लैपटॉप पर
अक्षरों का चयन कर
मन के भावों को
शब्दों में पिरोकर
कविता सृजित करनेवाली
हाथ की उंगलियां
ठंढ से ठिठुरते
वृद्धावस्था में रिक्शा खींचते
उस महामानव को देखकर
उसी कवयित्री ने
हाथ से पकड़े पैकेट से
अपनी उंगलियों से बुने हुए
एक स्वेटर निकाला
रिक्शावाले के हाथों में थमाकर
कहने लगी
पहनकर बताओ गर्म है क्या ?
भौचक्के खड़े रिक्शेवाले ने हामी भरी
कवयित्री मन ही मन खुश हुई
बुदबुदाई आज मैंने
सही अर्थों में उंगलियों से
एक गरीब की खुशी के लिए
कविता गढ़ी है !
क्या आपने ऐसी कविता कभी पढ़ी है ?
★★★
#कामेश्वर_निरंकुश
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