मइयाँ दो दिनों से लापता है
क्या आपको पता है ?
वह शहर घूमने आई थी
बहुत दिनों से आश लगाई थी
क्या आपको पता है ?
वह शहर घूमने आई थी
बहुत दिनों से आश लगाई थी
क्या कहा उसका नाम ?
कैसी बातें करते हैं आप ?
भला नदी के फुदकते, दौड़ते, बहते
पानी के उस अंश को पकड़कर
उस पर कोई नाम
खोदा जा सकता है ?
भला नदी के फुदकते, दौड़ते, बहते
पानी के उस अंश को पकड़कर
उस पर कोई नाम
खोदा जा सकता है ?
आप शहर आकर
शहरी बन कर भले ही
अपने बच्चों का नामकरण कर
किसी भी नाम से पुकारते हैं
तब कोई उसे पह्चानता है
परन्तु हम वनवासी
गंध से पहचानते हैं
आहटों से सुनते हैं
नाम से नहीं जानते हैं ।
शहरी बन कर भले ही
अपने बच्चों का नामकरण कर
किसी भी नाम से पुकारते हैं
तब कोई उसे पह्चानता है
परन्तु हम वनवासी
गंध से पहचानते हैं
आहटों से सुनते हैं
नाम से नहीं जानते हैं ।
उसने कपड़े क्या पहन रखें हैं ?
कैसी बेतुकी बात करते हैं आप ?
धरती को ही बिछाती-ओढ़ती
रही है वह
हरे लिवास की तरह था
उसके लिए
पूरा का पूरा जंगल ।
कैसी बेतुकी बात करते हैं आप ?
धरती को ही बिछाती-ओढ़ती
रही है वह
हरे लिवास की तरह था
उसके लिए
पूरा का पूरा जंगल ।
क्या कहा आपने ?
वह शहर में नही आई
नही नही !!
यह कैसे कहते हैं भाई ?
घासों से घिरी उस पगडंडी ने
आज तक संजो कर रखे है
अपने सीने पर
उसके कोमल पाँव के
छोटे छोटे निशान
जो अब भी कंपकपा रहे हैं
विदा होने के बाद
पहाड़ों के झुर्रीदार हाथ
सुनाई पड़ती है
वनफूलों की झाड़ियों में
उसकी खिलखिलाहट ।
वह शहर में नही आई
नही नही !!
यह कैसे कहते हैं भाई ?
घासों से घिरी उस पगडंडी ने
आज तक संजो कर रखे है
अपने सीने पर
उसके कोमल पाँव के
छोटे छोटे निशान
जो अब भी कंपकपा रहे हैं
विदा होने के बाद
पहाड़ों के झुर्रीदार हाथ
सुनाई पड़ती है
वनफूलों की झाड़ियों में
उसकी खिलखिलाहट ।
कुछ और बताऊँ ?
आपको कैसे समझाऊँ
क्या आपने फूलों को तोड़कर
अपनी अँजुरी में रखा है
कैसा लगा था स्पर्श ?
उसने हर मौसम को
आईने में उतारा है
ऋतुओं की ऊँगली पकड़ कर
चलती है वह
फूटने लगती है वसंत में
उसकी नर्म नर्म नई कोपलें
महक उठती है पतझड़ में
महुए के फ़ूल सी स्मृतियाँ
पेड़ से गिरते हैं पत्ते
आपको कैसे समझाऊँ
क्या आपने फूलों को तोड़कर
अपनी अँजुरी में रखा है
कैसा लगा था स्पर्श ?
उसने हर मौसम को
आईने में उतारा है
ऋतुओं की ऊँगली पकड़ कर
चलती है वह
फूटने लगती है वसंत में
उसकी नर्म नर्म नई कोपलें
महक उठती है पतझड़ में
महुए के फ़ूल सी स्मृतियाँ
पेड़ से गिरते हैं पत्ते
मानो उसके अन्तस् की उदासी लिए ।
यह कहना सही है
इस खिलती जवानी में
लड़कपन की नादानी में
उसे अकेले नही जाना था
परन्तु क्या करूँ ?
वह शुरू से ही कहती थी
मुझे शहर जाना है
अपनी जिद में उसने कभी
किसी को नही माना है ।
इस खिलती जवानी में
लड़कपन की नादानी में
उसे अकेले नही जाना था
परन्तु क्या करूँ ?
वह शुरू से ही कहती थी
मुझे शहर जाना है
अपनी जिद में उसने कभी
किसी को नही माना है ।
कोई शहरी जंगली बनकर
करता होगा दुर्व्यवहार
नहीं नहीं ऐसा मत कहो
हम तो वनवासी हैं
जब भी कोई शहरी
जंगल में फंस जाता है
हम बचाते हैं
जंगल के बाहर तक
सुरक्षित पहुंचाते हैं
दीमक एक पेड़ को भले ही खोखला कर दे
पर हम वनवासी
पेड़ में कभी भी दीमक नही लगने देते ।
करता होगा दुर्व्यवहार
नहीं नहीं ऐसा मत कहो
हम तो वनवासी हैं
जब भी कोई शहरी
जंगल में फंस जाता है
हम बचाते हैं
जंगल के बाहर तक
सुरक्षित पहुंचाते हैं
दीमक एक पेड़ को भले ही खोखला कर दे
पर हम वनवासी
पेड़ में कभी भी दीमक नही लगने देते ।
आपका कहना बिलकुल ठीक है
बिना सबूत के थाने में
नही लिखाई जाती रपट
लेकिन आप कानून को जानते हैं
वनवासियों को नही पहचानते हैं
क्या आपका कानून सुन सकेगा
फूलों की झाड़ियों का बयान ?
देख सकेगा पहाड़ों के झुर्रीदार हाथ
समझ सकेगा कल-कल नाद करती
नदियों और झरनों की गति को ?
इसीलिए कहता हूँ
आप आत्मा से पूछिए
शहरी मत बनिए ।
बिना सबूत के थाने में
नही लिखाई जाती रपट
लेकिन आप कानून को जानते हैं
वनवासियों को नही पहचानते हैं
क्या आपका कानून सुन सकेगा
फूलों की झाड़ियों का बयान ?
देख सकेगा पहाड़ों के झुर्रीदार हाथ
समझ सकेगा कल-कल नाद करती
नदियों और झरनों की गति को ?
इसीलिए कहता हूँ
आप आत्मा से पूछिए
शहरी मत बनिए ।
कानून की पुस्तक
धरी की धरी रह जाएगी
आत्मा से निकली हुई आवाज
स्वयं को धिक्कारेगी
तब कौन सा जवाब देंगे आप ?
धरी की धरी रह जाएगी
आत्मा से निकली हुई आवाज
स्वयं को धिक्कारेगी
तब कौन सा जवाब देंगे आप ?
तभी तो कहता हूँ
मेरी मइयाँ दो दिनों से लापता है
क्या आपको पता है ?
-0-
मेरी मइयाँ दो दिनों से लापता है
क्या आपको पता है ?
-0-
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