Saturday 7 November 2015

जंगल

हिंसक  जन्तुओं से दूर अब हो रहा जंगल।
आतंकियों  के जाल  में  घिर रहा  जंगल।।

बारूद  बम  बंदूक  अब  शहर  से  हुए दूर।
जानलेवा   अस्त्र-शस्त्र   रख  रहा   जंगल।।

असामाजिक  लोग   जो शहरों  में जमे थे।
अब  उन सभी  को  पनाह दे  रहा  जंगल।।

अवैध  लकड़ियों  को  काट  तस्करी  होती।
तस्करों  को  मालामाल  कर  रहा  जंगल।।

धरोहर जड़ी बूटी औषधि जो जंगलों में थी।
उसे  सहेज  कर नहीं रख पा  रहा  जंगल।।

शहर   के   कुछ  लोग  अब   जंगली   हुए।
जंगल  की  हालत  देख कर रो रहा जंगल।।

रही ऋषि मुनि साधुओं  की साधना स्थली।
जाने  कहाँ वे खो गए  यह  सोचता जंगल।।

सांय-सांय  सुखद  हवा  जंगल  से गई रूठ।
धाँय-धाँय  की  ध्वनि  से  काँपता  जंगल।।
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