Saturday 10 March 2018

किसी खाश के लिए

तेरी ज़ुल्फ़ें हैं या
बरसात की काली घटाएं
तेरी पेशानी है या
बर्फीली चट्टानें
तेरे अबरू हैं या
तेज़ कटारी या खंजर
तेरी आँखें हैं या
कोई  गहरी झील या
कोई मैखाना
तेरे रुखसार हैं या
दहकते हुए सुर्ख गुला
तेरे लब हैं या
जाम से टपकती शराब
तेरी गरदन है या
कोई मय की सुराही
तेरे शाने हैं या
कोई मसनद-ए-गुदाज़
तेरा सीना है या
कोई पुरलुत्फ कहकशां
तेरी कमर है या
किसी शाख-ए-गुल की लचक
और तेरा सरापा है या
कायनात का हसीन रुख
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2 comments:

  1. उम्दा प्रस्तुति ।

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  2. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति।

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