Monday, 1 June 2020

विवशता



नई नवेली दुल्हिन
सोच रही थी
पति के साथ 
मेट्रो फूलों का शहर
हाईटेक नगरी
बेंगलुरु आकर।

प्रतिदिन वह देखती 
सुबह निकल पड़ता  
हर मजदूर दिहाड़ी पर....
किसी साधारण कपड़े में
और मेरा पति
सूट बूट टाई पहन कर।

किसी के कंधे पे गमछा था....
पर मेरे पति के लैपटॉप.....

गमछे वाला 6 बजे तक घर आ  जाता
laptop वाले का 
देर रात तक भी पता नही....
क्या पढ़ने लिखने के बाद
नौकरी में ऐसा ही होता है
प्रतिदिन.....

हर सप्ताह के
कार्य दिवस के
अंत दिन शुक्रवार को
देर रात्रि चढ़ने पर लौटना
और शनिवार या रविवार की रात्रि
दोस्तों के साथ मस्ती में बिताना
जीवनसंगिनी को साथ न ले जाना
झेलते हुए लाचार थी वह .....

हर दिन का यही हाल था
दुल्हिन का मन बेहाल था
वह विवश थी
भीतर ही भीतर पिस रही थी
पति को छोड़कर वह
जाना भी नहीं चाहती थी
.....अवसर भी नहीं मिल रहा था 
साथ साथ रहने का उसे .......।
              ★★★
  ©  #कामेश्वर_निरंकुश

विडम्बना



देश आजाद
हम भी आजाद
लोकतंत्र की 
सबसे बड़ी विडंबना
सिर्फ शासक वर्ग के लिए ही
योग्यता का कोई पैमाना नहीं
कौन किस विभाग का 
मंत्री बन जायेगा
कोई ठिकाना नहीं
कई ऐसे भी चुने गए हैं उम्मीदवार 
जिन्हें विषय विशेष में दक्षता है अपार
विषय प्रवीण नेता को 
अगर उसी विषय के अनुरूप 
मंत्री बनाया जाएगा।
देश का भाग्य स्वतः निखर जाएगा।।
      © #कामेश्वर_निरंकुश

तुम बस तुम हो



     यह सच है
     अकाट्य सच है
     सर्व विदित है
     तुम सर्वरूपा हो
     अनुपा हो
     कामिनी
     प्रिया
     सखी
     बहन
     बेटी
     मातृ स्वरूपा हो
     तुम्हीं शक्ति
     जीवन की मधुम यी
     अनुरक्ती हो
     तुम्हीं जननी
     तुम्हीं पालिका   
     गुरू मां
     ससृक्षा
     आशक्त अनाशक्ति
     तुम्हीं प्रीति रसधार
     जिंदगी का श्रृंगार
     उपवन की बहार हो
     नाचती मोहिनी उर्जा हो
     आनंदरूपा
     मुक्तिद्वार हो
      हे पूज्या मातृ शक्ति
     तुम्हीं दुर्गा 
     तुम्हीं काली
     तुम्हीं सरस्वती
     हम सभी की
     लगी रहे भक्ति
     हे   माते !
     हम संतानों का 
     कृतज्ञ नमन
     बारम्बार स्वीकार हो।
               °°°°°