सावन की बूंदें झर जहर बरसे
रिमझिम बरसा बहुत सुहाती
झूला झूल कर कजरी गाती
झर = झर झरती फुहार से
गोरी का देह सोने सा चमके।
काले मेघा घिर घिर आए
बरस बरस कर तपिस बुझाए
घटा देख वह रोक न पाई
मन - मयूर भींग कर बहके ।
नई नवेली राह निहारे
कहाँ गए तुम प्रियतम प्यारे
बहती बयार काम जगाती
कैसे रहूँ मै इससे बचके ।
तीज त्यौहार सावन में आया
हरियाली है मन को भाया
हरे रंग की घाघरा- चुनरी
हरी चुदियाँ खन खन खनके ।
पेड़ कटे घन दूर हटे
बढ़ते फ्लैटों से छटा घटे
प्रकृति रूठ गई है हमसे
जन -मानस हैं भटके भटके ।
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