आपका
आक्रोश
जायज है
एक कलमकार
कभी
चुप
रह ही नहीं सकता
आत्मा
कचोटती है
मन
हो जाता है
वेचैन
धिक्कार है
यह जीवन
कहता है
यह मन
बाकी
लोग
शांत
क्यों हैं
आश्चर्य है
और
मीडिया वाले
उन्हें तो
नया मसाला
मिल गया
बार बार
वही
तस्वीर दिखाना
मतलब......
कलमकारों की ओर
देख
वे
शांत नहीं है
इसे
क्यों नहीं दिखाते
बार बार
और और
अंततः
सृजित
हो ही जाती है
कविता
आक्रोश
और
सृजित
क्यों नही
होगी? ? जहाँ
रचनाकार हैं
कवि हैं
कवयित्री हैं
और रहेगी
अन्य अन्य वेश में
रूप में
रंग में
लेखनी
थामे हुए
कविता
लिखते हुए
अपनी
अस्मिता को
देखते हुए
पहचानते हुए
हाँ हाँ
आह्वान
है यह
महा आह्वान
है यह
गतिमान है
अनवरत
तब
कलम
चली
लिखी
और
कह रही है
रचनाकारों से
मानव में
पनपती
यौन पशुता
फैलती
चतुर्दिक
मंडराती
कामुक
दृष्टि
नारियों की
छटपटाती
जिजीविषा
घटती
विभत्स
घटनाएँ
रोकने हेतु
कलम
उठाएँ
नया आयाम
जगाएँ
उन्हें
कभी न
छोड़ें
जमकर
मरोड़ें
तभी
साकार
होंगी
आक्रोश
की
कविता।
*****
@ # कामेश्वर निरंकुश।
आक्रोश
जायज है
एक कलमकार
कभी
चुप
रह ही नहीं सकता
आत्मा
कचोटती है
मन
हो जाता है
वेचैन
धिक्कार है
यह जीवन
कहता है
यह मन
बाकी
लोग
शांत
क्यों हैं
आश्चर्य है
और
मीडिया वाले
उन्हें तो
नया मसाला
मिल गया
बार बार
वही
तस्वीर दिखाना
मतलब......
कलमकारों की ओर
देख
वे
शांत नहीं है
इसे
क्यों नहीं दिखाते
बार बार
और और
अंततः
सृजित
हो ही जाती है
कविता
आक्रोश
और
सृजित
क्यों नही
होगी? ? जहाँ
रचनाकार हैं
कवि हैं
कवयित्री हैं
और रहेगी
अन्य अन्य वेश में
रूप में
रंग में
लेखनी
थामे हुए
कविता
लिखते हुए
अपनी
अस्मिता को
देखते हुए
पहचानते हुए
हाँ हाँ
आह्वान
है यह
महा आह्वान
है यह
गतिमान है
अनवरत
तब
कलम
चली
लिखी
और
कह रही है
रचनाकारों से
मानव में
पनपती
यौन पशुता
फैलती
चतुर्दिक
मंडराती
कामुक
दृष्टि
नारियों की
छटपटाती
जिजीविषा
घटती
विभत्स
घटनाएँ
रोकने हेतु
कलम
उठाएँ
नया आयाम
जगाएँ
उन्हें
कभी न
छोड़ें
जमकर
मरोड़ें
तभी
साकार
होंगी
आक्रोश
की
कविता।
*****
@ # कामेश्वर निरंकुश।
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