Friday 6 November 2015

उलगुलान

झारखण्ड में
झारखण्ड के नेतृत्वकर्ता
नहीँ रहे दुखहर्ता
बन गए तिजोरिभर्ता
उनमे नही रहा
कुछ करने का छोह
भूल गए उलगुलान
आदिवासी विद्रोह
आदिवासी समुदाय
'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय'
जल जमीन जंगल का अभिप्राय
जंगल पर आश्रित
श्रेय से विमुख
बन रहे हैं
मनोवांछित नेतृत्वकर्ता
आजीविका का विकल्प न देकर
जंगल से भगाकर
तिल-तिल मरने के लिए
मौत के मुंह में धकेल रहें हैं
औद्योगीकरण की आड़ में
आजादी के छियासठ साल बाद भी
विस्थापन
पलायन
कुशासन
मनमानी शोषण से
इसी जंगल में
दंड पेल रहे हैं
जंगल की करते हैं
माँ की तरह
पूजा
मान-सम्मान
आज के परिवेश मे
झेल रहे अपमान
मानस -पटल पर
पुनः उभर रहा है
उलगुलान
बिरसा मुंडा
भारत के समस्त उत्पीड़ित
आदिवासियों के भीतर
प्रतिरोधी मानसिकता
पैदा करने में
सामर्थ्यवान
व्यक्तित्व का धनी
राष्ट्रवादी महान
भुलाया जा रहा है
उनका बलिदान
जंगल है महान
बिसराया जा रहा है
वन- सृजन
वन-संरक्षण
पर्यावरण के नाम पर
अर्थ कमाने में 
भँजया जा रहा है

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