Saturday, 7 November 2015

पहाड़ पर

आतंकियों  का  डेरा  अब जमता पहाड़ पर।
चैन  और  सुकून  नहीं  अब  है पहाड़ पर।। 

बारूद, बम, बन्दूक या फिर जानलेवायन्त्र।
अक्सर ही  मिला  करते हैं अब पहाड़ पर।।

ऋषियों-मुनियों  का  जो  स्थान  था कभी।
अब ध्वंस औ विनाश ही दीखता पहाडपर।। 

पर्वत  की  गुफाओं  में थे  जो  देवी-देवता।
जाने कहाँ  वे जा छिपे  हैं अब  पहाड़ पर।।

हर   पहाड़  पर   फ़क़त   धुआँ   ही  धुवाँ।
ग्रीन   हंट  वाले  हैं  दीखते  पहाड़   पर ।।
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