Saturday, 15 June 2013

दरिद्दर खेदना



पूर्व में दादी का 
बाद में माँ का 
और अब पत्नी का
हंसुए से सूप बजाकर 
दरिद्दर खेदना 
ऐश्वर्य का 
अपनी जिन्दगी में 
प्रविष्ट कराने का 
उम्मीद भरा संकल्प है 
बुरी शक्तियों को भगाने का व्रत है 

वर्षों गुजर गए 
घर से दरिद्दर भगाते 
सूप बजाते 

दरिद्दर लम्बे अरसे से 
हमारे मन में घुसा है 
सभी में यह फंसा है 
सडकों पर कूड़ा बिखरा रहे 
हम चुप रहेंगे 
एम्बुलेंस में रोगी तड़पता रहे 
हम सड़क से नहीं हटँगे 
भ्रष्ट अपराधी छवि के नेताओं को 
घर में बैठ कोसेंगे 
उनके खिलाफ चले अभियान में
मुह बन्द रखेंगे 
मनचले लड़कियों पर फ़ब्तियाँ कसे 
हम चुप रहेंगे 
नागरिक बोध का संकल्प 
सभाओं में दुहराएंगे 
व्यक्तिगत जीवन में नहीं लाएंगे 

तब दरिद्दर तो रहेगा ही 
हम सभ्रान्त हैं 
आधुनिक सभी सयंत्र हैं घर में 
पर सूप नहीं है 
मन में साधुत्व स्वभाव भी नहीं है 
फिर क्यों दरिद्दर भगाएं 
घर की महिलाओं को कह देवें 
वह दरिद्दर खेदते समय 
न बुदबुदाए 
लक्ष्मी आए 
दरिद्दर जाए । 
  

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