वह नन्हा बालक
माँ की थपकियाँ
ममत्व भरी निगाहें
कोमल मृदु स्पर्श
आशा भरी लालसा से
स्वयं को धन्य समझकर
धीरे-धीरे अपनी आँखें मुदते
न जाने कब सो गया ।
रात को अचानक
एकाएक जागा
बीच नींद में
और पाया स्वयं को
अन्य लोगों के बीच सोते
निहारा उसने
चारों ओर
सोए लोगों को
परिचित चिन्हों को
सभी चेहरे जाने-पहचाने
सभी चिन्ह प्रतिदिन देखते
किन्तु नहीं कर पाए आश्वस्त
उस बालक को
पुनः सोने के लिए ।
वह ढूँढने लगा
माँ को
फिर से आश्वस्त होकर
सोने के लिए
अंत में रोने लगा
माँ के साथ होने के खातिर
वह चाहता था
माँ का मृदुल स्पर्श
ममता भरी निगाहें
प्यार की दुलार की
मादक थपकियाँ
कौंध गया था
अनेक बार
उसके मन में
असुरक्षा का भाव ।
वह था बेचैन
न सो पाया
परिचित चेहरों के बीच
माँ की तालाश में
माँ के आभाव में ।
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