Monday, 10 August 2020

चाहत



बनी रहे
यह रूप
यह लावण्य
यह आकर्शन 
यह सुंदरता
खिलती रहे 
यह जवानी
बढ़ती रहे
यह नादानी
देखता रहूं
सुनहरे लहराते
ये केश
भाता रहे
पीले रंग का
कानों पर झूलता
यह चमकता
लटकता कनबाली
और गॉगल्स भी
नहीं सम्भाल पा रहा
आंखों के खूबसूरती को
छिपाना तभी तो
चढ़ गया है
चिपक कर गेसुओं पर
सचमुच तुम अप्सरा हो
देखकर 
कौन नहीं चाहे
तेरे सुर्ख लाल
होठ को चूमना
मखमली गुलाबी गाल 
सहलाना
तुम्हारी मस्त
मजेदार देह तक
तुम्हारे करीब आना
तुम पर सबकुछ
लुटाना
तुम्हें देखकर
अपना सर्वस्व लुटाना
तुम क्या नहीं हो
तुम बहुत कुछ हो
जाे न कोई शायद
कह पायेगा
सचमुच
निःश्ब्द हो जायेगा
मेरी सबकुछ...!
   ***

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