पूर्व में दादी का
बाद में माँ का
और अब पत्नी का
हंसुए से सूप बजाकर
दरिद्दर खेदना
ऐश्वर्य का
अपनी जिन्दगी में
प्रविष्ट कराने का
उम्मीद भरा संकल्प है
बुरी शक्तियों को भगाने का व्रत है
वर्षों गुजर गए
घर से दरिद्दर भगाते
सूप बजाते
दरिद्दर लम्बे अरसे से
हमारे मन में घुसा है
सभी में यह फंसा है
सडकों पर कूड़ा बिखरा रहे
हम चुप रहेंगे
एम्बुलेंस में रोगी तड़पता रहे
हम सड़क से नहीं हटँगे
भ्रष्ट अपराधी छवि के नेताओं को
घर में बैठ कोसेंगे
उनके खिलाफ चले अभियान में
मुह बन्द रखेंगे
मनचले लड़कियों पर फ़ब्तियाँ कसे
हम चुप रहेंगे
नागरिक बोध का संकल्प
सभाओं में दुहराएंगे
व्यक्तिगत जीवन में नहीं लाएंगे
तब दरिद्दर तो रहेगा ही
हम सभ्रान्त हैं
आधुनिक सभी सयंत्र हैं घर में
पर सूप नहीं है
मन में साधुत्व स्वभाव भी नहीं है
फिर क्यों दरिद्दर भगाएं
घर की महिलाओं को कह देवें
वह दरिद्दर खेदते समय
न बुदबुदाए
लक्ष्मी आए
दरिद्दर जाए ।
No comments:
Post a Comment