यह देवों का क्रीड़ास्थल
देवीकुल की रंगशाला ।
जहाँ स्वच्छ्ता परिचारक था
शीतल मारुत मतवाला ।।
पतझड़ का कभी प्रवेश नहीं
हेमंत - उष्ण भी डरते थे ।
जहाँ सदा ऋतुराज अकेले
राज्य अकंटक करते थे ।।
यहीं ' तेनज़िंग ' संग हिलेरी
मधुमय रात बिताई थी ।
और छीन जल मेघसुतों से
अपनी प्यास बुझाई थी ।।
देव हिमालय के आंगन में
समता का शुभ राज जहाँ ।
नाचा करती थी अलिवामा
धूम मची थी जहां - तहाँ ।।
आशा की किरणों को लेकर
छाई उषा की लाली ।
कर में मधुमय दीप धरे
छाई वसंत की हरियाली ।।
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@ # कामेश्वर निरंकुश।
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