चेहरे पर उमंग ?
बेटे ! यह भारतीय संस्कृति की छाप है
सब में रही व्याप्त है
वसंत के आगमन पर विविध रंग
पलाश के फूल लाल
कनैले का पीला
गुलाब की गुलाबी
वनमंजरी  का नीला
फुलवारी में खिलता सदा बहार सफ़ेद
नवरंग में सजा अभेद
धरा पर इधर से उधर तन जाता है
दूब घांस का हरा गलीचा बन जाता है
पत्तों पर पसरी ओस
मोती बन मुस्काती है
कहीं चिड़िया चहचहती है
कोयल कूक सुनाती है
भ्रमर गूंजते हुए नज़र आते हैं
पक्षी गण कलरव कर अघाते हैं
इसे ही ऋषि मुनियों ने जाना है
प्रकृति की छटा को पहचाना  है
 उसी से  सीख कर
मस्त हो जाता है अंग
चेहरे पर रहती है उमंग
बेटा सुनते सुनते सो गया
मैं एक अलग ही दुनिया में खो गया

याद कर बीते कल का बवाल
स्वयं से करने लगा सवाल
हमारे देश में
अलग अलग प्रदेश में
आतंक के नाम पर
अबीर के बदले
 रेल की पटरी किसने उड़वाई ?
हमारे रक्षकों ने अपनी जान
अपने ही भाइयों से क्यों  गावाई?
पिचकारी में रंग के बदले
बन्दूक पिस्तौल से क्यूँ गोली आई ?
क्या यह होली कर सकेगा भरपाई ?
अगर बेटा यही सवाल लेकर आता
तो मैं उसे कैसे समझाता ?
ऐसे पावन पर्व को  राजनीतिक पंडों से बचाइए
 ईश्वर की हम अनुपम वरदान हैं
वसंत ऋतू स्वयं इसका प्रमाण है
होली महान है
धर्म जाति वर्ग भूलकर
मानव धर्म में आईये
परोपकार का रंग
अपनापन की अबीर
राष्ट्रीय त्यौहार में लगाइए
ऐसे होली मनाईये !!!!



 

होली आई है

होली आई है


कोयल कूंके अमराई में 
 
मन नहीं लगे तन्हाई में
 
राधा नाचे  अंगनाई  में 
 
तब समझो होली आई है 
 
 
जब आँख शर्म से झुक जाए 
 
कुछ कहती कहती रुक  जाए 
 
साली जीजा पर लुट जाये
 
तब समझो होली आई है 
 
 
अल्हड़  सी भरी जवानी हो 
 
जब प्रियतम की मनमानी हो 
 
हर एक अदा मस्तानी हो 
 
तब समझो होली आई है 
 
 
गालों पर लाली छा जाये 
 
आँखों का काजल भा जाये 
 
केशों में उंगली समा जाये 
 
तब समझो होली आई है 
 
 
अंग अंग जब फड़क उठे 
 
बिना पिए मन तड़क उठे 
 
रह रह कर जी चहक उठे
 
तब समझो होली आई है ...
 
 
 
 
 
 

कंप्यूटरी प्रेम - होली के रंग में

  कंप्यूटरी प्रेम - होली के रंग में
 
होली के शुभ अवसर पर

प्रेमी मुस्कुराता हुआ

मन  ही मन गुनगुनाता हुआ

रंग से पिचकारी भरे

प्रेमिका को आते देख

अपने प्रेम का इज़हार किया

 तुम मेरी हो

सिर्फ मेरी हो

होली के शुभ अवसर पर मेरे जीवन में

ई- मेल की तरह  आई हो

और अब रंग से ओत प्रोत हो

इन्टरनेट की तरह छाई हो

मेरे दिल की फ्लॉपी में

विशेष मैटर की तरह समाई हो

बिना रंग लगाए न चैन है न आराम

तुम्हे रंग लगाये बिना नहीं कर पाउँगा कोई काम

मेरे मन  की मेमोरी में

किसी और का नाम नहीं है

और आजकल इस शरीर का की-बोर्ड

कर रहा कोई काम नहीं है

मेरी आँखों के मॉनिटर पर

सिर्फ तुम्हारी ही तस्वीर दिखाई देती है

जो हटती नहीं है

मेरे जीवन की वेबसाइट

डब्लू डब्लू डब्लू होली प्यार डॉट कौम

के वगैर खुलती नहीं है

डरता हूँ इस वर्ष की होली में

मेरे प्यार के रंग में

किसी वायरस का असर न हो

तुम्हारे दिल में किसी और का बसर न हो

सावधान रहना

रंग लगाना

पर किसी कनेक्शन की तरह

मत बदल जाना

मैं तो सॉफ्टवेर हूँ

तुम हार्डवेयर में मत ढल जाना

मेरे प्यार के रंग में रंग जाना

जम  कर होली मानना ...
 

Thursday, 28 March 2013

नारी की अस्मिता

नारी की अस्मिता 


राजधानी में घटी
बलात्कार की छौंक से
देश क सभी शहरों से
खांसने की आवाज
दूर दूर तक जाती है
जोरो का शोर
नारेबजियाँ
'बलात्कारी को फांसी दो'
हर एक और से आती है।

दिन बीतें
घाव अभी भरे भी नहीं
दिखने लगे दुष्परिणाम
कसने की छोड़
ढीली पड़  गई लगाम।

समाचार की सुर्खिओं में
प्रत्येक चैनल पर
नारियों के साथ छेड़खानी
बलात्कार की घटनाएँ
प्राथमिकता देकर दिखाई जाती है
नारियों की अस्मिता खतरे में
सुनाई जाती है।

क्या इसी से होगा समाधान
कहाँ निकला प्रावधान
मनोवृति बदले
संस्कार जगाएँ
व्यर्थ न चिल्लाएँ
नारी को उपहास का पात्र न बनाएँ।

 

Monday, 25 March 2013

आजादी के बाद

आजादी के बाद 


 मेरे मित्र ने मुझसे पूछा
आजादी के बाद
अपने राष्ट्र में क्या मिला है
आजादी के बाद
मिली है हमें
आदर्श रहित  शिक्षा प्रणाली
बेरोजगारी की सौगात
तबाह होती खेती
उद्योग में छंटनी
भाई- भतीजावाद 
टिड्डियों की तरह फैलता 
जातिवाद
नीचे से उपर तक भ्रष्टाचार
दिन प्रतिदिन बढती महँगाई
चतुर्दिक असुरक्षा
आतंकवादियों का कहर
बलात्कार की भरमार
निकम्मी सरकार
बिखरता गणतंत्र
दबंगों लूटेरों पागलों के हांथो में तंत्र
आजादी शब्द कहना झुठलाता है
शहीदों की बलिदानी
स्वतंत्रता सेनानियों की भागीदारी
आज टूटता बिखरता
नजर आता है।  

प्रतिरोध की जमीन

प्रतिरोध की जमीन 


कविता में जुड़ गए हैं
कई नए अध्याय
छंद के बंधन खुलने पर
आरम्भ हुआ
कविता का एक नया प्रस्थान
विचार के बंधन खुलने पर
कविता का हुआ हैं
एक नया प्रस्थान
जनता के संघर्ष में
सच्चाई का मेल होने पर
जन्मती है कविता
कविता असीम तक फ़ैल गयी है
कविताओं की प्रभा से
कविता का आनन  मंडित है
कविता की
बहुरंगी इन्द्रधनुषी छठा देखकर
कवि तैयार कर रहे हैं
प्रतिरोध की जमीन
कविता के जरिए
एक सार्थक हस्तछेप है
पूंजी की भूमंडलीकरण
नव उदारवाद और निजीकरण
के दौर में
कवि का .   

Sunday, 24 March 2013

खुशियाँ बटोरें

खुशियाँ बटोरें 


 
बहुत मिले 
बीते वर्ष में शब्द के चिटोरे 
नव वर्ष में शब्द के गुंथे 
कविता के नांव पर चढ़कर 
खुशियाँ बटोरें 
 
आन्तरिक परिपूर्णता के लिए 
प्रयासरत मानवीय जीवन में 
खुशियों के खजाने खोजें 
हमारे अस्तित्व की गुत्थी सुलझेगी
अमनुर्षिक प्रवृतियों को छोडें 
नव वर्ष में खुशियाँ बटोरें

परस्पर व्यवहार में 
विचलित करने वाले
सायास या अनायास निकले शब्द 
सम्प्रेषण की अयोग्यता को
दुःख के चिन्ह न मान कर 
संबंधो के पिटारे में सहेज कर रखें  
भविष्य में स्नेह की धारा फूटेगी 
शब्दों के शिल्पकार से नाता न तोड़े 
खुशियाँ बटोरें
 
कविता कहानी उपन्यास को 
शब्दों के मकडजाल के रूप में न देखकर 
एक खास किस्म के 
सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक प्रवृतियों के 
बीज समय के रूप में देखें 
साहित्यिक काल खण्ड समझकर
इसे न छोड़े  
खुशियाँ बटोरें.

 

Saturday, 23 March 2013

नव वर्ष में जय हो

 नव वर्ष में जय हो 

 
 
दीपशिखा से
 
देदीप्यमान
  
और अब
 
दिव्य मशाल बनते जा रहे हैं हम 
 
एक लम्बा अर्सा  गुजर गया 
 
हमारे कर्मो का गंगा रूपी जल 
 
अपरिमित मात्र में 
 
जन कल्याण करता हुआ 
 
सागर  में जा मिला हैं 
 
सद्चार से जुडी जीवात्मा का 
 
न आदि हैं न अंत 
 
नव वर्ष में प्रभु से हैं प्रार्थना 
 
सृष्टी के प्रत्येक श्रेयस्कर काम में रहें कर्ताव्यवान 
 
राष्ट्रीयता और संस्कार 
 
सर्वदा रहे विधमान 
 
सम्पादित  कार्य 
 
नित्य नूतन अमरत्व की  सृष्टी करती रहे
 
आपके हर दुःख  दर्द  कष्ट  क्लेश को हटाकर 
 
सुख  समृद्धि  हर्ष उत्कर्ष
 
जीवन में भरती  रहे 
 
आपकी जय हो
 
नव वर्ष मंगलमय हो .

शुभ कामनाएं


मानव में  पनपती यौन पशुता

फैलती  चतुर्दिक  मडराती कामुक  दृष्टि

नारियों  की  छटपटाती जीजिविषा

 घटती विभत्स घटनाएं

रोकने हेतु

कलम उठाएं

होली त्यौहार के नव वर्ष में नया  आवाम जगायें

उन्हें कभी न छोडें

जम  कर मरोडें

तब अबीर गुलाल लगायें

तभी साकार होगी नव वर्ष की शुभकामनाएं