Sunday, 19 February 2017

वसन्त आते ही...

वसन्त
आते ही
मन की पांखें
फैलाकर
दूर गगन में
गई थी
चुपके।
बोझिल
आँखें
ढूंढ रही है
प्रियतम
भागा था
क्यों
रुठके।
अब निराशा
नहीं है
मन में
दिल
ये पागल
धक धक
धड़के।
पोर पोर में
दर्द समाया
मिलन चाह
चिड़ियों सी
चहके।
रुनझुन पायल
गीत सुनाती
चूड़ी संग
कंगना भी
खनके।
हरे हरे
खेत देख
मन  हुलसाया
पीले रंग की
सरसों फूल ने
नस नस में
आग लगाया
है हुक हुक से।
डोर
प्रीत की
बंधी हुई है
यह बन्धन है
बिलकुल
हटके।
वसन्त आया
आया वसन्त
आओ प्रियतम
चुपके चुपके।
        *****
  @   #  कामेश्वर निरंकुश।

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