Monday, 17 June 2013

डिजिटल संस्कृति


अब नहीं रहा
महज डिलिवरी का माध्यम
सभी पढ़े लिखे इसमे जुटे हैं
इसकी संख्या अब हो गयी है अधिकतम

इसके प्रयोग में युवाओं में
मानसिक रोग तैयार किया है
एक डिजिटल वातावरण में
पूरी मानव मस्तिष्क को जकड़ लिया हैं

डिजिटल संस्कृति
इससे होती है दुर्गति
युवाओं के लिए
बेह्तर  दुनिया के बजाये
तकनीकी हावी की दुनिया में
धकेल रहा है
हर युवा इस तकनीक से खेल रहा है

मानवी दुनिया बन रहा है नर्क
मानव और मशीन के बीच
कम से कम हो रहा है फर्क
आज अधिकांश समय
हम स्क्रीन पर बिताते हैं
सुबह से शाम तक
हाई-फाई गतिविधियों में लगाते हैं

मानवी दुर्गुण
क्रोध घृणा द्वेष हिंसा की प्रवृति
सिखाता है नेट
इंटरनेट और नयी तकनीक के नशे में
डूबता है नेट
यह कोकिन अवशाध के चक्र को देता है इंधन
इससे  त्रस्त होगा जन-जन
इन्टरनेट हमें सनकी बना रहा है
तनाव ग्रस्त मानवी व्यवहार से हटा रहा है

भौतिक और काल्पनिक जगत का साथ
मानव और कंप्यूटर का साथ
पाकिट में की-बोर्ड और रेडियो ट्रांसमीटर
आँखों के सामने कंप्यूटर स्क्रीन
बिगाड़ता है दिन
हम बिस्तर से उठते ही
 ऑनलाइन हो जाते हैं
टेक्स्ट मेसेज के द्वारा
साइबोर्ग बनने पर अघाते हैं ।


2 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना सर...

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना सर...

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