Sunday, 19 February 2017

आज की कविता

पूर्व में
प्रकृति के
सौंदर्य के
चाँद और फूलों के
वर्फ और हवा के
धुंध के
पहाड़ियों और नदियों के
प्रेम में रस उड़ेलते
प्रेमियों के
गीत गाना
कविता लिखना
पसन्द करते थे
प्राचीन कविगण।

युग बदला
लोग बदले
यह समय की मांग है
इसमें नहीं स्वांग है
अब
कविताओं में चाहिए
इस्पात के गीत
पत्थरों के संगीत
विध्वँस्कारियों को
आतंकवादियों को
भेदनेवाले
शब्द
पँक्तियाँ
और कविगण हों
इस शब्दयुद्ध के
आक्रमण की
अग्रिम पँक्तियाँ में।
        *****
   @   #  कामेश्वर निरंकुश।

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