Wednesday, 10 August 2016

वेदना

व्यथा हृदय की
पीड़ा मस्तिष्क की
मात्र अनुभूति है
अभिव्यक्ति के लिए
शब्द सर्वदा अक्षम
अभाव यथार्थ का तिरोहित
मूक वाणी में सन्निहित
वाणी परायों के लिए
मौन वरेण्य
सहिष्णुता, धैर्य और श्रेय
पीड़ा में जिजीविषा
अनन्य प्रेम का प्रतीक
और मुमूर्षु
प्रेम का
निकटता का
लगाव का
अपनेपन का
विरामचिह्न !

      ***

No comments:

Post a Comment