Monday 9 November 2015

आदिवासी

झारखण्ड
हरा -  भरा प्रदेश
आकर्षित करती प्राकृतिक छटा
चट्टानी पर्वत
कल - कल छल - छल नाद कर
प्रवाहित होती सर्पीली नदियाँ
पहाड़ों को चीरकर
कर्मठता, सुदृढ़ता दर्शाते
झरते गिरते हरसिंगार की तरह
श्वेत हिम की फुहार की तरह
जलप्रपात।
शीतल स्वच्छ प्रदूषणमुक्त
बहती बयार
सैलानियों, दर्शनार्थियों को मोहित करते
लुभाते पर्यटन स्थल।

निश्छल, निष्कपट
पत्ते झाड़ फ़ूल
सुसज्जित
आदिम जनजाति की संस्कृति बिखेरती
मांदर की थाप पर थिरकती
झूमती,  नाचती, गाती
कृत्रिमता से दूर
वन की सुंदरियाँ।
कूदती - फाँदती जैसे
वन वनक्षेत्र की तितलियाँ
हँसी की सम्मोहक फुहारे उंडेलती
श्रद्धा से
अपनेपन से
सहृदयता से
आगन्तुकों को
अपने देश में
झारखण्ड प्रदेश में
भिन्न-भिन्न परम्परा के वेष में
कहती है 
जोहार।

जंगलों से प्रेम
वन - जंतुओं से दोस्ती
चौड़ा वक्ष 
चमकता ललाट
श्याम वर्ण
हँसुली की छाप
गोदाए हुए दाग
अर्द्धनग्न तन
कर्तव्यपरायणता में प्रवीण
अधिकार से विमुख
अपनी धुन में लीन
मांसल देह
बलिष्ठ भुजाएँ
नम्रता से झुकी आँखें
भेदभाव लाभ-लोभ से दूर
आदिम जनजातियों के वंशज
आदिवासी।
कन्धे पर झूलते तीर-कमान
प्रबल ब्यक्तित्वमान
जीवन अथक
गतिमान
हम है झारखण्डी
हमे है अभिमान।
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