Sunday, 10 November 2013

श्रद्धांजलि - राजेंद्र यादव

'हंस' को अमृत रुपी दूध पिलाने वाला 
हिंदी साहित्य का चितेरा
सारे बंधनों को तोड़कर
सदा के लिए चला गया
 हिंदी साहित्याकाश के देदीप्यमान  नक्षत्रों में
स्थायी स्थान उसने बना लिया
हिंदी के वृक्ष पर
कांव कांव कर रहे कव्वुओ में से
प्रेमचंद के हंस को
पुनर्जीवित करने वाले की कमी को
कौन भर पायेगा
तुम तो चले गए
सदा के लिए मौन हो गए
परन्तु 'प्रेत बोलते हैं'
'सारा आकाश ' विद्यमान है
'अनदेखे अनजान पुल ' पर
'शह और सात ' प्रमुख उपन्यास संग
'एक इंच मुस्कान' दृष्टव्य है
हिंदी साहित्य में नयी कहानी शुरुआत करने वाले
महामनीषी !
साहित्यकार!!
राजेंद्र यादव !!!
श्रद्धा सुमन अर्पित
शत शत नमन ।  

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