Thursday 20 June 2013

प्रश्न



विश्व मे
सबसे खुश देश : कोलंबिया
सबसे शिक्षित  देश :कनाडा
सबसे अमीर देश : क़तर
सबसे शांत और साफ देश : आइसलैंड
सबसे अच्छा देश महिलाओं के लिए : न्यूजीलैंड
कहा जाता है
तब भारत किस श्रेणी में आता है ?
शिक्षक ने छात्रों से पूछा -

एक छात्र ने जवाब दिया
जब से भारत इंडिया बन गया है
यहाँ की खुशियाँ छिन गईं
सुन्दरता कास्मेटिक वस्तुओं के सेवन से धुमिल हुई
शिक्षा का स्तर नैतिकता में गिरा है तथा
कागजों पर बढ़ा है
विश्व में शांति का सन्देश देनेवाला भारत
हो गया अशांत
सोने की चिड़िया कहा जाने वाला देश अभाव-ग्रस्त
महिलाओं पर प्रतिदिन लगता है ग्रहण
जबसे पाश्चात्य सभ्यता अपनाया है
रिश्वतखोरी कालाबाजारी और भ्रष्टाचार में
सर्वोत्तम अंक पाया है
इसीमे नाम कमाया है ।


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस



मै :                       नवजात शिशु
नाम :                    कुछ भी नहीं
उम्र :                     दो महिना
जन्म स्थान :          अज्ञात
कद :                     साढ़े छप्पन सेंटीमीटर
शिक्षा :                   अक्षरहीन
शौक :                    माँ की गोद में रहना
इच्छा :                  माँ के स्तन का दूध पीना
काम :                    संघर्षमय जीवन जीना
माता पिता का नाम : पता नहीं
क्यों :                     वे  नहीं चाहते सार्वजनिक करना
                            माँ नहीं चाहती मातृत्व सुख
                            मै नहीं हूँ पाप का परिणाम
                             पिता सामने आने में असमर्थ
                             वे नहीं चाहते मेरा भरण पोषण
                             किसी अन्य ने मुझे अपनाया है
                             अपनी गोद में सुलाया है
                             वे  चाहते हैं मै दुनिया देखूँ
                             हवा मुझे छुवे
                             सूर्य की ऊष्मा मुझे रोग रहित करे
                             सृष्टी रचयिता मुझे बचाएं
                             चाँद से मेरा भी परिचय कराएँ
                             और क्या बताऊँ
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस झूठलाता है
समाज का खोखलापन सामने आता है
दबी हुई किलकारी किसे सुनाऊ
मेरी रोने की आवाज कितनी बार दुहराऊ
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस क्या यह सुन पाएगा
मेरे जैसे का गुण गाएगा
नहीं नहीं कभी नहीं ।
          

Monday 17 June 2013

डिजिटल संस्कृति


अब नहीं रहा
महज डिलिवरी का माध्यम
सभी पढ़े लिखे इसमे जुटे हैं
इसकी संख्या अब हो गयी है अधिकतम

इसके प्रयोग में युवाओं में
मानसिक रोग तैयार किया है
एक डिजिटल वातावरण में
पूरी मानव मस्तिष्क को जकड़ लिया हैं

डिजिटल संस्कृति
इससे होती है दुर्गति
युवाओं के लिए
बेह्तर  दुनिया के बजाये
तकनीकी हावी की दुनिया में
धकेल रहा है
हर युवा इस तकनीक से खेल रहा है

मानवी दुनिया बन रहा है नर्क
मानव और मशीन के बीच
कम से कम हो रहा है फर्क
आज अधिकांश समय
हम स्क्रीन पर बिताते हैं
सुबह से शाम तक
हाई-फाई गतिविधियों में लगाते हैं

मानवी दुर्गुण
क्रोध घृणा द्वेष हिंसा की प्रवृति
सिखाता है नेट
इंटरनेट और नयी तकनीक के नशे में
डूबता है नेट
यह कोकिन अवशाध के चक्र को देता है इंधन
इससे  त्रस्त होगा जन-जन
इन्टरनेट हमें सनकी बना रहा है
तनाव ग्रस्त मानवी व्यवहार से हटा रहा है

भौतिक और काल्पनिक जगत का साथ
मानव और कंप्यूटर का साथ
पाकिट में की-बोर्ड और रेडियो ट्रांसमीटर
आँखों के सामने कंप्यूटर स्क्रीन
बिगाड़ता है दिन
हम बिस्तर से उठते ही
 ऑनलाइन हो जाते हैं
टेक्स्ट मेसेज के द्वारा
साइबोर्ग बनने पर अघाते हैं ।


आदमी और भ्रष्टाचार



आम आदमी और भ्रष्टाचार
इन दोनों में है गहरा नाता
पहले लोग नेताओं की तस्वीरें
दीवारों पर लगाते थे
उनके आदर्श और चरित्र
भूल नहीं पाते थे
अब बढ़ते भ्रष्टाचार
फैलते व्यभिचार
देखकर अब  जुलूसों में
पुतला दहन के काम आते हैं
दोनों एक दूसरे के
बन गए हैं पहचान
छूट गया है धर्म और ईमान
अधिकांश नेता और सरकारी अधिकारी
चमचे प्रवृतिवाले कर्मचारी
हो गए हैं भ्रष्ट
जनता झेलती है कष्ट
हमारा लोकत्रंत्र
बन गया है भ्रष्टतंत्र
इनसे निबटने के लिए
आम आदमी को सौपनी होगी
कुछ चाबियाँ
जिससे दूर होवे खामियाँ
कानून की समझ जागरुकता
शिक्षा नैतिकता
रक्षा हेतु अस्मिता
तय करनी होगी
दूर करनी होगी
ऊँच -नीच जात -पात
तब होगा देश का कल्याण
इनसे बचाओ भगवान । 

सावन की बूंदें



सावन की बूंदें झर जहर बरसे

रिमझिम बरसा बहुत सुहाती
झूला  झूल कर कजरी गाती
झर = झर झरती फुहार से
गोरी का देह सोने सा चमके।

काले   मेघा  घिर  घिर आए
बरस बरस कर तपिस बुझाए
घटा  देख  वह रोक  न  पाई
मन - मयूर भींग  कर बहके ।

नई   नवेली   राह    निहारे
कहाँ गए तुम प्रियतम  प्यारे
बहती  बयार  काम  जगाती
कैसे  रहूँ  मै  इससे  बचके ।

तीज त्यौहार सावन में आया
हरियाली  है  मन  को  भाया
हरे  रंग  की  घाघरा- चुनरी
हरी चुदियाँ खन खन खनके ।

पेड़   कटे   घन     दूर   हटे
बढ़ते  फ्लैटों  से  छटा  घटे
प्रकृति  रूठ  गई  है  हमसे
जन -मानस हैं भटके भटके ।
 

मचलते ख्वाब

मचलते ख्वाब 

वीणा के तार को छेड़ते 
बीना श्रीवास्तव के " आस का पंछी "
" यादों की लाठी " थामे 
" नया आयाम " गढ़ता है 
प्रश्न भी करता है 
" कहाँ गया "
"आँखों में पलता ख्वाब "
" हिंदुस्तानी का मन "
"परीक्षा " में उत्तीर्ण होता है 
और "वृक्षों से जीवन " का सीख देता हुआ 
"दया नहीं  स्वाभिमान दो "
यह कामना कर 
"प्यार की फसल " उगाने के लिए 
"आँखों में तैरते बादल" को 
"प्यार का"दामन" थामकर
"मुठ्ठी में चाँद" कसता है 
और तब" दस्तक" देता है 
ताकि "भरी रहे उमंगें"
इन्हें " संतोष" है 
"आँखों की चमक " दर्शाती है 
"अमावास" की काली रात में भी
"जरुरी है नया पथ "{
प्रेम का ..।   
 

Sunday 16 June 2013

आमंत्रण



फैली पहाड़ियों की श्रृंखला से 
दूर दूर तक फैले जंगलों से 
हरे भरे पत्तों की हलचल से 
प्रवाहित होती नदियों की कल-कल से 
दसों दिशाओं से 
मन्द-मन्द बहती हवाओं से 
प्रतिदिन मिलता है 
आमंत्रण 

आमंत्रण 
पुरातन संस्कृति का 
मेल-जोल की संगति का 
जनजातियों की सभ्यता का 
आदिवाशियों की नम्रता का 
आतिथ्य सत्कार का 
मृदुल स्नेहिल प्यार का 
मांदर की थाप पर थिरकते पाँव का 
थके हारे वृछ की छाव का 
गोदना दगे चेहरे पर मुस्कान का 
छल कपट से दूर सम्मान का 
सदैव मिलता रहा है 
आमंत्रण 

साहित्यकारों को 
कलाकारों को 
भक्तों को 
संतो को 
सैलानियों को 
तीर्थ -यात्रियों को 
शोध कर्ताओं को 
युगों से झारखंडी 
जोहार करते हुए 
दे रहे हैं आगमन का 
आमंत्रण।


Saturday 15 June 2013

माँ की अस्मिता

परिवर्तित हो गयी थी 
मेरी शिथिलता 
स्फूर्ती में 
उमंग में 
माँ का सिर पर फेरते ही हाथ 

झुर्रीदार चेहरा 
सिकुड़ी हुई आँखें 
मातृत्व  से भरा 
अमूल्य प्रसाद 
प्रेम से छलकता ह्रदय 
देता है हर पल 
मेरा साथ 

स्मृति के पन्ने 
फड़फडाने लगे 
दिखने लगी 
पुनः अवतरित हुई 
रामायण  बांचती 
भजन गाती 
प्रसाद खिलाती 
मेरी गलतियों को
करती माफ़ 

माँ से पाया था 
दूसरों के ह्रदय को 
शीतल करने का ग्यानामृत 
चेहरे में 
अपने  कई लोगों के 
मुस्कुराते चेहरे 
दिख रहे हैं साफ़ 
आज भी। 

अपनी यंत्रवत्त सी ज़िन्दगी में 
माँ से ही मैंने पाया है 
अपना अस्तित्व 
उनके स्वर 
अब भी हैं 
तितली झरने कोयल 
नदी की तरह 
और सब हैं माँ के साथ। 




महिला दिवस

 
मानव सभ्यता का उन्मेष
नारी का सहभागिनी बन कर प्रवेश
दोनों की सहकारिता से
समाज का निर्माण
विश्व में बना चुका है प्रमाण

नारी का विपुल व्यक्तित्व
दर्शाता है साहित्य
'यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता'
अंतर-राष्ट्रीय महिला दिवस
हर ओर मनाने का दे रहा है नेवता

सम्पूर्ण प्रकृति की सृष्टि में
यौवन का
सौंदर्य का
आकर्षण का
प्रसन्नता का
मादकता का
महिला दिवस इंगित करता है
सभी को देना है
नारी का सम्मान
तभी होगा
राज्य देश या विश्व का उत्थान । 

दरिद्दर खेदना



पूर्व में दादी का 
बाद में माँ का 
और अब पत्नी का
हंसुए से सूप बजाकर 
दरिद्दर खेदना 
ऐश्वर्य का 
अपनी जिन्दगी में 
प्रविष्ट कराने का 
उम्मीद भरा संकल्प है 
बुरी शक्तियों को भगाने का व्रत है 

वर्षों गुजर गए 
घर से दरिद्दर भगाते 
सूप बजाते 

दरिद्दर लम्बे अरसे से 
हमारे मन में घुसा है 
सभी में यह फंसा है 
सडकों पर कूड़ा बिखरा रहे 
हम चुप रहेंगे 
एम्बुलेंस में रोगी तड़पता रहे 
हम सड़क से नहीं हटँगे 
भ्रष्ट अपराधी छवि के नेताओं को 
घर में बैठ कोसेंगे 
उनके खिलाफ चले अभियान में
मुह बन्द रखेंगे 
मनचले लड़कियों पर फ़ब्तियाँ कसे 
हम चुप रहेंगे 
नागरिक बोध का संकल्प 
सभाओं में दुहराएंगे 
व्यक्तिगत जीवन में नहीं लाएंगे 

तब दरिद्दर तो रहेगा ही 
हम सभ्रान्त हैं 
आधुनिक सभी सयंत्र हैं घर में 
पर सूप नहीं है 
मन में साधुत्व स्वभाव भी नहीं है 
फिर क्यों दरिद्दर भगाएं 
घर की महिलाओं को कह देवें 
वह दरिद्दर खेदते समय 
न बुदबुदाए 
लक्ष्मी आए 
दरिद्दर जाए । 
  

नज़र

 


नज़र ने जब नज़र से नज़र को छिपाया 
छिपाकर नज़र को नज़र से मिलाया 
सुनकर मैं ने भी नज़रें चुराकर 
बगल में बैठी पड़ोसिन से नज़रें मिलाकर 
बातें करने की ठानी 
उसने भी औरों से नज़रें छिपाकर मुस्कराकर 
मेरी स्वीकारोक्ति मानी । 

तभी से जब भी 
कवि = सम्मेलन या मुशायरे में जाता हूँ 
श्रोताओं को नज़र के महत्त्व को बताता हूँ 
पत्र लिखना तो इतिहास बन गया 
मोबाइल रखने की चाहत 
बन गयी है आदत 
यह भले हे दूरियाँ  घटाता है 
दिल की बात एसएम्एस के जरिये दर्शाता है 
कभी न कभी 
कोई न कोई 
इस हकीकत को जान जाता है
इसी लिए पुरानी पद्धति में आईये 
नज़र से नज़र मिलाईये 
आँखों का बड़ा महत्त्व है 
अगर हम में आत्मविश्वास है 
दृढ़ता है 
स्वाभिमान है
तो आँखों से आँखें मिलाकर बात करते हो 
और गोपनीयता की बात हो तो 
औरों से आँखें चुरा कर बात करते हैं 

         हमारे व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब है आँखें 
         समुद्र से भी गहरा बिम्ब है आँखें
नज़रों में है 
चंचलता शोखी 
बेचैनी बेरुखी 
भय बेबसी
प्रेम नफरत 
सच झूठ 
नाराज़गी अलगाव बेवफाई  

        हम नज़र मिलाकर बातें करना 
        नज़रों को पढना सीखें 
        मानवीय संबंधों में 
        गज़ब का सुधर आएगा 
        नज़रों से नज़रों में प्यार भाएगा 

नज़र नज़रों की भाषा का सन्देश ही पड़ता है 
किसमे कितना है 
प्यार लगाव अलगाव या मनमुटाव 
देखकर बढ़ता है 

        बातें करे नज़र मिलाकर 
        नज़र को पढना सीखें 
        कौन है अपना कौन पराया 
        नज़रों को जानना सीखें । 



    

Thursday 13 June 2013

कुर्सी का मोह



एवरेस्ट से लुढककर 
तराई में धराशायी हो गए 
पार्टी से निकलकर 
मान मनौवल के बाद 
फिर शीर्ष पद पर आ गए 
वाह रे जिन्दगी 
कुर्सी के मोह में 

उम्र अधिक हो गई 
राजनीति से निवृति नहीं लेंगे 
शारीरिक क्षमता क्षीण हो गई 
पद से इस्तीफा नहीं देंगे 
वाह रे जिन्दगी 
कुर्सी के मोह में

कौन कहता है 
इस्तीफा देना और पुनः स्वीकार करना 
अर्थहीन एवं बचकानी है
किसी के सही सलाह पर 
राजनीति में बने रहना नादानी है
वाह रे जिन्दगी
कुर्सी के मोह में

आज सभी नेताओं को
मान मनौवल भाती है
बूढ़े उम्र में भी रवानगी
कुर्सी पर बैठने से आती है
वाह रे जिन्दगी
कुर्सी के मोह में

युवा वर्ग एकजुट होकर
शोर मचाओ नारे लगाओ
राजनीति में
कुर्सी पर जमे रहने के लिए
अनुभव के साथ दाँव पेंच भी जरुरी है
वाह रे जिन्दगी
कुर्सी के मोह में । 

Wednesday 12 June 2013

बाप रे बाप



क्रिकेट खेल में
खिलाड़ी द्वारा
एक ओभर में साठ लाख
वाह रे सटोरिया
वाह रे सट्टाबाज
बाप रे बाप

यह और बात है
वे फँस गए हैं आज
बीता हुवा कल फिर आता है
और कलंकित कर जाता है
कोई खेल ख़राब नहीं होता
परन्तु ऐसा न हो
क्रिकेट के खेल से
अपने जीवन का खेल ख़राब हो जाए

बड़े लोगों द्वारा प्रायोजित क्रिकेट खेल में
सटोरिये सट्टेबाज पर
बनाया जाए सख्त कानून
ख़त्म हो जाए धनार्जन का जुनून
नेताओं और उद्योगपतियों द्वारा
खेल को व्यवसाय न बनाया जाय
उनकी खेल में पनप रही पैठ को हटाया जाय

खेल शारीरिक क्षमता बढ़ाने
साहस निर्माण
बौद्धिक विकास
आत्म-संयम
सामाजिक समरसता के
संपोषण में सहायक होता है
खेल एकता भाईचारा स्वस्थ मनोरंजन
का सबक सिखाता है
खिलाडियों और दर्शकों के बीच
अपनापन बढ़ाता है

जनता समझ गयी
क्रिकेट खेल है पतंग
बड़े बड़े पूंजीपति हैं पतंगबाज़
वही हैं सटोरिए सट्टेबाज़
वे धनाढ्य हो गए
एक ही खेल में अपने आप 
वाह रे सटोरिया
वाह रे सट्टाबाज
बाप रे बाप

भर गया है ग्लास



टेबुल  पर नेताओं  के भर गया है  ग्लास
भ्रष्टाचार से  लबालब  भर गया  है ग्लास

बाहुबली  माफिया लुटेरों के  हाथ पड़कर
चियर्स के  बोल पर  टकरा  रहा है ग्लास

फिस चिकन  मटन के  साथ रोज रात में
व्हिस्की रम से  नशा  बढ़ा  रहा है ग्लास

भूना काजू बादाम पिस्ता रखा है मेज पर
नेताओं के होंठ से वहाँ सट  रहा है ग्लास

उत्तेजक  वस्त्रों  में थिरकती  हैं कॉल  गर्ल
मदभरी नशा  के लिए भरा  पड़ा है ग्लास

सत्य अहिंसा  प्रेम की जगह  नहीं यहाँ है
बलात्कार लूटमार से तड़प  रहा है ग्लास

वोट का  माहौल  ज़ल्द  फिर आ रहा   है
जनता तबाह होगी यह कह रहा है ग्लास 

   

Tuesday 11 June 2013

नेताजी का प्रश्न



चुनावी माहौल में
लोकतंत्र के प्रतिनिधि
समय निकलकर
दूसरे दावेदारों से आँखे चुराकर
साहित्यकार के निवास पर
मन में उठे प्रश्न का
सही जवाब जानने के लिए आए

साहित्यकार जानता था
जब भी राजनेता
शब्दों के जाल में फँस जाता है
उसे सुलझाने हेतु
 साहित्यकार के पास आता है
राजनीति जब जब लडखडाती है
साहित्य ही उसे बचाता है

नेताजी ने  पूछा
वाद और गिरि का अर्थ बताइए
दोनों में क्या सम्बन्ध होता है
यह भी समझाइए

वाद
सिद्धान्त नियम कानून  सीमा दर्शाता है
गिरि सिद्धान्त के प्रणेता
नियम निर्धारक
क़ानून विशेषज्ञ और
सीमा निर्धारित करनेवाले की बनी हुई राह पर
अपनी कदम बढ़ाता है

वाद के दिन अब लद गए
वाद का सीधा ताल्लुक विचारों से होता है
हम विचारहीन समय में रह रहें हैं
अनायास बिना सोंचे बिचारे
अमानुषिक दुषित हवा में बह रहें हैं

वाद का समर्थक
कभी नहीं करता फ़रियाद
वाद की सीमओं
सिद्धान्तों वसूलों को
हरदम रखता है याद

नेताजी!
पहले गांधीवादी
लाखों की संख्या में मिल जाते थे
जो राष्ट्र के प्रति समर्पित नजर आते थे
लेकिन आज कल वे
उसी तरह अंतर्ध्यान होते जा रहे हैं
जैसे जमीन से गिद्ध
जंगलो से शेर
समुद्र से व्हेल

इस युग में
साम्यवाद
समाजवाद
कलाबाद
रुपवाद
दादावाद की तरह
चमचावाद की हवा
जबरदस्त चल रही है
जनता इन वादों के मकड़जाल में पल रही हैं

आज गिरि का जबरदस्त जमाना है
गिरि को ही सर्वोपरि मना हैं
नेतगिरी
भड़वागिरी
चमचागिरी
हर ओर चल रहा है
इसी में लोकतंत्र पल रहा है
आप भी अपने नाम से
----गिरि चला सकते हैं
वाद को छोड़िये
गिरि चलाइए
सांसद हैं हद तक बढ़ जाइए
यही लोकतंत्र के मजे हैं
मतदान के समय
भिन्न-भिन्न  प्रकार के गिरि से
बाजार आज सजे हैं
नेताजी बिना कहे चुपचाप  
चलते नजर आए
साहित्यकार उन्हें देखकर
धीरे से मुस्कुराये।





   








Sunday 9 June 2013

बच्चा



बड़ों को देखकर बड़ा होने से डरता है बच्चा
छोटा भले है वह मगर बड़ों से  वह है सच्चा

झूट की धरातल पर खड़े हैं उम्रदराज लोग
बच्चा यह समझता है अभी भी है वो कच्चा

बड़े का घर में रहते हुए  आता अगर  कोई
नहीं हैं झूट सुन उसे लगता नहीं है अच्छा

यहाँ छोटे बड़े का अंतर तो  जानते सभी हैं
बड़े क्यों झूट बोलते नहीं समझ पता बच्चा

रहन-सहन बड़ों का दिन-दिन बदलते देख
अब बनावटी माहौल में पल रहा है  बच्चा  

एक दूजे के लिए



देह रचना की पारम्परिक परिभाषा
और मानकों के अनुरूप
शीरी
लैला
हीर
रूपमती
मंजरी
अनारकली
मस्तानी
वसंत सेना
सोहनी
क्लियोपेट्रा
हेलेना
जोसेफीन
ज्यूलियट
महान रूपवती नहीं थीं

फ़रहाद
मजनू
रांझा
बाज बहादूर
लोरिक
सलीम
बाजीराव
देवदास
चारुदत्त
महिवाल
एंटोनी
पेरिस
नेपोलियन
रोमियो
परम रूपवान
देहयष्टि के लिहाज से
बलिष्ठ पुरुष थे
ऐसी बात नहीं

सभी प्यार के रंग में रंगे थे
प्रेम में एक दूसरे के सगे थे
प्रेम की आन्तरिक बुनावट
उसे निखारती है
सौन्दर्य दिल के भीतर
रोशनी की किरण बनकर दमकता है
खुबसूरती त्वचा के सतह पर नहीं
इसकी गहराई में होता है
प्यार ह्रदय से होता है
प्रेमी इसीमे जीता है
कभी ठंढा नहीं होता है
निष्ठावान ह्रदय
गर्माहट लिए हमेशा
धड़कता  रहता है ह्रदय
प्रेमी के लिए
प्रेमिका के लिए
एक दूजे के लिए . .




Saturday 8 June 2013

पत्नी

जीवन भर साथ निभाती है पत्नी
पतिश्री की पूरक कहलाती है पत्नी

पति समस्या में उलझ जाये जब भी
उसे झटपट सुलझाती है पत्नी

हर रिश्तों में उसकी झलक दिखती है
बेटी बहन माँ  में वही मिलती है पत्नी

कष्ट सहकर घर को बनाती है मंदिर
सुख का माहौल बस दिलाती है पत्नी

निरंकुश से पूछो पत्नी क्या है होती
गीत ग़ज़ल कविता के शब्दों में पत्नी


Thursday 6 June 2013

बृद्ध पिता



नहीं रोक सका स्वयं को 
निकल पड़ा 
उमंग उल्लास के साथ 
जो सपने अपने मन में संजोये थे 
उसे साकार करने की लालसा में 
वह वृद्ध पिता । 

आग बरसाती हवा 
तपती धूप 
लू का प्रकोप 
गमछे से सर और मुँह लपेटे 
तर-तर बहता पसीना 
अंगार की तरह जलती जमीन 
हर तरफ सन्नाटा 
दूर तक कोई नहीं 
सुनसान सड़क 
पर उसके कदम गन्तव्य  तक 
पहुँचने के लिए गतिमान 
कहीं - कहीं पेड़ों की छांव तले 
कुछ देर सुस्ताता 
पुनः आगे बढ़ जाता 
वह वृद्ध पिता । 

न तो भूख थी न प्यास 
चिलचिलाती धूप में 
गर्मी से शुष्क गले 
जीभ के निकलते लार से तर करता 
झुर्रीदार चेहरे पर बहते पसीने को 
गमछे से पोंछता 
वात्सल्य रस से ओत प्रोत हो 
वर्षों बाद पुत्र से मिलने को आतुर 
बढ़ता ही जाता 
वह वृद्ध पिता 

अन्ततः पहुँच ही गया 
शहर के बीच 
चमचमाते उस आलीशान भवन में 
सुसज्जित कमरा 
ए सी ऑन 
सोफे पर धंसा वह युवक 
बियर भरे गिलास से 
स्नैक्स के साथ 
टी वी पर आँख गडाए 
एडल्ट मूवी में मग्न 
बेफिक्र उस युवक की नज़र 
ज्यों ही पिता पर पड़ी 
उसने धिक्कारा 
यह कैसी बेवकूफी 
इस वक़्त आपका अचानक आना 
ऐसी देहाती वेश भूषा में 
मेरे स्टेटस पर धब्बा लगाएगा 
इसका ख्याल किये बगैर धमक जाना 
क्या उचित है 
सुनकर हतप्रभ था 
किमकर्तव्यविमूढ था 
अपने पुत्र के समक्ष
वह वृद्ध पिता । 

बीस बरस विदेश में रहने के पश्चात 
शहर में रहने की खबर सुनकर 
नहीं रोक सका था स्वयं को 
अश्रु-कण आँखों से बह निकले 
मन धिक्कारने लगा 
पुत्र मोह को नहीं रोक पाने पर 
करने लगा पश्चाताप 
एक शब्द भी मुह से नहीं निकले 
अनायास लौट पड़े
उसके लड़खडाते कदम 
अपने घर की ओर 
दुखी होकर 
मन ही मन से करने लगा प्रश्न  
कष्ट सहकर जीवन भर पढ़ाने 
सुख सुविधा मुहैय्या कराने 
ऊँचे ओहदे का पद पाने पर 
क्यों खुश था मैं 
कोई प्रत्युतर नहीं सूझा 
क्या सोचा था क्या पाया 
वह वृद्ध पिता। 

Tuesday 4 June 2013

वह लड़की



भरे-पूरे घर में
भीड़ में भी स्वयं को
अकेला महसूस करती थी
वह लड़की!

खिड़की के भीतर से
आसमान निहारती
सन्नाटे में डूबे
जेठ की तपती दुपहरी में
गर्म हवा को झेलती
अपने खालीपन को
प्रियतम के होने का
अहसास भरते हुए खड़ी थी
वह लड़की!

वह चाहती थी
प्रिय के साथ आवारा हवा की तरह
धरती की सौंधी सुगंध को
सुंघते हुए उड़ना
चिडियों की तरह फुदकना
फूट पड़े बरसो से शुखा झरना
खिल जाए मन की  कलियाँ  
यही तो चाहती थी
वह लड़की!

बंदिशे
रोका-टोकी
समाज के दिखावी खोखलेपन
परिवार की नकारात्मक प्रवृति
रुढ़िवादिता से टूट चुकी थी
वह लड़की!

प्रियतम से यादों में महफूज़
मुरझा गया है उसका
खिलता गुलाबी चेहरा
कल तक जो खड़ी थी
खिड़की पर
जग जाती थी आहटों से
निढाल होकर
विवश हो कर लेटी है
टूटने वाली ख़ामोशी की चादर ओढ़े
अब नहीं खेलना चाहती
सुनहरी धूप से
झुलस चुकी है किरणों से तपिश से
हार चुकी है
जिंदगी का आखिरी दांव
प्यार करने पर
वह लड़की!

Monday 3 June 2013

प्रेमी और प्रेमिका



प्रेम में डूबा प्रेमी
प्रेमिका को देखने में आतुर
प्रेमिका अपने प्रेमी के प्रति
सबकुछ समर्पित करने को न्योछावर

प्रेम स्वयंम सौन्दर्य है
सौन्दर्य की परिकाष्ठा है
सौन्दर्य है एक अनुभूति
एक दृश्य
एक दृष्टि

प्रेमिका को देखते ही प्रेमी ने कहा -
तू खुशबू है
ख़ुदा की मुलाकात है
आशिक की सदा है
अल्लाह की रज़ा है
सारी कायनात है
प्रेमिका सुनकर मुस्कराई
प्रेमी के करीब आई और फरमाई
तू खुदा का अंदाज़ है
इश्क की दरगाह है
रूह की आवाज़ है
अज़ल का इकरार है
जोग की राह है
फानी हुस्न का नाज़ है
जग का इनकार है

दोनों का कथन साफ-साफ बताता है
यही तो प्रेम है
सांसो का सांस होना
धडकनों का धड़कन होना
दोनों में प्रेम का ही आगाज़ है
एक साज़ है तो दूसरा आवाज़ है

दोनों ने सौन्दर्य का
सबसे बिराट प्रतिमान गढ़ लिया
एक दूसरे को पढ़ लिया
उनके समक्ष सबकुछ रीत गया
उनका एहसास जीत गया .   

राजनीति

                                                                                                                                                                   

यह कहते हैं
' नीति का जहां होता है अंत
होती है वहीँ राजनीति की शुरुवात '
राजनीति के गुरु बृहस्पति ने कहा है
राजनीति का मूल मंत्र है
' किसी पर बिश्वास मत करो '
तब राजनेता को क्यों कोसते हैं
राजनेता का जनता के साथ प्रतिकूल ब्यवहार
मूल मंत्रो के आधार पर उचित है
राजनेताओं का जनता से सम्पर्क
मात्र वोट तक अनुचित है
कुछ नेताओं के स्वार्थ लिप्सा मनमानी के कारण
देश निरन्तर रसातल की ओर बढ़ रहा है
छल कपट द्रोह हिंसा का पारा
दिनोदिन चढ़ रहा है
हम जागें नेता को जगाएं
राष्ट्र कल्याण के लिए
नेता की अकर्मण्यता को भगाएं
देश-प्रेम सर्वोपरि है
राष्ट्रीयता में राजनीति
लाती है दुर्गति
यह महापुरुषों की वाणी है
इसे करना होगा साकार
हम नहीं हैं लाचार
उसमे अदभूत शक्ति निहित है
जो करते हैं देश से प्यार
मानव-धर्म को माने 
अपनी शक्ति पहचाने।  


   

Saturday 1 June 2013

आई पी एल



देश के लाखों लोगों का 
खेल प्रेमियों का  
प्रिय मनोरंजक खेल 
आईपीएल 

खेल देखकर 
समझ जाते थे 
कौन जीतेगा 
वे न तो ज्योतिषी थे 
और न ही खेल विशेषज्ञ 

वर्षों पहले क्रिकेट खेल में 
खेल फिक्सिंग 
स्पॉट फिक्सिंग 
की चर्चा थी आई 
कोई ठोस निर्णय नहीं निकल पाया 
जनता ने उसे भुलाया
इस बार के आईपीएल में
पुनः सट्टेबाजी  की बात
खेल प्रेमियों को लगा आघात 
यह साफ हो गया 
क्रिकेट के सट्टेबाजी हमाम में सब नंगे हैं 

खेल ख़त्म हो गया 
सट्टेबाजी पर खुलकर हो रही है 
जोरदार बहस 
कहीं ये न कर दे 
खेल को ही तहस-नहस 
सट्टेबाज अब किसपर  सट्टा लगायेंगे 
आईपीएल में देश के लाखों अधेड़ 
'चीयर लीडर्स' को मटकते कैसे देख पायेंगे 
'नाइट पार्टीज' का क्या होगा 
बड़े लोग अधिक पैसेवाले लोग 
दीख रहें हैं परेशान 
आम जनता का टूट गया अरमान 

यह बात समझ में आ गई 
लाखों कमाने के लिए 
क्रिकेट खेल देखिए 
एक ही रात में
मालामाल हो जाइएगा 
अन्य खेलों में क्यों समय गंवाइएगा 
काफी खर्च कर 
अन्य काम छोड़कर 
मात्र क्रिकेट खेल देखिए 
रात भर जागकर आनंद उठाइए 
दिन में भले ही कार्यालय में ऊंघते रहिए 
आप भी सट्टा लगाइए 
खूब धन कमाइए 
खेल सौहार्द्य प्रेम और अपनापन का प्रतीक होता है 
क्रिकेट खेल में यह तो भूल ही जाइए .     




न जाने किसकी है बारी



दिनों दिन
बढ़ता जा रहा है
माओवादी
आतंकवाद का तांडव
भयभीत है मानव
छोटे-छोटे हमले से शुरू होकर
अब होने लगे हैं
बर्बर हमले
देश की आन्तरिक सुरक्षा को
सबसे बड़ा खतरा
वामपंथी अतिवाद
नक्सलवाद का गहराता साया
साफ  साफ नज़र आता है
कारण है
केंद्र तथा राज्यों में
राजनीतिक इक्षा शक्ति का अभाव
धीरे धीरे पसरता जा रहा है
नक्सली प्रभाव
आज सबसे बड़ी समस्या
आतंकवाद से भी बड़ी समस्या
नक्सली हिंसा है
बुरी तरह कुछ राज्य इसमे फसा है
इस विनाशकारी घड़ी में
सरकार
सुरक्षाबलों
खूफिया एजेंसियों
राजनीतिक कार्यकर्ताओं और आमजन
अपने कर्तव्यबोध को जानें
यही निर्णायक घड़ी है
यह मानें
अक्षम्य भयावह चूक से बचें
ठोस आर-पार की कारवाई हो
जो जनता को जँचे
सर के ऊपर से बहने लगा है पानी
उसे अपनी औकात दिखाएं
हिंसा की  फिर वारदात  न करने पाए
यह सोचना लाजिम है
कल थी छत्तीसगढ़ की  बारी
आने वाले दिन में
न जाने किस राज्य की है पारी .