आज बहुत खुश हैं
खुश क्यों न हों
उनके बाबा भी खुश हैं
देखकर अपनी
आंगन की गौरैया को
नाम की महिमा को
साकार कर दिया
अपने आंगन में
मुक्ति ने।
नामकरण संस्कार में
रखे गए नाम की
एक गरिमा होती है
ईश्वर की अद्भुत महिमा होती है
एक एक शब्द पिरो कर
अपनी भावनाओं को
संवेदनाओं को
कविता के रूप में
परोस दिया है
पुस्तकाकार में
जिसमें समाहित है
परिवेश की सारी स्थितियां
बदलते ऋतु रंग की परिस्थितियां
समेटकर
सहेज कर
जीवन के कैनवास पर उकेर कर
श्री श्री जगन्नाथ जी के समक्ष
मेरी आत्मा को
आज मिल गई
मुक्ति
मेरी ही लाड़ली, प्यारी,
गौरैयामुक्तिं के द्वारा।
धन्य हुआ मै
......अरे हां !
मैंने देखा है उसे
बचपन से ही
अपने पंख को फैलाकर
मेरी खुशी के साथ साथ
परिवार के सदस्य तक ही नहीं
आस पास के सभी के प्रति
स्नेह लुटाती, मुस्कुराती, इठलाती
अपनी गौरैया को।
उसी का तो परिणाम है
प्रातः की बेला में
सुनहरी रश्मियां विकीर्ण कर
प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित होकर
आईं यह पुस्तक
" आंगन की गौरैया "।
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