फैली पहाड़ियों की श्रृंखला से
दूर दूर तक फैले जंगलों से
हरे भरे पत्तों की हलचल से
प्रवाहित होती नदियों की कल-कल से
दसों दिशाओं से
मन्द-मन्द बहती हवाओं से
प्रतिदिन मिलता है
आमंत्रण
आमंत्रण
पुरातन संस्कृति का
मेल-जोल की संगति का
जनजातियों की सभ्यता का
आदिवाशियों की नम्रता का
आतिथ्य सत्कार का
मृदुल स्नेहिल प्यार का
मांदर की थाप पर थिरकते पाँव का
थके हारे वृछ की छाव का
गोदना दगे चेहरे पर मुस्कान का
छल कपट से दूर सम्मान का
सदैव मिलता रहा है
आमंत्रण
साहित्यकारों को
कलाकारों को
भक्तों को
संतो को
सैलानियों को
तीर्थ -यात्रियों को
शोध कर्ताओं को
युगों से झारखंडी
जोहार करते हुए
दे रहे हैं आगमन का
आमंत्रण।
No comments:
Post a Comment