Saturday, 7 January 2017

नववर्ष



गुनगुनी धूप, तब अच्छी लगती है
जब होता है अहसास
बीती हुई प्रचण्ड गर्मी की तपिश में
झुलसाती धूप का
दिसम्बर की ठंढ टीस उगाती है
हम सहते हैं, आशा में
आनेवाली सुखद फागुनी ठंढ की
यह नियति का विधान
आता है जाता है
और बीत जाता है एक वर्ष
बोया गया सुकर्म बीज
नववर्ष में अंकुरित होकर
पनपेगा
फूलेगा
फलेगा
हर्ष और उमंग लाएगा
बोया गया कुकर्म
अलगाववाद लाएगा
भ्र्ष्टाचार बढ़ाएगा
सांप्रदायिकता फैलाएगा
अब भी हम चेतें
जानें
समझें
तीन छः के फेर में पाँच न गवाएँ
प्रभु से मनाएँ
आनेवाला हर दिन कल्याणकारी हो
मानव हितकारी हो
सुख-समृद्धि का परिचालक हो
कर्त्ता नहीं कारक हो
हर दिन
हर पल
हर क्षण की जय हो
नववर्ष मंगलमय हो।
            *****
                # कामेश्वर निरंकुश।

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