Monday, 17 June 2013

सावन की बूंदें



सावन की बूंदें झर जहर बरसे

रिमझिम बरसा बहुत सुहाती
झूला  झूल कर कजरी गाती
झर = झर झरती फुहार से
गोरी का देह सोने सा चमके।

काले   मेघा  घिर  घिर आए
बरस बरस कर तपिस बुझाए
घटा  देख  वह रोक  न  पाई
मन - मयूर भींग  कर बहके ।

नई   नवेली   राह    निहारे
कहाँ गए तुम प्रियतम  प्यारे
बहती  बयार  काम  जगाती
कैसे  रहूँ  मै  इससे  बचके ।

तीज त्यौहार सावन में आया
हरियाली  है  मन  को  भाया
हरे  रंग  की  घाघरा- चुनरी
हरी चुदियाँ खन खन खनके ।

पेड़   कटे   घन     दूर   हटे
बढ़ते  फ्लैटों  से  छटा  घटे
प्रकृति  रूठ  गई  है  हमसे
जन -मानस हैं भटके भटके ।
 

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