Monday, 26 October 2015

सभ्यता और संस्कृति

अपनी सभ्यता-संस्कृति
किसी भी परिस्थिति में
धूमिल न हो
यही रहा है संकल्प
इसका कोई नही है विकल्प
जल जंगल और जमीन
अब किसके अधीन
पश्चिमी सभ्यता की नकल
पूर्वजों ने नही किया स्वीकार
हम क्यों कर रहें हैं चीत्कार
लोक कला लोक संस्कृति
इसकी दिनोदिन क्यों हो रही है दुर्गति
पर्यटन की अपार संभावनाएँ
गर्त में समा रही हैं
'अतिथि देवो भवः' की भावना
यहाँ भुलायी जा रही हैं
दबंग
साहूकार
ठेकेदार द्वारा हो रहा है 
धीरे धीरे राजनीति में 
पर्यावरण प्रदूषण
प्रकृति से खिलवाड़
बृक्षों की कटाई
क्या हो सकेगी इसकी भरपायी।
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