मुझे लगा
मेरी बीमारी
भाग गई
दर्द
अचानक
लुप्त हो गया
कमजोरी के स्थान पर
ताजगी
मन खिन्न के स्थान पर
प्रसन्न
मुरझाया चेहरा
खिल गया
सब कुछ तो
मिल गया
अब नहीं रहेगा
अभाव
तुम्हारा अकथनीय है
प्रभाव
तुम्हारी हर अदा
मनभावन
जेठ दुपहरी लगने लगा
सावन
अब नहीं चढ़ेगा
तेज ज्वर
नहीं होगी शरीर में
ऐंठन
नही रहेगा मन
खिन्न
मन मे भरी रहेगी
हरियाली
उदासी के स्थान पर रहेगा
हर्ष
मेरे जीवन में
उत्कर्ष
देखूँगा पुंनः
गौर वदन
बड़ी बड़ी चंचल
मादक आंखें
गुलाबी गाल
मदमस्त चाल
काली घटाओं सा
छाया केश
आकर्षित करती
मदमस्त जवानी
दो उभरते हुए
कमल के फूल
खिलखिलाते अधखुले
लाल लाल होंठ
पूरी देहयष्टि
किसी शायर की ग़ज़ल
किसी कवि की कविता
मेरी सबकुछ
बस केवल तुम
सृष्टि रचयिता की
शिल्पकार की
अनुपम कृति
हो तुम !
***
मेरी बीमारी
भाग गई
दर्द
अचानक
लुप्त हो गया
कमजोरी के स्थान पर
ताजगी
मन खिन्न के स्थान पर
प्रसन्न
मुरझाया चेहरा
खिल गया
सब कुछ तो
मिल गया
अब नहीं रहेगा
अभाव
तुम्हारा अकथनीय है
प्रभाव
तुम्हारी हर अदा
मनभावन
जेठ दुपहरी लगने लगा
सावन
अब नहीं चढ़ेगा
तेज ज्वर
नहीं होगी शरीर में
ऐंठन
नही रहेगा मन
खिन्न
मन मे भरी रहेगी
हरियाली
उदासी के स्थान पर रहेगा
हर्ष
मेरे जीवन में
उत्कर्ष
देखूँगा पुंनः
गौर वदन
बड़ी बड़ी चंचल
मादक आंखें
गुलाबी गाल
मदमस्त चाल
काली घटाओं सा
छाया केश
आकर्षित करती
मदमस्त जवानी
दो उभरते हुए
कमल के फूल
खिलखिलाते अधखुले
लाल लाल होंठ
पूरी देहयष्टि
किसी शायर की ग़ज़ल
किसी कवि की कविता
मेरी सबकुछ
बस केवल तुम
सृष्टि रचयिता की
शिल्पकार की
अनुपम कृति
हो तुम !
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