फिर आये संकल्पों के दिन, फिर मंगल दिन आया।
जनता ही संप्रभु, हमने अपना गणतंत्र बनाया।।
हम विशाल जनतंत्र कि हम तो हैं, जन जन की आशा।
सबके लिए सुखद हो छाया, यह अपनी परिभाषा।।
सफल नहीं होगी हिंसा, जो आज कहीं दिखती है।
अर्थवान यह कलम समझती, सच को सच लिखती है।।
यह भारत है गणतंत्र हमारा, हम जयकार मनाते।
हम जनतंत्र और जनता की ही सरकार मनाते।।
हम अपनी धरती के धन हैं, नहीं किसी से कम हैं।
हम हो जाते सख्त समय पर, वैसे बहुत नरम हैं।।
सृजनशील हम और हमारे सधे हुए सपने हैं।
हम होंगे विकसित भारत हम कोटि कोटि अपने हैं।।
अवरोधों के ऊपर तो हम अपना चरण धरेंगे।
हम अपने बल पर ही भारत का निर्माण करेंगे।।
★★★
© #कामेंश्वर_निरंकुश
जनता ही संप्रभु, हमने अपना गणतंत्र बनाया।।
हम विशाल जनतंत्र कि हम तो हैं, जन जन की आशा।
सबके लिए सुखद हो छाया, यह अपनी परिभाषा।।
सफल नहीं होगी हिंसा, जो आज कहीं दिखती है।
अर्थवान यह कलम समझती, सच को सच लिखती है।।
यह भारत है गणतंत्र हमारा, हम जयकार मनाते।
हम जनतंत्र और जनता की ही सरकार मनाते।।
हम अपनी धरती के धन हैं, नहीं किसी से कम हैं।
हम हो जाते सख्त समय पर, वैसे बहुत नरम हैं।।
सृजनशील हम और हमारे सधे हुए सपने हैं।
हम होंगे विकसित भारत हम कोटि कोटि अपने हैं।।
अवरोधों के ऊपर तो हम अपना चरण धरेंगे।
हम अपने बल पर ही भारत का निर्माण करेंगे।।
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© #कामेंश्वर_निरंकुश
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