विदा की दुखद घडी में
अश्रुपूरित है नयन
पुष्प जो तुझपर चढ़ाए
मुरझाकर सब सुख गए
बहती हवा में धीरे धीरे
सारे के सारे उड़ गाए
उसे डंस गया कुंवारापन
तुम तो जीना चाहती थी
अंत में निकले थे शब्द
तेरी आर्त्तनाद सुनकर
पूरा देश भी था स्तब्ध
निरर्थक गया तेरा नमन
धरी की धरी रह गई
दी गई शुभकामनाएं
तेरह दिनीं तक लड़ी थी
सहती रही थी यातनाएं
नारी अस्मिता का हुवा हवन
कब्र पर बसी यह दिल्ली
फिर कहानी कह गई
हैवानियत दरिंदगी से
एक अबला मर गई
फिर क्यों न हिला था भुवन
इस देश में इस देश के
लोगों के द्वारा लुट गई
लाडो स्वयं को कैसे संभाले
जिंदगी ही रूठ गई
देख रो पड़ा धरती गगन
भूल गए हम नारी की
सृष्टि सेवा औ समर्पण
बनावटी लगाने लगा
शव पर चढ़ाए फूल अर्पण
वह करती रही कष्ट का सहन
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