Monday 18 November 2013

वादें हैं वादों का क्या

चुनावी मैदान में नेता जी
वादों का पिटारा लेकर आए हैं
पाँच वर्षों के बाद
जनता को फिर भरमाए हैं
जनता जानती है
आज बड़े -बड़े वादों के सहारे ही
राजनीति होती है
नेता जी !
जनता की  उम्मीदों पर सिर्फ
आश्वासनों का मरहम नहीं लगाएं
आश्वासनों का कुछ प्रतिशत भी तो
वास्तविकता में लाएं
जनता चाहती है
हर बार की तरह
इस बार न गुनगुनाएं
कसमें वादें प्यार वफ़ा सब
वादें हैं वादों का क्या । 








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