Tuesday 11 February 2020

सृजन

जीव अनंत
जीवन अनंत
मानव ही एक
सब जीवों में उत्कृष्ट
मानव में
भावनाएँ
सम्वेदनाएँ
प्रवाहित होती रहती है
अनवरत
मानव
चाहता है
समेटना
इच्छाओं को
आकांक्षाओं को
कलम पकड़
सृजन की पीड़ा से
तड़पता है
झेलकर
कष्ट
दर्द
आह
तब
जन्मती है
कविता
पुस्तक में
संग्रहित होती हैं
कविताएँ
खरीददार
एक भी नही
प्रकाशित पुस्तक
आलमारी की
सेल्फ में पड़ी
निहारती है
स्वार्थ की
लिप्सा में लिपटे
मानव को
जिसकी चाहत है
भेंट में मिल जाए पुस्तक
अर्थ का अभाव
नहीं रहने पर भी
खरीद कर पढ़ना नहीं चाहते
वाह रे
विधि का विधान
पुनः जुट जाता है
सृजन में
सबकुछ जानते हुए
इसकारण कि
जीना चाहता
निरंकुश
सृजन कर
इस छलनापूर्ण समाज में
उलझकर।
               ★★★
   ©  #कामेश्वर_निरंकुश

No comments:

Post a Comment