Wednesday, 10 August 2016

आदिवासी

निश्छल
निष्कपट
पत्ते-झाड़-फूल
सुसज्जित
आदिम जनजाति की संस्कृति बिखेरती
मांदर की थाप पर थिरकती
झूमती नाचती गाती
कृत्रिमता से दूर
वन की सुंदरियाँ
कूदती फाँदती
वनक्षेत्र की तितलियाँ
हँसी की सम्मोहक फुहारें उँडेलती
श्रद्धा से
अपनेपन से
सहृदयता से
आगन्तुकों को
अपने प्रदेश में
भिन्न भिन्न परम्परा के वेष में
कहती हैं
जोहार!

जंगल से प्रेम
वन-जंतुओं से दोस्ती
चौड़ा वक्ष
चमकता ललाट
श्याम वर्ण
हँसुली की छाप
गोदाये हुए दाग
अर्द्धनग्न वस्त्र
कर्तव्यपरायणता में प्रवीण
अधिकार से विमुख
अपनी धुन में लीन
मांसल देह
बलिष्ठ भुजाएँ
नम्रता से झुकी आँखें
भेदभाव
लाभ-लोभ से दूर
आदिम जनजातियों के वंशज
आदिवासी
कंधे पर झूलते तीर-कमान
प्रबल व्यक्तित्ववान
जीवन अथक
गतिमान
हम हैं झारखंडी
हमें है अभिमान।
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