Monday, 17 June 2013

मचलते ख्वाब

मचलते ख्वाब 

वीणा के तार को छेड़ते 
बीना श्रीवास्तव के " आस का पंछी "
" यादों की लाठी " थामे 
" नया आयाम " गढ़ता है 
प्रश्न भी करता है 
" कहाँ गया "
"आँखों में पलता ख्वाब "
" हिंदुस्तानी का मन "
"परीक्षा " में उत्तीर्ण होता है 
और "वृक्षों से जीवन " का सीख देता हुआ 
"दया नहीं  स्वाभिमान दो "
यह कामना कर 
"प्यार की फसल " उगाने के लिए 
"आँखों में तैरते बादल" को 
"प्यार का"दामन" थामकर
"मुठ्ठी में चाँद" कसता है 
और तब" दस्तक" देता है 
ताकि "भरी रहे उमंगें"
इन्हें " संतोष" है 
"आँखों की चमक " दर्शाती है 
"अमावास" की काली रात में भी
"जरुरी है नया पथ "{
प्रेम का ..।   
 

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