Monday, 10 February 2020

अनुपम कृति

मुझे लगा
मेरी बीमारी
भाग गई
दर्द
अचानक
लुप्त हो गया
कमजोरी के स्थान पर
ताजगी
मन खिन्न के स्थान पर
प्रसन्न
मुरझाया चेहरा
खिल गया
सब कुछ तो
मिल गया
अब नहीं रहेगा
अभाव
तुम्हारा अकथनीय है
प्रभाव
तुम्हारी हर अदा
मनभावन
जेठ दुपहरी लगने लगा
सावन
अब नहीं चढ़ेगा
तेज ज्वर
नहीं होगी शरीर में
ऐंठन
नही रहेगा मन
खिन्न
मन मे भरी रहेगी
हरियाली
उदासी के स्थान पर रहेगा
हर्ष
मेरे जीवन में
उत्कर्ष
देखूँगा पुंनः
गौर वदन
बड़ी बड़ी चंचल
मादक आंखें
गुलाबी गाल
मदमस्त चाल
काली घटाओं सा
छाया केश
आकर्षित करती
मदमस्त जवानी
दो उभरते हुए
कमल के फूल
खिलखिलाते अधखुले
लाल लाल होंठ
पूरी देहयष्टि
किसी शायर की ग़ज़ल
किसी कवि की कविता
मेरी सबकुछ
बस केवल तुम
सृष्टि रचयिता की
शिल्पकार की
अनुपम कृति
हो तुम !
         ***

No comments:

Post a Comment