Saturday, 15 June 2013

नज़र

 


नज़र ने जब नज़र से नज़र को छिपाया 
छिपाकर नज़र को नज़र से मिलाया 
सुनकर मैं ने भी नज़रें चुराकर 
बगल में बैठी पड़ोसिन से नज़रें मिलाकर 
बातें करने की ठानी 
उसने भी औरों से नज़रें छिपाकर मुस्कराकर 
मेरी स्वीकारोक्ति मानी । 

तभी से जब भी 
कवि = सम्मेलन या मुशायरे में जाता हूँ 
श्रोताओं को नज़र के महत्त्व को बताता हूँ 
पत्र लिखना तो इतिहास बन गया 
मोबाइल रखने की चाहत 
बन गयी है आदत 
यह भले हे दूरियाँ  घटाता है 
दिल की बात एसएम्एस के जरिये दर्शाता है 
कभी न कभी 
कोई न कोई 
इस हकीकत को जान जाता है
इसी लिए पुरानी पद्धति में आईये 
नज़र से नज़र मिलाईये 
आँखों का बड़ा महत्त्व है 
अगर हम में आत्मविश्वास है 
दृढ़ता है 
स्वाभिमान है
तो आँखों से आँखें मिलाकर बात करते हो 
और गोपनीयता की बात हो तो 
औरों से आँखें चुरा कर बात करते हैं 

         हमारे व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब है आँखें 
         समुद्र से भी गहरा बिम्ब है आँखें
नज़रों में है 
चंचलता शोखी 
बेचैनी बेरुखी 
भय बेबसी
प्रेम नफरत 
सच झूठ 
नाराज़गी अलगाव बेवफाई  

        हम नज़र मिलाकर बातें करना 
        नज़रों को पढना सीखें 
        मानवीय संबंधों में 
        गज़ब का सुधर आएगा 
        नज़रों से नज़रों में प्यार भाएगा 

नज़र नज़रों की भाषा का सन्देश ही पड़ता है 
किसमे कितना है 
प्यार लगाव अलगाव या मनमुटाव 
देखकर बढ़ता है 

        बातें करे नज़र मिलाकर 
        नज़र को पढना सीखें 
        कौन है अपना कौन पराया 
        नज़रों को जानना सीखें । 



    

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