Saturday, 15 June 2013

माँ की अस्मिता

परिवर्तित हो गयी थी 
मेरी शिथिलता 
स्फूर्ती में 
उमंग में 
माँ का सिर पर फेरते ही हाथ 

झुर्रीदार चेहरा 
सिकुड़ी हुई आँखें 
मातृत्व  से भरा 
अमूल्य प्रसाद 
प्रेम से छलकता ह्रदय 
देता है हर पल 
मेरा साथ 

स्मृति के पन्ने 
फड़फडाने लगे 
दिखने लगी 
पुनः अवतरित हुई 
रामायण  बांचती 
भजन गाती 
प्रसाद खिलाती 
मेरी गलतियों को
करती माफ़ 

माँ से पाया था 
दूसरों के ह्रदय को 
शीतल करने का ग्यानामृत 
चेहरे में 
अपने  कई लोगों के 
मुस्कुराते चेहरे 
दिख रहे हैं साफ़ 
आज भी। 

अपनी यंत्रवत्त सी ज़िन्दगी में 
माँ से ही मैंने पाया है 
अपना अस्तित्व 
उनके स्वर 
अब भी हैं 
तितली झरने कोयल 
नदी की तरह 
और सब हैं माँ के साथ। 




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