जीव अनंत
जीवन अनंत
मानव ही एक
सब जीवों में उत्कृष्ट
मानव में
भावनाएँ
सम्वेदनाएँ
प्रवाहित होती रहती है
अनवरत
मानव
चाहता है
समेटना
इच्छाओं को
आकांक्षाओं को
कलम पकड़
सृजन की पीड़ा से
तड़पता है
झेलकर
कष्ट
दर्द
आह
तब
जन्मती है
कविता
पुस्तक में
संग्रहित होती हैं
कविताएँ
खरीददार
एक भी नही
प्रकाशित पुस्तक
आलमारी की
सेल्फ में पड़ी
निहारती है
स्वार्थ की
लिप्सा में लिपटे
मानव को
जिसकी चाहत है
भेंट में मिल जाए पुस्तक
अर्थ का अभाव
नहीं रहने पर भी
खरीद कर पढ़ना नहीं चाहते
वाह रे
विधि का विधान
पुनः जुट जाता है
सृजन में
सबकुछ जानते हुए
इसकारण कि
जीना चाहता
निरंकुश
सृजन कर
इस छलनापूर्ण समाज में
उलझकर।
★★★
© #कामेश्वर_निरंकुश
जीवन अनंत
मानव ही एक
सब जीवों में उत्कृष्ट
मानव में
भावनाएँ
सम्वेदनाएँ
प्रवाहित होती रहती है
अनवरत
मानव
चाहता है
समेटना
इच्छाओं को
आकांक्षाओं को
कलम पकड़
सृजन की पीड़ा से
तड़पता है
झेलकर
कष्ट
दर्द
आह
तब
जन्मती है
कविता
पुस्तक में
संग्रहित होती हैं
कविताएँ
खरीददार
एक भी नही
प्रकाशित पुस्तक
आलमारी की
सेल्फ में पड़ी
निहारती है
स्वार्थ की
लिप्सा में लिपटे
मानव को
जिसकी चाहत है
भेंट में मिल जाए पुस्तक
अर्थ का अभाव
नहीं रहने पर भी
खरीद कर पढ़ना नहीं चाहते
वाह रे
विधि का विधान
पुनः जुट जाता है
सृजन में
सबकुछ जानते हुए
इसकारण कि
जीना चाहता
निरंकुश
सृजन कर
इस छलनापूर्ण समाज में
उलझकर।
★★★
© #कामेश्वर_निरंकुश
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