Tuesday 27 October 2015

मैं और मेरा शहर

मैं छोटा था
शहर भी छोटा था
इसीलिए सुन्दर था
शान्त था 
रमणीय था
और अलग भी
दूसरे अन्य शहरों से।

मैं बड़ा हो गया
शहर भी बड़ा हो गया
फैल गया
मेरी तरह खत्म ही गई
उसकी भी शान्ति।
चंचलता, शोखपन,
रवानगी, दीवानगी
मेरी नष्ट हो गई है
शहर की भी सुन्दरता
दफन हो गई है
इसकी भी इन्सानियत
कहीं खो गई है।

याद आ गई
बहुत पहले कही गई बातें
'इस तरह उनका बड़प्पन
कि बड़ी चीजें
बहुत छोटी हो जाती है
उनके सामने'।

बड़ा होना खल गया
मुझे भी और 
अपने शहर राँची को भी।

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