Sunday, 19 February 2017

आक्रोश

आपका
आक्रोश
जायज है
एक कलमकार
कभी
चुप
रह ही नहीं सकता
आत्मा
कचोटती है
मन
हो जाता है
वेचैन
धिक्कार है
यह जीवन
कहता है
यह मन
बाकी
लोग
शांत
क्यों हैं
आश्चर्य है
और
मीडिया वाले
उन्हें तो
नया मसाला
मिल गया
बार बार
वही
तस्वीर दिखाना
मतलब......
कलमकारों की ओर
देख
वे
शांत नहीं है
इसे
क्यों नहीं दिखाते
बार बार
और और
अंततः
सृजित
हो ही जाती है
कविता
आक्रोश
और
सृजित
क्यों नही
होगी? ? जहाँ
रचनाकार हैं
कवि हैं
कवयित्री हैं
और रहेगी
अन्य अन्य वेश में
रूप में
रंग में
लेखनी
थामे हुए
कविता
लिखते हुए
अपनी
अस्मिता को
देखते हुए
पहचानते हुए
हाँ हाँ
आह्वान
है यह
महा आह्वान
है यह
गतिमान है
अनवरत
तब
कलम
चली
लिखी
और
कह रही है
रचनाकारों से
मानव में
पनपती
यौन पशुता
फैलती
चतुर्दिक
मंडराती
कामुक
दृष्टि
नारियों की
छटपटाती
जिजीविषा
घटती
विभत्स
घटनाएँ
रोकने हेतु
कलम
उठाएँ
नया आयाम
जगाएँ
उन्हें
कभी न
छोड़ें
जमकर
मरोड़ें
तभी
साकार
होंगी
आक्रोश
की
कविता।
              *****
               @   # कामेश्वर निरंकुश।

वसंत

वसंत
उमंग का
उल्लास का
हर्ष का
प्रतीक।
वसंत
हँसने का
हँसाने का
मस्ती का
माह।
वसन्त
मदमस्त का
मादकता का
काम का
प्रेरक।
वसंत
ऋतुराज का
प्रेमालाप का
मिलन का
अनुकूल
समय।
प्रकृति का
संवरना
मनमोहक
अंग अंग में
तरंग
वासंती
मदहोशी
बयार
लाता है
वसंत।
    *****
@   # कामेश्वर निरंकुश।

वसंत

मस्ती लेकर वसन्त है आया।

अंगिया के टूटे सब बंध
मादक देह यह लगे छंद
मन अब गाने लगा मल्हार
प्यार की झड़ने लगी फुहार
पुरवैया बहती बयार ने
पोर पोर में आग लगाया।
मस्ती लेकर वसंत है आया।।

बिंदिया फ़ैल गयी भाल पर
सिंदूर बिखर गया भाल पर
खनक खनक कर कंगना बोले
बिखर बिखर कर गजरा डोले
रोम रोम में प्रेम है पनपा
सूनी आँख सबेरा पाया।
मस्ती लेकर वसंत है आया।।

पेड़ पौधे सब बौराए
मन पागल है बहुत रुलाए
हरी भरी खिलती यह धरती
सबसे यह बहुत कुछ कहती
घिर तारों बीच चंदा चमके
प्रेम पाश का जोश जगाया।
मस्ती लेकर वसंत है आया।।

गेहूँ की बाली लगी फुलाने
चना लगा यौवन पर आने
हरे खेत में सरसों फूली
आम मंजर दे सुधबुध भूली
नई कोपलें निकल निकल
सृजन रस का पान कराया।
मस्ती लेकर वसंत है आया।।

मादक पवन आग लगाए
जंगल झाड़ी बहुत सुहाए
खिल गया पलास फूल लाल
प्रकृति की छटा हुई निहाल
पवन बहकर धीरे धीरे
प्रेम रंग का राग जगाया।
मस्ती लेकर वसंत है आया।।
         *****
     @   #  कामेश्वर निरंकुश।

वसन्त आते ही...

वसन्त
आते ही
मन की पांखें
फैलाकर
दूर गगन में
गई थी
चुपके।
बोझिल
आँखें
ढूंढ रही है
प्रियतम
भागा था
क्यों
रुठके।
अब निराशा
नहीं है
मन में
दिल
ये पागल
धक धक
धड़के।
पोर पोर में
दर्द समाया
मिलन चाह
चिड़ियों सी
चहके।
रुनझुन पायल
गीत सुनाती
चूड़ी संग
कंगना भी
खनके।
हरे हरे
खेत देख
मन  हुलसाया
पीले रंग की
सरसों फूल ने
नस नस में
आग लगाया
है हुक हुक से।
डोर
प्रीत की
बंधी हुई है
यह बन्धन है
बिलकुल
हटके।
वसन्त आया
आया वसन्त
आओ प्रियतम
चुपके चुपके।
        *****
  @   #  कामेश्वर निरंकुश।

अक्षर

अक्षर ब्रह्म है
अक्षर अक्षर साथ मिलकर
बनते हैं शब्द
शब्द शब्द एकजुट हो
वाक्य में ढल जाता है
वाक्य अनुभूति को
आरम्भ से श्रीइति तक
जन-जन के हृदय में ले आता है
सद्ग्रन्थ यही दर्शाता है
मन ग्रंथियाँ खुलती हैं
पवित्र हो जाती हैं
क्षीण हो जाता है विकार
साहित्य में वर्णित
भूत में घटित
भविष्य में कोई न हो चकित
हृदय में अंकित होता साकार
साकारता नए आकार की
आकार ज्ञान- विज्ञान का
सज्ञान है नव-विहान का
यही आकार
लौकिक वितर्क से परे
हृदय में करता दीप प्रज्जवलित
टीम स्वतः तिरोहित होकर
ज्योतिपुंज बनकर
दर्शनाभिलाषी
प्रभु अविनाशी
परमेश्वर की महिमा बताता है
ब्रह्म के स्वरूप को दर्शाता है
अक्षर यही तो दर्शाता है।
             *****
       @   #   कामेश्वर निरंकुश।

आज की कविता

पूर्व में
प्रकृति के
सौंदर्य के
चाँद और फूलों के
वर्फ और हवा के
धुंध के
पहाड़ियों और नदियों के
प्रेम में रस उड़ेलते
प्रेमियों के
गीत गाना
कविता लिखना
पसन्द करते थे
प्राचीन कविगण।

युग बदला
लोग बदले
यह समय की मांग है
इसमें नहीं स्वांग है
अब
कविताओं में चाहिए
इस्पात के गीत
पत्थरों के संगीत
विध्वँस्कारियों को
आतंकवादियों को
भेदनेवाले
शब्द
पँक्तियाँ
और कविगण हों
इस शब्दयुद्ध के
आक्रमण की
अग्रिम पँक्तियाँ में।
        *****
   @   #  कामेश्वर निरंकुश।

एहसास

जाने क्यों
ये एहसास
कभी
दिल में
जगा नहीं
तुम थे
मेरे पास
पर
क्यों
मुझे
लगा नहीं
हमारे बीच
प्रेम की अग्नि
जल रही है
एक-एक पल
एक एक घड़ी
बड़ी मुश्किल से
चल रही है
तुमने कहा था
मुझसे
मैंने न मानी
तुम्हारी बात
अब जबकि
तुम नहीं हो
मेरे पास
मुझे हो रहा है
तुम्हारे पास
होने का
एहसास।
   *****
@   #  कामेश्वर निरंकुश।

प्रभु से प्रार्थना

दीपशिखा से
देदीप्यमान
और अब
दिव्य मशाल
बनते जा रहे हैं
हम
एक लंबा अर्सा
गुजर गया
हमारे कर्मों का
गंगा रूपी जल
अपरिमित मात्रा में
जन कल्याण
करता हुआ
सागर में जा मिला है
सदाचार से जुडी
जीवात्मा का
न आदि है न अंत
प्रभु से है प्रार्थना
सृष्टी के प्रत्येक
श्रेयस्कर काम में रहें
कर्तव्यवान
राष्ट्रीयता
संस्कार
सर्वदा रहे
विद्यमान
सम्पादित कार्य
नित्य नूतन
अमरत्व की सृष्टी
करता रहे
सुख समृद्धि
हर्ष उत्कर्ष
जीवन में
भरता रहे।
        *****
@   #  कामेश्वर निरंकुश।

होली में कृष्ण का आगमन

एक दिन की बात
अकस्मात
भगवान कृष्ण ने सोचा
चलो भारत जाएँ
भारत में ही होली मनाएँ
जहाँ मैंने
बाल लीलाएं दिखाई थी
ग्वाल -  बाल और गोपियों के संग
होली मनाई थी
मस्ती और उमंग लिए
हर्ष - उल्लास संग लिए
भारत आने का मन बनाया
चल पड़े
स्वयं को किसी स्थान पर पाया।

रास्ते में एक राहगीर से पूछा
तुम मुझे जानते हो
मैं भगवान कृष्ण हूँ
मुझे पहचानते हो
राहगीर चोंक कर बोला-
कहाँ का कृष्ण
कैसा भगवान
तुम मेरे लिए हो अनजान
यह पाकिस्तान है
इसे जिन्ना ने बनाया है
उसे ही हम जानते हैं
वे ही हमारे रहबर हैं
बस उसे ही पहचानते हैं।

कृष्ण ने भारत जाने का रास्ता पूछा
राहगीर की आँखें चढ़ गई
भवें तन गई
मत लो नाम भारत का
गिरफ्तार कर लिए जाओगे
कभी वापस नहीं जा पाओगे
अगर बन जाओ आतंकवादी
विध्वंशक हथियारों से लैस करा कर
सूर्योदय के पूर्व ही
भारत पहुंचा दिए जाओगे
कृष्ण हैरान थे
उनकी बातें सुनकर परेशान थे।

किसी तरह घूमते भटकते
कृष्ण पहुँच गए भारत
चहल - पहल बढ़ती भीड़
आकर्षक स्वागत द्वार
देखकर मुस्कुराए
हाथ जोड़े स्वच्छ सफेद वस्त्र में
एक सज्जन को आते देख
उससे कृष्ण ने वही प्रश्न दुहराया
वह था नेता
बोला
किसी भगवान कृष्ण को नहीं जानता
मैं तो अपने वोटर को ही भगवान मानता
इस बार के चुनाव में
वोटर ने ही मुझे जिताया है
जीत की ख़ुशी में
सम्मान हेतु
स्वागत द्वार बनाया है
उनका अपूर्व योगदान है
वोटर ही भगवान है।

एक अन्य व्यक्ति
मस्ती में गुनगुनाता हुआ
होली का गीत गाता हुआ
आते देख
कृष्ण से वही प्रश्न पूछा
उसने कहा-
मैं तो रजनीश का भक्त हूँ
वे ही भगवान हैं
उसने आज पृथ्वी पर स्वर्ग लोक बसाया है
मैंने भी वहाँ का भरपूर आनंद उठाया है
" सम्भोग से समाधि तक "
नहीं जानते हो
कैसे अजीब व्यक्ति हो
स्वयं को भगवान मानते हो
कृष्ण यह सुनकर
बहुत थे परेशान
अपने भारत में आकर
खुद थे हैरान।

कृष्ण ने सोचा
मैं हूँ यदुवंशी
यादवों के संग मैंने खेला कूदा
वे मुझे जानते होंगे
अपने कृष्ण को
अवश्य पह्चानते होंगे
कृष्ण एक यादव के समक्ष आए
वहाँ भी वही प्रश्न दुहराए
वह था
बिहार का भोला भाला किसान
बोला -
कौन यादव किसका भगवान
यादवों में मैं
लालू यादव को जानता हूँ
उसे ही भगवान मानता हूँ
उसी ने यादवों को जगाया है
यादवों को समाज में उठाया है
कृष्ण स्वयं को बहुत बड़ा
राजनीतिज्ञ मानते थे
परन्तु यहाँ उससे भी बड़े राजनीतिज्ञ हैं
वह नहीं जानते थे।

कृष्ण आगे बढ़े
सामने देखा
कुछ लोग
ओपलें
सूखी हुई लकड़ियाँ
बिखरे पड़े पत्ते
जमा कर रहे थे
कृष्ण ने सोचा
होलिका दहन की तैयारी है
होली की पहली रात की बारी है
वहाँ पहुँचते ही कृष्ण ने
एक वृद्ध से वही प्रश्न पूछा-
वृद्ध ने आक्रोश भरे शब्दों में कहा -
कहाँ अब भगवान
जहाँ पैसा ही बन बैठा है भगवान
कृष्ण ने पूछा -
फिर यह होलिका दहन की तैयारी क्यों
उसने कहा -
होलिका दहन छोडो
यहाँ प्रत्येक दिन
बहुएं जलाई जाती हैं
भगवान की कृपालु निगाहें
पता नहीं वहाँ क्यों नहीं जाती हैं
क्या हर दिन होनेवाले
होलिका दहन को
रोक पाएगा भगवान ?

आतंकी
प्रत्येक दिन आग लगाते हैं
आम लोग
सहमे सहमे नजर आते हैं
आतंकियों ने ही वर्ल्ड ट्रेड सेंटर गिराए थे
अमेरिका के सामने
क्या वे थर्राए थे ?
लाल किला में प्रवेध
संसद भवन पर हमला
अमेरिकी दूतावास पर आघात
मुम्बई का नर संहार
दिल्ली बेंगलुरु मुम्बई के विस्फोट
क्यों नहीं  सका भगवान रोक ?
गुजरात का दंगा
नागालैंड असम की बर्बरता
ओबेरॉय होटल में गोलियों की बौछार
आतंकवादियों द्वारा खुलेआम नर संघार
प्रत्येक दिन सुरक्षा प्रहरियों पर प्रहार
जनता करती है चीत्कार
राज्यों की रक्षा हेतु
नागरिकों की सुरक्षा हेतु
सुरक्षाकर्मी होते हैं शहीद
भगवान आतंकवादियों की
क्यों नहीं करते मिटटी पलीद
प्रहरी बचाते हैं हमारी जान
तब होता है कल्याण
मैं कितनी घटनाएं गिनाऊँ
आपको कैसे समझाऊँ
न जाने कहाँ हैं भगवान
वे तो भक्त वत्सल कहलाते हैं
पर वे भी तो चुप हैं
वे क्यों नहीं आते हैं ?
यह कहकर वृद्ध चला गया
आज पर्व त्यौहार के नाम पर
कौन नहीं छला गया।

कृष्ण समय को पहचान कर
परिस्थितियों को जान कर
इसी निष्कर्ष पर पहुँचे
आज यहाँ बहुत हो गए हैं भगवान
अतः मुझे यहाँ से जाना है
स्वर्ग लोक में ही होली मनाना है।
                 *****
              ©   #कामेश्वर_निरंकुश।

हो.....ली

किसकी हो....ली कौन बताए
क्यों कह दूँ मैं नाम
सुबह अबीरी धूप सिंदूरी
और गुलाबी शाम।
कर दूँ किसके नाम।।

हाँथ गुलाल आँख नशीली
होंठ की लाली मानो प्याली
भींगे रंग में गोरा तन
देख अंग होती सिहरन
शनैः शनैः बढ़ता है काम।
कर दूं किसके नाम।।

अमलतास महुआ पलाश
अमराई करे श्रृंगार
अंबर से लेकर धरती तंक
मधुमासी त्यौहार
स्वर्ग उतर आया धरती पर
ठहरा है अभिराम।
कर दूँ किसके नाम।।

खनक उठे बाजूबंद ऋतू के
मौसम मन का मीत
दूर कहीं कोयल गाती है
अभिसारों के गीत
मन मयूर नाच नाच कर
करता है यह गान।
कर दूँ किसके नाम।।

घर द्वारे आँगन गलियारे
भरे उमंगों से
फागुन की थापें उठती हैं
ढोल मृदंगों से
अंग अंग मदमस्त भंग के
टूट पड़े परिणाम।
कर दूँ किसके नाम।।
       *****
  ©  #कामेश्वर_निरंकुश।

बसंत की रात वैलेंटाइन

बसंत की
सबसे बड़ी खूबी
उसका रचनात्मक होना
बसंत की बात
सृजन की बात
निर्माण की बात
मौसम
लुभावना
सृजन का
सुहावना मौसम
बना दिया बसंत को
ऋतुराज
मानव के लिए
प्रेम और मदन का प्रतीक
साहित्य और साहित्यकार
सृष्टि के दिन से ही
करते आये है
बसंत की रात की बात
वैलेंटाइन
तो आज मनाने लगे
अपनी खुशियाँ जताने लगे
प्रकृति प्रदत्त बसंत
पूर्व से ही
खुशियाँ मनाने का
प्रेम में डूब जाने का
अनुपम उपहार है
इस मौसम में
प्यार ही प्यार है।
      *****
©   #कामेश्वर_निरंकुश।

बसंत का आना

प्रकृति की गोद में इठलाना
धन्य हो जाना है
बसंत का आना।

खेतों में
सरसों का
चटख पीलापन
नन्ही टहनियों में से
कलियों का चटखना
खिलने की ओर बढ़ना
बसंत का आना।

जीवन में
ऊर्जा का अंकुरण हो जाना
खिलना - खुलना
प्रकृति के साथ
मन का हरियाना
उमंग और तरंग में
बढ़ निकलना
कुछ कुछ
मधुर और मदिर हो जाना
बसंत का आना।

प्रकृति से
बंधे रहने का
तन मन
प्रफुल्लित करने का
सृजन क्षमता
संचित रखने का
बसंतोत्सव के रूप में
बसंत पंचमी
उत्सव मनाने का
स्वागत के लिए
पूर्व से ही
लोहड़ी
मकर संक्रांति
पोंगल जैसे
त्यौहार
हमारे पूर्वजों द्वारा
बनाना और मनाना
युग युगों से सीखा दिया
अहा बसंत !
मस्त बसंत !!
मादक बसंत !!!
बसंत का आना।
      *****
©   #कामेश्वर_निरंकुश

ऋतुराज बसंत

प्रकृति के संवरने का
साक्षात दर्शन
नई कोपलें का निकलना
कलियों का खिलना
आम्र का मंजर दे बौराना
पीले सरसो के फूल से
खेतों का वासंती होना
चने का यौन होना
मादक पवन का बहना
हरी भरी धरती में
फूलों का फूलना
प्रेम मिलन समर्पण हेतु
कामदेव का आगमन
रंग गुलाल से भरा
सतरंगी वातावरण
नृत्य - संगीत
ढोल - मृदङ्ग
भांग ठंढई का सेवन
मस्ती उमंग लिए
प्रेम ही प्रेम
सर्वत्र पसर जाना
स्वागत है
अभिनन्दन है
वंदन है
ऋतुराज का
उन्माद का
प्रतीक
बसंत।
   *****
   ©   #कामेश्वर_निरंकुश।

झारखण्ड

बदलता झारखण्ड
बहुत आशाएँ हैं
बहुत अपेक्षाएँ हैं
जिन्होंने अपने राज्य को
संवारा सजाया
दुल्हिन के रूप में दिखाया
एक नई पह्चान बनाई
जो कहा वह कर दिखाया
भारत के मानचित्र में
नए रूप रंग में
कला
साहित्य
संस्कृति
खेलकूद
के साथ
हर क्षेत्र में
विकास कर
प्रगति कर
उभर कर
सामने है आया
मेरा झारखण्ड
प्यारा झारखण्ड
न्यारा झारखण्ड
सुन्दर झारखण्ड
रमणीय झारखण्ड
उन सभी को
प्रणाम !
नमन  !!
जोहार !!!
      *****
©  #कामेश्वर_निरंकुश

रूठ गया वसंत

खुशियाँ लाने वाला वसंत
मौसम को मुस्कराता
बनानेवाला वसंत
खुशुबुओं का आंचल
फैलानेवाला वसंत
हमारे आस पास
प्रदूषण फ़ैल जाने के कारण
कहीं खो गया है
अब मौसम
मुस्कराता नहीं
कुछ माफियों ने
चन्द तस्करों ने
जमीन जल और जंगल पर
ऐसा कुचक्र कर रखा है कि
कोयल गाती है
थकी थकी सी
घरों से गौरैया गायब है
वनों से हरियाली गायब है
अब खिड़कियों से
झांकता नहीं है वसंत
आज वसंत
अब घाटियों में भी
नजर नहीं आता
उपभोक्तावादी
सांढ़ की तरह
स्वतंत्र चर रहा है
प्रकृति पर कहर ही कहर
मानो ठहर गया है प्रहर
मुद्रा अर्जित करने के चक्कर में
हमने पर्यावरण को
मुर्दा बना दिया
प्रकृति की
मुखमुद्रा बदल गई
प्रकृति अपनी कृपा छोड़
कोप की कारक बन गई
प्रकृति की ' प्रकृति' में
परिवर्तन हो गया
हम प्रकृति की रक्षा की
कामना छोड़
अपने स्वार्थों की साधना में
लीन रहे
जलवायु परिवर्तन पर
संगोष्ठियां - सेमिनार
आयोजित करते रहे
निहित हितों के कारण
जहरीली गैसों के
उत्सर्जन करते रहे
प्रदूषण से मुक्ति के लिए
कानून बनाते रहे
प्रकृति के प्रति
अत्याचारों की अति कर दी
तब वसंत रूठ गया
अब भी चेतें
समय की संकेत को समझे
प्रकृति से छेड़खानी बन्द करें
तब रूठ हुआ वसंत आएगा
प्रकृति को स्वर्ग बनायेगा।
           *****
      ©  #कामेश्वर_निरंकुश।

आना वसंत का

तू धन्य है वसंत
तेरा आना
सकल सृष्टि में
उमंग फ़ैल जाना
सृजन शक्ति का
अपूर्व वरदान
वसंत तू है महान
बाग़ बगिया में
कोयल का गीत
हरे भरे खेतों में
सरसों का संगीत
आँखों के सामने
सौंदर्य का
प्रेम का
अनुपम गुणगान
याद आने लगता है
कवि कालिदास की कृति का
वसंत का वर्णन
मल्लिक मोहम्मद जायसी के
'बारहमासा' में वसंत का विश्लेषण
कवि पद्माकर का
'बुननि बागानि में बगरयो वसंत'
सुभद्रा कुमारी चौहान का
'वीरों का कैसा हो वसंत'
दर्शाता है
सृजन शक्ति संचारित करने का
ऊर्जा प्रवाहित करने का
वरदान है वसंत
अहा ! तू महान है वसंत
चतुर्दिक प्रेम ही प्रेम
आपस का कुशलक्षेम
वसंत यानी
मन के द्वार पर
खुशबुओं की दस्तक
विभिन्न रंग विरंगे
पुष्पों के खिलने से
उन्नत मौसम का मस्तक।
          *****
©  #कामेश्वर_निरंकुश।

Saturday, 7 January 2017

अभिनन्दन



नव  वर्ष  का  अभिनन्दन !

सब  विषयों का ज्ञान मिले,
हर मानव को विज्ञान मिले,
परिसर  में अभिज्ञान  मिले,
सुख-दुःख में हम गले मिलें,
ओत-प्रोत उर्जा लेकर अब
यहाँ बहती रहे सुखद पवन!

अनबन  कभी  न हो मन में,
खिलें  फूल  हर  उपवन  में,
रोग   पीड़ा  न  रहे   तन  में,
बहे   प्रेमरस   जन - जन में,
सुख वैभव घर  घर में पनपे
हर  कोई  मंच  में रहे प्रसन्न!

पण्डित  जी   की  पंडिताई,
मौलवी   जी   की  अगुवाई,
पादरी जी  की सच्ची वाणी,
गुरुवर जी  की अमृत वाणी,
सभी धर्मों की गाथा सुनकर
रचें साहित्य का अनुपम धन!

कर्मबोध  गीता   सिखलाती,
सेवा भावना  बाइबल लाती,
पाक हो  जीवन  कहे कुरान,
ग्रन्थ साहिब ग्रन्थों में महान,
सभी  धर्म  ग्रन्थों को पढ़कर
हम  सीखे सीख  करें जतन!

हर मानव  में मानवता  जागे,
गलत  भावना  मन  से  भागे,
राष्ट्रप्रेम  जन - जन  में  लागे,
शांन्ति - प्रेम सब प्रभु से मांगे
मंच  की गरिमा  सर्वोपरि कर
गाएँ 'जन गण  मन' सब  जन!
               *****
        @  #  कामेश्वर निरंकुश

युवा आह्वान



देखते ही देखते एक वर्ष कट गया।
मिली हुई आयु से एक वर्ष घट गया।।
वर्ष के व्यतीत होते
कुछ करने की
नया इतिहास गढ़ने की
युवा आह्वान की शुरुआत
युवा वर्ग के सब आयामों को
कुछ करने की प्रतिज्ञा को
गुमराह के गम से निकलकर
स्वावलम्बन
दिशाहीनता से आगे बढ़कर
युवाओं के दर्द को
टीस को तड़प को
आह को
चिंतन करते हुए
संकल्पित हो
युवा शक्ति के साथ
ऊँची उड़ान भरने का
सुअवसर प्रदान करें
महाजगरण लाने हेतु
आइये
संकल्प लें
स्वतः
युवा शौर्य चमकेगा
कालाधन
काला बाजार से निकलकर
प्रकाशदीप होगा
प्रज्ज्वलित
एक नए आदर्श के साथ
नैतिकता पनपेगी
राजनीति में नया मोड़ से
शारीरिक सौंदर्य ही नही
आंतरिक ऊर्जा बढ़ेगी
भटकन का होगा नाश
युवा भाग्य विधाता हैं
युवा ही समाज की रीढ़ हैं
सकल समाज जानेगा
असमानता
भ्र्ष्टाचार
अनैतिकता
दूर होकर
सकल विडम्बनाओं
उपेक्षाओं पर
लगायेगा अंकुश
युवा आह्वान महान है
यह कह रहा निरंकुश।
        *****
         --- कामेश्वर निरंकुश।

नारी



नारी की अस्मिता
नारी सशक्तिकरण
नारी की महानता
सकारात्मक भी नकारात्मक भी
नारी
महान
सर्वशक्तिमान
कागज पर उकेरना है आसान
नारी की दिशा
नारी की दशा
देखना
दिखलाना
कहना
समझना
नई  बात नहीं
यहाँ वहाँ
जहाँ तहाँ
अपनी अस्मिता
दिखलाने के लिए
नारी नारी
चिल्लाने के लिए
देवियों
दुर्गा
काली
सरस्वती
की तुलना कर
कब तक मन
बहलायेंगे
समाज में घट रही
घृणित घटनाओं का
निकलता परिणाम
साफ साफ दर्शाता है
नारी की
स्थिति को
परिस्थिति को
दुर्गति को
लेखनी
उकेरेगी
कबतक
नारेबाजियां
कबतक
देखते आए हैं
तब से अब तक
जब से सृष्टि हुई
तभी से
अनवरत
अबतक ?
             *****
      #  कामेश्वर निरंकुश।

मित्रता



अनन्त
अनवरत
आकाश में
विचरना
असम्भव
यह ज्ञात है
मुझे।
मित्रता
सुख दुःख
लाभ हानि
नहीं देखता।
वह देखता है
निष्ठा
अपनापन
लगाव
और
यह प्रदान करता है
अतुलित बल।
बनाता है
ऊर्जावान
सृजित होता है
काव्य,
लिख देता है
कहानी,
उपन्यास,
निबंन्ध
नाटक।
धीरे - धीरे
साहित्य
परिष्कृत करता है
मन के विकार को
और देता है
नया आकार।
समाज को
दर्शाता है
नई दिशा,
नया पथ
उपजता है
राष्ट्र प्रेम
और
एकजुट हो जाता है
युवा वर्ग।
राष्ट्रीय भावना
जागृत कर
करता है
आह्वान
महा आह्वान
नया इतिहास
गढ़ने हेतु।
       *****
    # कामेश्वर निरंकुश।

प्रेम



प्रत्येक व्यक्ति की
निर्धारित है नियति
उसे मिलती है
प्रकृति की भी
निराली होती छटा
मरुस्थल
रेत ही रेत
नदियां
जल ही जल
मन होता है विह्वल
कहीं धूुप कहीं छाँव
कौन जाने कहाँ  है
किसका ठांव
कभी अंधकार
कभी उजाला
कहीं खारा जल
कहीं निर्मल गंगाजल
एक समय ऐसा आता है
जहाँ फर्क नहीं दिखता
दुःख और सुख का
तब होता है ज्ञात
प्रेम क्या यही है
प्रेम समझना आसान है
 प्रेमी के लिए
बहुत मुश्किल
दुरुह कष्टप्रद
आज के माहौल में।
     #  कामेश्वर निरंकुश।

नववर्ष



गुनगुनी धूप, तब अच्छी लगती है
जब होता है अहसास
बीती हुई प्रचण्ड गर्मी की तपिश में
झुलसाती धूप का
दिसम्बर की ठंढ टीस उगाती है
हम सहते हैं, आशा में
आनेवाली सुखद फागुनी ठंढ की
यह नियति का विधान
आता है जाता है
और बीत जाता है एक वर्ष
बोया गया सुकर्म बीज
नववर्ष में अंकुरित होकर
पनपेगा
फूलेगा
फलेगा
हर्ष और उमंग लाएगा
बोया गया कुकर्म
अलगाववाद लाएगा
भ्र्ष्टाचार बढ़ाएगा
सांप्रदायिकता फैलाएगा
अब भी हम चेतें
जानें
समझें
तीन छः के फेर में पाँच न गवाएँ
प्रभु से मनाएँ
आनेवाला हर दिन कल्याणकारी हो
मानव हितकारी हो
सुख-समृद्धि का परिचालक हो
कर्त्ता नहीं कारक हो
हर दिन
हर पल
हर क्षण की जय हो
नववर्ष मंगलमय हो।
            *****
                # कामेश्वर निरंकुश।

नव वर्ष की जय हो



दीपशिखा से
देदीप्यमान
और अब
दिव्य मशाल बनते जा रहे हैं हम
एक लम्बा अर्सा गुजर गया
हमारे कर्मों का गंगारूपी जल
अपरिमित मात्रा में
जन कल्याण करता हुआ
सागर में जा मिला है
सदाचार से जुडी जीवात्मा का
न आदि है न अंत
नववर्ष में प्रभु से है प्रार्थना
सृष्टि के प्रत्येक श्रेयस्कर काम में
रहे कर्तव्यवान
राष्ट्रीयता और संस्कार
सर्वदा रहे विद्यमान
सम्पादित कार्य
नित्य नूतन अमरत्व  की
सृष्टी करता रहे
आपके हर दुःख दर्द क्लेश को हटाकर
सुख समृद्धि
हर्ष उत्कर्ष
जीवन में भरता रहे
आपकी जय हो
नव वर्ष मंगलमय हो।
                  *****
 कॉपी राइट                   # कामेश्वर निरंकुश।

अभिनन्दन



नव  वर्ष  का  अभिनन्दन !

सब  विषयों का ज्ञान मिले,
हर मानव को विज्ञान मिले,
परिसर  में अभिज्ञान  मिले,
सुख-दुःख में हम गले मिलें,
ओत-प्रोत उर्जा लेकर अब
यहाँ बहती रहे सुखद पवन!

अनबन  कभी  न हो मन में,
खिलें  फूल  हर  उपवन  में,
रोग   पीड़ा  न  रहे   तन  में,
बहे   प्रेमरस   जन - जन में,
सुख वैभव घर  घर में पनपे
हर  कोई  मंच  में रहे प्रसन्न!

पण्डित  जी   की  पंडिताई,
मौलवी   जी   की  अगुवाई,
पादरी जी  की सच्ची वाणी,
गुरुवर जी  की अमृत वाणी,
सभी धर्मों की गाथा सुनकर
रचें साहित्य का अनुपम धन!

कर्मबोध  गीता   सिखलाती,
सेवा भावना  बाइबल लाती,
पाक हो  जीवन  कहे कुरान,
ग्रन्थ साहिब ग्रन्थों में महान,
सभी  धर्म  ग्रन्थों को पढ़कर
हम  सीखे सीख  करें जतन!

हर मानव  में मानवता  जागे,
गलत  भावना  मन  से  भागे,
राष्ट्रप्रेम  जन - जन  में  लागे,
शांन्ति - प्रेम सब प्रभु से मांगे
मंच  की गरिमा  सर्वोपरि कर
गाएँ 'जन गण  मन' सब  जन!
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        @  #  कामेश्वर निरंकुश