दो जून रोटी के लिए
तड़पता यह पेट
नहीं चाहता अब
क्षुधा की पूर्ति
उसकी भूख
दहकते अग्नि की तरह
लील जाने को तैयार है
खड़े किए समाज मे
धर्म - जाति की दीवार
जिसने निर्मित किए हैं
रेत,
बालू
पत्थर,
ईंट के स्थान पर
वैमनस्यता,
लोलुपता,
सांप्रदायिकता और
हिंसक प्रवृतियों से
मैं भले भूखा हूँ
पर जीवित रहूँगा
तबतक
जबतक
राष्ट्रप्रेम का,
देशभक्ति का,
रक्षाहेतु
शहीद हुए
जवानों के प्रति
श्रद्धा का भाव
जन जन के हृदय में
न जगे राष्ट्रीयता की भूख
एक एक भारतीय के
मन मे न जगे।
★★★★★
© #कामेश्वर_निरंकुश
तड़पता यह पेट
नहीं चाहता अब
क्षुधा की पूर्ति
उसकी भूख
दहकते अग्नि की तरह
लील जाने को तैयार है
खड़े किए समाज मे
धर्म - जाति की दीवार
जिसने निर्मित किए हैं
रेत,
बालू
पत्थर,
ईंट के स्थान पर
वैमनस्यता,
लोलुपता,
सांप्रदायिकता और
हिंसक प्रवृतियों से
मैं भले भूखा हूँ
पर जीवित रहूँगा
तबतक
जबतक
राष्ट्रप्रेम का,
देशभक्ति का,
रक्षाहेतु
शहीद हुए
जवानों के प्रति
श्रद्धा का भाव
जन जन के हृदय में
न जगे राष्ट्रीयता की भूख
एक एक भारतीय के
मन मे न जगे।
★★★★★
© #कामेश्वर_निरंकुश
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