Sunday 16 February 2020

होली में


फागुन माह आते ही मन क्यों बहकने लगे।
नयनों में प्रियतम के प्यार अब जगने लगे।।

बाल्टी में रंग घोल हाथ में पिचकारी भर,
भावनाओं के सुगबुगे एहसास मचलने लगे।

शब्दों ने रंग भरकर बहुत कुछ लिख डाला,
आज  होठों पे प्रणय के गीत  कुहकने लगे।

आलिंगन हेतु चेहरे का भोलापन ऐसा हुआ,
नयनों में इंद्रधनुषी सपन अब जलने लगे।

कमसिन उमर में और यौवन की तपन में  तो,
रंग  उनसे खेलने खातिर हाथ  बहकने लगे।

हां अपराधी मौसम हुआ प्यार में पागलपन,
मुलायम हाथ धरते शिल्पी वे सिहरने लगे।
               *****
           शिल्पी सुमन
         मीडिया प्रभारी
   । साहित्य संस्कृति मंच

आप ही के खातिर


मंच ही है सब कुछ सभी को यह बतायेंगे हम ,
बिन तेरे महफ़िल कभी न सजा पायेंगे हम ।

तरसाओ न हमें इतना कि जान ही निकल जाये ,
याद जब भी करोगी हमें ,याद बहुत आये गे हम ।

जब भी आईं उलझनें , तुम ने सुलझाया उन्हें ,
यह कभी सम्भव ही नही कि भूल जायेंगे हम ।

दिलदार हो तुम, यार भी, दिलरुबा भी तुम हो,
तुम्हारी खामोशी भला कैसे सहन कर पायेगे हम ।

आया फागुन का महीना तेरे बिना दिल बेचैन है ,
तुम्हें रंग लगाए बिना कैसे होली खेल पाएंगे हम।

है परेशान अब निरंकुश तुम्हें चुप देखकर ,
तेरी मीठी आवाज सुने बिना कैसे जी पाएंगे हम।


कामेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव 'निरंकुश'
*****************

Wednesday 12 February 2020

सरस्वती वंदना


जय माँ जय माँ जय जय माँ।

जय माँ ! विद्यादायिनी माँ !
तुम वसन्त में आई माँ
रंगोत्सव तुम लाई माँ
होली त्यौहार सुहाई माँ
जय माँ .........

धन्यवाद हे मात शारदे
मुझपे उपकार किया तुमने
कलम प्रेमी तेरा सुत कहाऊँ
मुझे यह वरदान दिया तुमने
धन्यवाद अर्पित है तुझको
जय माँ .......

विमलसरस्वती वेदांतरूपणी
जय जय वीणापाणिनी माँ
मैं अबोध क्या तुझे बखानूं
जय जय मंजुलभाषिणी माँ
धन्यवाद अर्पित है तुझको
जय माँ .........

अखिल विश्व तेरा गुण गाए
नत मस्तक हो तुझे मनाए
तुझसे प्राणी सब कुछ पाए
कमलपुष्प माँ तुझे चढ़ाएं
धन्यवाद अर्पित है तुझको
जय माँ ..........

लेकर तुम बसन्त हो आती
दुःख का पतझड़ दूर भगाती
चाहत विद्या की हो जगाती
लहर ज्ञान की सदा बहाती
धन्यवाद अर्पित है तुझको
जय माँ .........

बीता ग्रीष्म वर्षा शरद हेमंत 
शिशिर गया आया वसन्त
छह ऋतुओं में वसन्त आते ही
धरा सुहाती दिग दिगन्त
ऋतु की महिमा धन्य है माँ
धन्यवाद अर्पित है तुझको
जय माँ ........

काव्य सृजन का मुझे ज्ञान दो
बुद्धि दायिनी कष्ट हरो
साहित्य जगत में अलख जगाऊँ
मन के पापों को नष्ट करो
नित नव नूतन पद्य गढ़कर
कुछ तो नया दिखादूँ माँ
धन्यवाद अर्पित है तुझको
जय माँ ..........
               ★★★
   © #कामेश्वर_निरंकुशती वंदना

जय माँ जय माँ जय जय माँ।

जय माँ ! विद्यादायिनी माँ !
तुम वसन्त में आई माँ
रंगोत्सव तुम लाई माँ
होली त्यौहार सुहाई माँ
जय माँ .........

धन्यवाद हे मात शारदे
मुझपे उपकार किया तुमने
कलम प्रेमी तेरा सुत कहाऊँ
मुझे यह वरदान दिया तुमने
धन्यवाद अर्पित है तुझको
जय माँ .......

विमलसरस्वती वेदांतरूपणी
जय जय वीणापाणिनी माँ
मैं अबोध क्या तुझे बखानूं
जय जय मंजुलभाषिणी माँ
धन्यवाद अर्पित है तुझको
जय माँ .........

अखिल विश्व तेरा गुण गाए
नत मस्तक हो तुझे मनाए
तुझसे प्राणी सब कुछ पाए
कमलपुष्प माँ तुझे चढ़ाएं
धन्यवाद अर्पित है तुझको
जय माँ ..........

लेकर तुम बसन्त हो आती
दुःख का पतझड़ दूर भगाती
चाहत विद्या की हो जगाती
लहर ज्ञान की सदा बहाती
धन्यवाद अर्पित है तुझको
जय माँ .........

बीता ग्रीष्म वर्षा शरद हेमंत 
शिशिर गया आया वसन्त
छह ऋतुओं में वसन्त आते ही
धरा सुहाती दिग दिगन्त
ऋतु की महिमा धन्य है माँ
धन्यवाद अर्पित है तुझको
जय माँ ........

काव्य सृजन का मुझे ज्ञान दो
बुद्धि दायिनी कष्ट हरो
साहित्य जगत में अलख जगाऊँ
मन के पापों को नष्ट करो
नित नव नूतन पद्य गढ़कर
कुछ तो नया दिखादूँ माँ
धन्यवाद अर्पित है तुझको
जय माँ ..........
               ★★★
   © #कामेश्वर_निरंकुश

मुझे पता है


आपके हृदय की बात
सुनकर
बहुत कुछ सोचकर और गुनकर
जो भी मन मे विचार आया
मैंने आपको खुलकर बताया
फिर भी जो सच है
मुझे पता है
आज किसकी पूछ है
वही जिसके पास सबकुछ है
आप लाख किसी को
चाहें, मानें, जाने
उसके लिए कुछ भी
करने के लिए ठाने
लेकिन जिसकी याद में
स्नेहिल सुख की कामना कर
आप सारा दिन
पूरी रात बिताते हैं
उसके बिना चैन नहीं पाते हैं
इसका क्या  हैं अर्थ ?
उसे अनेक चाहने वाले हैं
आप क्यों सोचते हैं ब्यर्थ ?
प्रति दिन की तरह
कल सबेरा होते ही
आप चाहे कितने भी
भारी भारी शब्दों से
सजावट कर
सुविचार प्रेषित करें
...यदि
आँखों में स्नेह
होठों पर मुस्कान
ह्रदय में सरलता
मन में करुणा रहते हुए
मन तब पूछता है
क्या उसे सोचना अनर्थ है
मुँह बन्द है
इतना होते हुए भी
तुम्हारी आँखें क्यों ढूंढ रही है उसे
यही प्रश्न तुझे खाए जा रही है।
मन को अशांत बनाए जा रही है।।
           ★★★

Tuesday 11 February 2020

सृजन

जीव अनंत
जीवन अनंत
मानव ही एक
सब जीवों में उत्कृष्ट
मानव में
भावनाएँ
सम्वेदनाएँ
प्रवाहित होती रहती है
अनवरत
मानव
चाहता है
समेटना
इच्छाओं को
आकांक्षाओं को
कलम पकड़
सृजन की पीड़ा से
तड़पता है
झेलकर
कष्ट
दर्द
आह
तब
जन्मती है
कविता
पुस्तक में
संग्रहित होती हैं
कविताएँ
खरीददार
एक भी नही
प्रकाशित पुस्तक
आलमारी की
सेल्फ में पड़ी
निहारती है
स्वार्थ की
लिप्सा में लिपटे
मानव को
जिसकी चाहत है
भेंट में मिल जाए पुस्तक
अर्थ का अभाव
नहीं रहने पर भी
खरीद कर पढ़ना नहीं चाहते
वाह रे
विधि का विधान
पुनः जुट जाता है
सृजन में
सबकुछ जानते हुए
इसकारण कि
जीना चाहता
निरंकुश
सृजन कर
इस छलनापूर्ण समाज में
उलझकर।
               ★★★
   ©  #कामेश्वर_निरंकुश

बसंत की रात वैलेंटाइन

बसंत की
सबसे बड़ी खूबी
उसका रचनात्मक होना
बसंत की बात
सृजन की बात
निर्माण की बात
मौसम
लुभावना
सृजन का
सुहावना मौसम
बना दिया बसंत को
ऋतुराज
मानव के लिए
प्रेम और मदन का प्रतीक
साहित्य और साहित्यकार
सृष्टि के दिन से ही
करते आये है
बसंत की रात की बात
वैलेंटाइन
तो आज मनाने लगे
अपनी खुशियाँ जताने लगे
प्रकृति प्रदत्त बसंत
पूर्व से ही
खुशियाँ मनाने का
प्रेम में डूब जाने का
अनुपम उपहार है
इस मौसम में
प्यार ही प्यार है।
      *****
©   #कामेश्वर_निरंकुश।

Monday 10 February 2020

राष्ट्रीयता की भूख

दो जून रोटी के लिए
तड़पता यह पेट
नहीं चाहता अब
क्षुधा की पूर्ति
उसकी भूख
दहकते अग्नि की तरह
लील जाने को तैयार है
खड़े किए समाज मे
धर्म - जाति की दीवार
जिसने निर्मित किए हैं
रेत,
बालू
पत्थर,
ईंट के स्थान पर
वैमनस्यता,
लोलुपता,
सांप्रदायिकता और
हिंसक प्रवृतियों से
मैं भले भूखा हूँ
पर जीवित रहूँगा
तबतक
जबतक
राष्ट्रप्रेम का,
देशभक्ति का,
रक्षाहेतु
शहीद हुए
जवानों के प्रति
श्रद्धा का भाव
जन जन के हृदय में
न जगे राष्ट्रीयता की भूख
एक एक भारतीय के
मन मे न जगे।
            ★★★★★
     ©   #कामेश्वर_निरंकुश

अनुपम कृति

मुझे लगा
मेरी बीमारी
भाग गई
दर्द
अचानक
लुप्त हो गया
कमजोरी के स्थान पर
ताजगी
मन खिन्न के स्थान पर
प्रसन्न
मुरझाया चेहरा
खिल गया
सब कुछ तो
मिल गया
अब नहीं रहेगा
अभाव
तुम्हारा अकथनीय है
प्रभाव
तुम्हारी हर अदा
मनभावन
जेठ दुपहरी लगने लगा
सावन
अब नहीं चढ़ेगा
तेज ज्वर
नहीं होगी शरीर में
ऐंठन
नही रहेगा मन
खिन्न
मन मे भरी रहेगी
हरियाली
उदासी के स्थान पर रहेगा
हर्ष
मेरे जीवन में
उत्कर्ष
देखूँगा पुंनः
गौर वदन
बड़ी बड़ी चंचल
मादक आंखें
गुलाबी गाल
मदमस्त चाल
काली घटाओं सा
छाया केश
आकर्षित करती
मदमस्त जवानी
दो उभरते हुए
कमल के फूल
खिलखिलाते अधखुले
लाल लाल होंठ
पूरी देहयष्टि
किसी शायर की ग़ज़ल
किसी कवि की कविता
मेरी सबकुछ
बस केवल तुम
सृष्टि रचयिता की
शिल्पकार की
अनुपम कृति
हो तुम !
         ***

मंच का स्वर्ण जयंती


अक्षर अक्षर को गुँथकर
शब्दों को समेटकर
वाक्यों में ढालकर
सत्यम शिवम सुन्दरम जैसा
तैयार कर
हर्ष उत्कर्ष के साथ
शब्द-पुष्पों का हार
मंच के स्वर्ण जयंती वर्ष में
विद्वानों का
साहित्यकारों का
सहित्य साधकों का साहित्यानुरागियों का
संस्कृति कर्मियों का
सुनिश्चित करें आगमन
उन्हें नमन करने का
अभिनन्दन करने का
वन्दन करने के साथ
गले मे माला पहनाकर
अलंकृत कर
सम्मान प्रदान कर
मंच हुआ निहाल
सभी सदस्य रखें यह ख्याल
हमने मिलजुल कर
इस आयोजित उत्सव को
महोत्सव के रूप में
परिवर्तित कर
अतिथियों का शुभाशीष पाकर
सहित्य संस्कृति मंच का इतिहास
स्वर्णाक्षरों में अंकित कर दर्शाया।
हर्ष- उल्लास के साथ
मंच के स्वर्णजयंती वर्ष मनाया।।
                ★★★★★
      ©  #कामेश्वर_निरंकुश

आंगन की गौरैया


आज बहुत खुश हैं
खुश क्यों न हों
उनके बाबा भी खुश हैं
देखकर अपनी
आंगन की गौरैया को
नाम की महिमा को
साकार कर दिया
अपने आंगन में
मुक्ति ने।
नामकरण संस्कार में
रखे गए नाम की
एक गरिमा होती है
ईश्वर की अद्भुत महिमा होती है
एक एक शब्द पिरो कर
अपनी भावनाओं को
संवेदनाओं को
कविता के रूप में
परोस दिया है
पुस्तकाकार में
जिसमें समाहित है
परिवेश की सारी स्थितियां
बदलते ऋतु रंग की  परिस्थितियां
समेटकर
सहेज कर
जीवन के कैनवास पर उकेर कर
श्री श्री जगन्नाथ जी के समक्ष
मेरी आत्मा को
आज मिल गई
मुक्ति
मेरी ही लाड़ली,  प्यारी,
गौरैयामुक्तिं के द्वारा।
धन्य हुआ मै
......अरे हां !
मैंने देखा है उसे
बचपन से ही
अपने पंख को फैलाकर
मेरी खुशी के साथ साथ
परिवार के सदस्य तक ही नहीं
आस पास के सभी के प्रति
स्नेह लुटाती, मुस्कुराती, इठलाती
अपनी गौरैया को।
उसी का तो परिणाम है
प्रातः की बेला में
सुनहरी रश्मियां विकीर्ण कर
प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित होकर
आईं यह पुस्तक
" आंगन की गौरैया "।
          ****

इससे पहले कि


इससे पहले कि
मुझसे कुछ कहो
यह जान लो
मैं लाड़ला हूँ माँ का
सुपुत्र हूँ पिता का
शान हूँ परिवार का
स्वाभिमानी हूँ घर बार की।

मेरे अरमान
मेरी चाहत
असीमित है
जानकर भी तुम
नहीं जान पाओगे
मेरी अस्मिता
नहीं पहचान पाओगे
प्रकृति प्रदत्त हैं
मेरा कद
मेरी बलिष्ठ भुजाएं
चेहरे पर चेचक के दाग़
मेरी सृजन शक्ति
निरंकुश के नाम
मेरी कविताएं
मेरा मृदुल स्वभाव
मेरे प्रति औरों का आकर्षण
मेरी सारी खूबियाँ
कितना गिनाऊँ
इससे पहले कि.....

मेरी सांसों में
भारत माता की जयकार है
भारतीय सैनिकों से प्यार है
स्वयं मिटकर जो
दूसरे को संवार दे
राष्ट्र के प्रति प्यार दे
दुश्मन देखकर थर्राए
हिम्मत कहाँ जो आँख मिलाए
मैं राष्ट्रीयता की पुकार हूँ
समझ गए न
इससे पहले कि .....

तुम्हारी क्या चाहत है
आँखों की डोरी बता रही है
मेरी आत्मा मुझे चेता रही है
यहाँ नहीं मिलेगा पनाह
कुछ नहीं कर पाएगा
धारदार निगाह
पीछा छोड़ दो मेरा
इतना जान लो
इससे पहले कि .....

प्रशंसा सुनते सुनते
पक गए हैं मेरे कानं
एक भी शब्द नहीं बोलेगा
मेरा जुबान
कभी नहीं टूटेगा
मेरा अरमान
मैं काव्यकार हूं
रचनाकार हूं
भारतीय साहित्य की
अमिट हूँ शब्दकार हूं
यह मान लो
इससे पहले कि .....
       *****
  शिल्पी कुमारी "सुमन"

Sunday 9 February 2020

आगे ही बढ़ना है


एक एक अक्षर को समेटकर
शब्दों को एकजुट कर
वाक्यों को पंख बनाकर
फैले असीमित गगन में
मुझे दूर तक उड़ना है
बढ़ते जाए कदम
कभी नहीं रुकना है
आगे ही बढ़ना है।

हसरतें बड़ी पंख छोटे हैं
रास्ता कठिन तेज झोंके हैं
पथ पर इधर उधर
कैक्टस के कांटे हैं
लाभ हानि क्यों देखूं
घाटे ही घाटे हैं
धरा से गगन तंक
मुझे बस जुड़ना है।
कभी नहीं रुकना है
आगे ही बढ़ना है।।

बागों में बहुत कलियाँ हैं
कुछ झरती हैं कुछ खिलती हैं
तेज हवा के झोकों से
इधर उधर गिरती हैं
तूझे गिरना या झरना नहीं
तूझे तो खिलना है।
कभी नहीं रुकना है
आगे ही बढ़ना है।।

तुम 'सुमन' हो पर
नहीं होने दो अहसास
प्रच्छन्न प्रतिभाएँ
दे रही तेरा साथ
कदमों से नापोगी
पूरा आकाश
मुझे लक्ष्य पर अटल रहना है।
कभी नहीं रुकना है
आगे ही बढ़ना है।।

आ रहे हैं अवरोध
पर दूर तक बहना है
रूखी सूखी खा बड़ी हुई
दुर्गम पर्वत पर चढ़ना है
ऊर्जा है बहुत तुझमे
कभी नहीं डरना है।
कभी नहीं रूकना है
हां आगे ही बढ़ना है।
आगे ही बढ़ना है।
       *****

उसी के खातिर


प्यार
लगाव
अपनापन
बढ़ता जाता है
किसी और के खातिर
कुछ न कुछ
करने की ललक
सीमा लाँघकर भी
अपना होंने के कारण
उसे अपना समझने के कारण
विश्वास था मुझे
और उसे भी
एक दूसरे पर
फिर
दुराग्रह क्यों
अविश्वास क्यों
एक ही झटके में
सब का सब
चूर चूर
क्या इसकी कड़ी
इतनी कमजोर
सत्यता जानने हेतु
दिल और दिमाग पर
अगर लगाते जोर
सामने दीख पड़ता
अविश्वास का बना हुआ
पहाड़
स्वयं पर
अपनी सोच पर
आस्था
विश्वास
करना ही होगा
अपना अगर झूठ भी
कभी कभार बोल दे
तो उसने छिपी होती है
भलाई
हित
उसी की खातिर
जिसे चाहा है
माना है
हृदय से
सच्चे मन से
अपना मानकर
सबकुछ तुम्ही हो
यही जानकर !
     ★★★
©  °#कामेश्वर_निरंकुश

जीवन



जीवन में शुन्यता या
शुन्यता में जीवन
उड़ान भरता
वायुयान
जमीन छोड़
विस्तृत आकाश में
तेज रफ्तार से
गंतव्य तक
पहुँचाने में
बादलों को चीरते हुए
ऊपर जाने पर
हुआ अहसास
शुन्यता का
कहीं कुछ भी नहीं
केवल बादलों का समूह
अलग अलग आकार में
नदी पहाड़ जंगल
पक्षी कहीं भी नहीं
कोई भी जीव नही
आँखों के सामने
तैरता अमंगल
शुन्य शुन्यता
फ़ैल गया
जीवन का क्या मोल
कौन सकेगा तौल।
     ★★★
©   #कामेश्वर_निरंकुश

वसन्त


यह   देवों   का   क्रीड़ास्थल
देवीकुल    की       रंगशाला ।
जहाँ स्वच्छ्ता परिचारक था
शीतल     मारुत    मतवाला ।।

पतझड़ का कभी  प्रवेश नहीं
हेमंत -  उष्ण  भी   डरते   थे ।
जहाँ  सदा  ऋतुराज  अकेले
राज्य    अकंटक    करते  थे ।।

यहीं ' तेनज़िंग ' संग  हिलेरी
मधुमय    रात    बिताई   थी ।
और  छीन जल  मेघसुतों से
अपनी    प्यास   बुझाई   थी ।।

देव  हिमालय  के आंगन  में
समता  का  शुभ  राज  जहाँ ।
नाचा  करती  थी  अलिवामा
धूम   मची   थी   जहां - तहाँ ।।

आशा  की किरणों को  लेकर
छाई     उषा      की      लाली ।
कर    में   मधुमय   दीप    धरे
छाई    वसंत   की    हरियाली ।।
               *****
        @   #  कामेश्वर  निरंकुश।

ललक के बिना


कुछ नहीं
ललक के बिना
हम खुद पर ध्यान दें
कोई टीस
कोई ललक
हमारे भीतर से ही उठती है
यह ललक ही
मुझे आगे ले जाएगी
यह टीस ही
मुझसे कुछ बेहतर करवा लें जाएगी
भीतर से उठने वाली आवाज को शब्द दें
एक एक शब्द को गूंथते जाएं3
अगर हमें खारिज होना
और करना आता है तो
हम जरूर सफल होंगे
बेहतर करने के लिए
जरूरी है
स्थिरता
प्रतिबद्धता
धैर्य की आवश्यकता
नए साल में नया काम करें
पर पुराना न छोड़ें
पुराना काम खतम करने के बाद
नया काम में पैर रखने की
मजबूत जगह मिलने के बाद ही
पुराना छोड़े।
नए वर्ष में अपनी लेखनी को
उसी ओर मोड़ें।
                   ★★★
       © #कामेश्वर_निरंकुश

स्वेटर से बुनी कविता.


 लैपटॉप पर
अक्षरों का चयन कर
मन के भावों को
शब्दों में पिरोकर
कविता सृजित करनेवाली
हाथ की उंगलियां
ठंढ से ठिठुरते
वृद्धावस्था में रिक्शा खींचते
उस महामानव को देखकर
उसी कवयित्री ने
हाथ से पकड़े पैकेट से
अपनी उंगलियों से बुने हुए
एक स्वेटर निकाला
रिक्शावाले के हाथों में थमाकर
कहने लगी
पहनकर बताओ गर्म है क्या ?
भौचक्के खड़े रिक्शेवाले ने हामी भरी
कवयित्री मन ही मन खुश हुई
बुदबुदाई आज मैंने
सही अर्थों में उंगलियों से
एक गरीब की खुशी के लिए
कविता गढ़ी है !
क्या आपने ऐसी कविता कभी पढ़ी है ?
              ★★★
      #कामेश्वर_निरंकुश

आजाद हिंद फौज



आजाद हिंद फौज की सेना दुश्मन से थी लोहा लेती।
किसी  घोर  संकट में भी  वह  थी अपनी  सेवा देती।।
हमें  गर्व  है  उस  सेना  पर , बड़ा  काम  था  उसका।
और  काम  के बल  पर ही तो, बड़ा  नाम था उसका।।

आजाद हिंद  सेना के जवान थे धीर, वीर  बलशाली।
सिर में कफ़न  बांधकर करते थे भारत की रखवाली।।
भीषण  गर्मी  में, कड़क  ठंढक में और  घोर  वर्षा में,
उनकी  मनती  थी  होली , उनकी  मनती  थी दीवाली।।

पर्वत  पर  भी  रहते  थे,  घाटी में , खंदक  खाई  में।
डुबकी  लेते  थे  महासिंधु  की , निस्तल  गहराई  में।
उनकी थी  सेना जल में, थल में, और थी वायु में भी,
पल  में  थे जाते  ऊपर और वे , नभ  की  ऊँचाई  में।।

भारत  माँ  के  बेटे  थे आजाद  हिन्द  फौज  के  बेटे।
कभी  खड़े  होकर  लड़ते  थे और  कभी  वे लेटे लेटे।।
वे  अप्रतिम  वीर   जवान  थे , वे  रण  में  अर्जुन  थे,
नेताजी  सुभाष  के  नेतृत्व  में , उनके  धुन  थे पक्के।।

बंदूकों,   तोपों   के  आगे   डटे   खड़े   वे   रहते  थे।
और  वर्फ़  की  चादर  ओढ़े  कहीं  भी  पड़े  रहते थे।।
उनका  साहस  अतुलनीय  था , और  इरादे  थे पक्के।
दुश्मन  से  लोहा  लेते थे , और  उनके  छुड़ाते  छक्के।।
             
       आज नेताजी के जन्म दिन पर उन्हें कोटि कोटि नमन।
                                   ★★★

आजाद हिंद फौज


भारत को आजाद करने हेतु
नेताजी का संकल्प
जिसका कोई नहीं था विकल्प
राष्ट्र सर्वोपरि
देश महान
हाथ जोड़कर
चलने से
नहीं मिलेगी आजादी
बनानी होगी फौज
देश की आजादी के लिए
आजाद हिंद फौज
नेताजी सुभाष जी के नेतृत्व में
बढ़ चले थे कदम
कैसे भूलें हम
सच तो सच होता है
आजाद हिंद फौज के
महानायकों !
आजाद भारत के
प्रथम प्रधानमंत्री
त्रिपुरी जबलपुर में
राष्ट्रीय अधिवेशन में
राष्ट्रीय अध्यक्ष नेहरू
और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की
कुटिल नीति छल के शिकार
महान योद्धा, शौर्य, पराक्रमी
जन जन के प्रिय
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस !
आपमें कोई नहीं थी कमी
भारत के सच्चे सपूत
जय हिंद के प्रेरक
तुम्हें कोटि कोटि नमन !
सब करे हैं वंदन!!
तेरा हार्दिक अभिनंदन !!!
          ★★★

गणतंत्र दिवस

फिर  आये  संकल्पों  के दिन, फिर  मंगल दिन आया।
जनता   ही   संप्रभु,  हमने   अपना  गणतंत्र   बनाया।।

हम विशाल जनतंत्र कि हम तो हैं, जन जन की आशा।
सबके  लिए  सुखद  हो  छाया, यह अपनी  परिभाषा।।

सफल  नहीं  होगी  हिंसा, जो आज  कहीं  दिखती  है।
अर्थवान यह कलम समझती, सच को सच लिखती है।।

यह  भारत  है  गणतंत्र  हमारा,  हम  जयकार  मनाते।
हम   जनतंत्र  और  जनता  की   ही  सरकार   मनाते।।

हम  अपनी धरती  के  धन  हैं, नहीं किसी  से कम हैं।
हम  हो  जाते  सख्त  समय पर,  वैसे  बहुत नरम  हैं।।

सृजनशील    हम  और   हमारे  सधे   हुए   सपने  हैं।
हम  होंगे  विकसित  भारत  हम कोटि कोटि अपने हैं।।

अवरोधों   के   ऊपर  तो  हम    अपना  चरण   धरेंगे।
हम  अपने   बल  पर   ही  भारत  का  निर्माण  करेंगे।।
                              ★★★
                ©  #कामेंश्वर_निरंकुश

ऐसे_में_चुपचाप


आज अपने देश में
राजनीति की चाल
बिगाड़ने हेतु
कुछ कर रहे हैं बवाल
गणतंत्र दिवस के
कुछ दिन ही रह गए शेष
क्यों हम भूल रहे हैं संविधान
देशहित राष्ट्रप्रेम को विस्मृत कर
कौन सा रच रहे हैं विधान
हमे याद रखनी चाहिए
कम नहीं होता
सागर का खारापन
कम नहीं होती
पत्थर की सख्ती
कम नहीं होता
काँटों का नुकीलापन
कम नहीं होती
पर्वत की संवेदनहीनता
कम नहीं होता
आकाश का अंतहीन फैलाव
कम नहीं होता
रेगिस्तान का प्रभाव
ऐसे में
कोई भी हो
हम हों या आप
क्या
बस देखते ही रहेंगे चुपचाप ?
              ★★★
   ©  #कामेश्वर_निरंकुश

सावधान

अपने  राष्ट्र  को
ध्वस्त करने के आतुर
भारत को
टुकड़े - टुकड़े  करने में  लगे
हिसा  समर्थन के पोषक
पड़ोसी  राज्य के समर्थक
भारतीय सेना पर
प्रश्न लगाने वाले
महाकपटी
भ्रष्ट  नौकरशाह से लेकर
राजनीति तक
जी जान से लगे हैं
अच्छी तरह  कीजिए
उनकी पहचान
उनसे रहना है सावधान।

समय बहुत कम है
जो करना है सब करले
अवार्ड वापसी,
मोमबत्ती,
बड़ी बिंदी,
लाल सलामी,
हँसिया गैंग,
आपटर्ड,
याचिका गैंग,
टुकड़े टुकड़े गैंग,
असहिष्णुता गैंग,
जातिवाद घृणा फैलाने वाला गैंग,
हलाला और ट्रिपल तलाक का समर्थन कर
देश मे शरिया कानून की मांग करने वाला गैंग,
कुछ  अल्पसंख्यको को साथ लेकर
अधिकार  के नाम पर
गुमराह  करने वाला
मूक बधिर गैंग......
इन सभी से
शांति और अहिंसा के लिए
सांप्रदायिक सद्भावना के लिए
रहना  है  देश के नागरिकों  को 
सावधान।

ये भूल गए
अब्दुल रहीम खानखाना को
सूरदास और कबीर मस्ताना को
शहनाई वादक बिस्मिल्ला ख़ां को
जां बाज अब्दुल हमीद को
बहादुर शाह जफर को
जो इसी राष्ट्र के  लिए  मर मिटे
वन्दे मातरम्
कहते हुए।

ये अब समझ नहीं पाएंगे
भारत में रहकर
पाकिस्तान का गुण गाएंगे
आतंकवादियों को देंगे पनाह
वैमनस्यता फैलाना ही
इनकी  शुरू से रही है चाह
हरसमय हमें
इनसे रहना है
सावधान !
सावधान !!
सावधान !!
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        ©  #कामेश्वर_निरंकुश

Saturday 8 February 2020

वाह रे सांसद

देश को चलानेवाले
कर्णधार कहे जाने वाले
बुद्धिमान समझे जाने वाले
सांसद की आज वाणी
उनका  आचरण
और वैचारिक व्यवहार
देश की गरिमा को
कर रहा है तार तार
कोई महात्मा गांधी के
स्वतंत्रता आंदोलन को
कह रहा है ड्रामा
तो कोई किसी को
रावण की औलाद
वे भूल चूके हैं
जनता की फरियाद
कोई दे रहा है
गोली मारने की चेतावनी
तो कोई कर रहा है
देश तोड़ने की मनमानी
कोई अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर
देश को तोड़ रहा है
तो कोई तीन सौ सत्तर के नाम पर
साम्प्रदायिकता का जहर जोड़ रहा है
वे भूल गए हैं के
संसद भवन की गरिमा
वह संसद भवन
जिसे कहा जाता है
लोकतंत्र  का  मन्दिर
पर आज ऐसा लगता है
वही जनता का प्रतिनिधि
वहां देशहित और जनहित पर
विचार विमर्श के बजाए
व्यर्थ की बहस में
समय नष्ट कर रहा है।
अंतर्गल बातों से
स्वयं को भ्रष्ट कर रहा है।।
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