Tuesday, 9 April 2013

सुनहरे भविष्य के लिए


मिट्टी के गिलावे से
जमा किये गए
टूटे-फूटे ईंट को जोड़कर
खड़ा किया उसने
अपना आशियाना
रहने के लिए लगाया उसने
कनस्तर टिन का छत
और लकड़ी का दरवाजा
बहुत मुश्किल से
वर्षों बाद जमा किया
कुछ सिक्के औ' रुपए
दुर्दिन जानलेवा बीमारी
आतंकित भूख से सामना करने के लिए
कभी-कभी गिनता रहा
उन संचित राशि को 
सारे खिड़कियाँ दरवाजे बंद कर।
खिड़कियाँ और दरवाजे तो बंद हैं
फिर भी खुले हैं
उसके मन में शंकाओं के द्वार
आ रहा है उनमे से झोंका
लूट और धोखे से छिन जाने का
चौबीसों घंटे
अभावों का ऑक्सीजन
लेता वह व्यक्ति
शायद यह नहीं जानता कि
अभावों के साथ साथ
वह जी रहा है
वर्तमान में सुनहरे भविष्य के लिए
जो सपने उसने
मन में संजोकर रखे हैं...



No comments:

Post a Comment