बनी रहे
यह रूप
यह लावण्य
यह आकर्शन
यह सुंदरता
खिलती रहे
यह जवानी
बढ़ती रहे
यह नादानी
देखता रहूं
सुनहरे लहराते
ये केश
भाता रहे
पीले रंग का
कानों पर झूलता
यह चमकता
लटकता कनबाली
और गॉगल्स भी
नहीं सम्भाल पा रहा
आंखों के खूबसूरती को
छिपाना तभी तो
चढ़ गया है
चिपक कर गेसुओं पर
सचमुच तुम अप्सरा हो
देखकर
कौन नहीं चाहे
तेरे सुर्ख लाल
होठ को चूमना
मखमली गुलाबी गाल
सहलाना
तुम्हारी मस्त
मजेदार देह तक
तुम्हारे करीब आना
तुम पर सबकुछ
लुटाना
तुम्हें देखकर
अपना सर्वस्व लुटाना
तुम क्या नहीं हो
तुम बहुत कुछ हो
जाे न कोई शायद
कह पायेगा
सचमुच
निःश्ब्द हो जायेगा
मेरी सबकुछ...!
***
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