Saturday 31 October 2015

तुम

तुम सुबह की अलमस्त नींद
मुर्गे की बांग
कलेवा का भात
शाम की चाय
और रातों की
लोरियों की तरह हो।
तुम चिड़ियों का कलरव
बच्चों की किलकारी
प्रतीक्षित मेहमान
कौवे की टेर 
और छत पर
पसरी चाँदनी की तरह हो।
तुम मिलने से पहले ही
बिछुड़ने की छटपटाहट
बरसों का टूटता नेहबन्ध
अपने आगोश में लेने का आतुर 
दशम जलप्रपात की 
दहशत करती गूँज
और सखुए के जंगल से आती
जानी पहचानी 
आवाज की तरह हो।
तुम साँझ को जंगल से लौटते
जानवरो के ठरकी की आवाज हो
हाँ हाँ तुम
मुझमे उर्जा भरते
उर्जा श्रोत हो।
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