चुनावी माहौल में
लोकतंत्र के प्रतिनिधि
समय निकलकर
दूसरे दावेदारों से आँखे चुराकर
साहित्यकार के निवास पर
मन में उठे प्रश्न का
सही जवाब जानने के लिए आए
साहित्यकार जानता था
जब भी राजनेता
शब्दों के जाल में फँस जाता है
उसे सुलझाने हेतु
साहित्यकार के पास आता है
राजनीति जब जब लडखडाती है
साहित्य ही उसे बचाता है
नेताजी ने पूछा
वाद और गिरि का अर्थ बताइए
दोनों में क्या सम्बन्ध होता है
यह भी समझाइए
वाद
सिद्धान्त नियम कानून सीमा दर्शाता है
गिरि सिद्धान्त के प्रणेता
नियम निर्धारक
क़ानून विशेषज्ञ और
सीमा निर्धारित करनेवाले की बनी हुई राह पर
अपनी कदम बढ़ाता है
वाद के दिन अब लद गए
वाद का सीधा ताल्लुक विचारों से होता है
हम विचारहीन समय में रह रहें हैं
अनायास बिना सोंचे बिचारे
अमानुषिक दुषित हवा में बह रहें हैं
वाद का समर्थक
कभी नहीं करता फ़रियाद
वाद की सीमओं
सिद्धान्तों वसूलों को
हरदम रखता है याद
नेताजी!
पहले गांधीवादी
लाखों की संख्या में मिल जाते थे
जो राष्ट्र के प्रति समर्पित नजर आते थे
लेकिन आज कल वे
उसी तरह अंतर्ध्यान होते जा रहे हैं
जैसे जमीन से गिद्ध
जंगलो से शेर
समुद्र से व्हेल
इस युग में
साम्यवाद
समाजवाद
कलाबाद
रुपवाद
दादावाद की तरह
चमचावाद की हवा
जबरदस्त चल रही है
जनता इन वादों के मकड़जाल में पल रही हैं
आज गिरि का जबरदस्त जमाना है
गिरि को ही सर्वोपरि मना हैं
नेतगिरी
भड़वागिरी
चमचागिरी
हर ओर चल रहा है
इसी में लोकतंत्र पल रहा है
आप भी अपने नाम से
----गिरि चला सकते हैं
वाद को छोड़िये
गिरि चलाइए
सांसद हैं हद तक बढ़ जाइए
यही लोकतंत्र के मजे हैं
मतदान के समय
भिन्न-भिन्न प्रकार के गिरि से
बाजार आज सजे हैं
नेताजी बिना कहे चुपचाप
चलते नजर आए
साहित्यकार उन्हें देखकर
धीरे से मुस्कुराये।
Dhanyavaad Surinder Ji
ReplyDelete