फागुन माह आते ही मन क्यों बहकने लगे।
नयनों में प्रियतम के प्यार अब जगने लगे।।
बाल्टी में रंग घोल हाथ में पिचकारी भर,
भावनाओं के सुगबुगे एहसास मचलने लगे।
शब्दों ने रंग भरकर बहुत कुछ लिख डाला,
आज होठों पे प्रणय के गीत कुहकने लगे।
आलिंगन हेतु चेहरे का भोलापन ऐसा हुआ,
नयनों में इंद्रधनुषी सपन अब जलने लगे।
कमसिन उमर में और यौवन की तपन में तो,
रंग उनसे खेलने खातिर हाथ बहकने लगे।
हां अपराधी मौसम हुआ प्यार में पागलपन,
मुलायम हाथ धरते शिल्पी वे सिहरने लगे।
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शिल्पी सुमन
मीडिया प्रभारी
। साहित्य संस्कृति मंच