Tuesday 3 November 2015

मेरे बच्चे

मैं चिंतित और उदास हूँ
छूट रही है
मेरे बच्चों से
इस धरती की बहुत सारी चीजेँ
जिन्हें वो शायद ही जान पाये।

बन्द कोठरी में 
आँख खुलते ही
टीवी, कम्प्यूटर, नेट की दुनिया में
तारों से पहुंचनेवाली 
खबरों और चकाचौन्ध मस्ती
मेरे बच्चों की अंगुलियाँ
रिमोट, माउस और मोबाइल के
बटनों पर खेलती, नाचती, उछलती है।

बन्द कमरे में ही
सारे मौसम गुजर जाते हैं
बंद कमरे में ही
दुनिया के मौसम की खबरें
देश दुनिया इंसान पक्षी
सबकी खबरें
पर नही जानते कि
बाढ़ जिस समय आती है नदी में
नदी किस तरह आगाह करती है
पातर काका क्यों खेत जोतते वक्त
तोतो-नोनो कहता है
क्यों सूखी नदी सोंधी सोंधी
महक उठती है।

सचमुच मैं चिंतित और उदास हूँ
कि नही जान पाएंगे
मेरे बच्चे 
कुपुंग (कोहनी) और बंगरु (कुसुम फल ) से तेल निकलने
चिड़िया-मछली पकड़ने की
देशज तकनीक
महुए के स्वादिष्ट व्यंजन
भुने हुए भापे हुए 
और इमली के बीच के साथ
महुए का स्वाद।

सरहुल पर्व के पहले
जंगल के फल-फूल
तोड़ने खाने की मनाही
करमा के बाद
क्यों भेलवा की टहनियाँ
खड़े करते हैं बाना दा
ओह ! नही जान पाएंगे
मेरे बच्चे।

नहीं जान पाएंगे
कुली, बुढी, सनई फूल
और चूहे की कहानी
नहीं जान पाएंगे
वर्षा से पहले 
चिड़ियों का अपने अण्डों को ढोना
नही जान पाएंगे नृत्य
पाडू  ठडिया लहसुवा
और न ही जान पाएंगे
वाद्य बोरों का पेछौरी करया और पड़िया।

टैटू पता है
पर गोदना खो रहा है
लिपे आँगन में 
चांदनी रात और बोरसी के पास
नानी दादी की कहानियों का सुख
आग में सकरकन्द मछली
पकाकर खाने का स्वाद
नहीं पा सकेंगे 
मेरे बच्चे।

आह !
कितनी कितनी बातें
छूट जाएँगी मेरे बच्चों से
क्योंकि नही लिखी गई है
कोई किताब इन पर
नही बना है
कोई साफ्टवेयर 
और न ही बचे हैं अब
धुमकुडिया गितिओडा

इसलिए छूट जाएँगी
ये सारी चीजें
वे सारे सुख-दुःख
मेरे बच्चों से
इसलिए चिंतित और उदास हूँ मैं।
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