Tuesday, 11 August 2020

एक दूसरे पर

प्यार
लगाव
अपनापन
बढ़ता जाता है
किसी और के खातिर
कुछ न कुछ
करने की ललक
सीमा लाँघकर भी
अपना होंने के कारण
उसे अपना समझने के कारण
विश्वास था मुझे
और उसे भी
एक दूसरे पर
फिर
दुराग्रह क्यों
अविश्वास क्यों
एक ही झटके में
सब का सब
चूर चूर
क्या इसकी कड़ी
इतनी कमजोर
सत्यता जानने हेतु
दिल और दिमाग पर
अगर लगाते जोर
सामने दीख पड़ता
अविश्वास का बना हुआ
पहाड़
स्वयं पर 
अपनी सोच पर
आस्था
विश्वास 
करना ही होगा
अपना अगर झूठ भी
कभी कभार बोल दे
तो उसने छिपी होती है
भलाई
हित
उसी की खातिर
जिसे चाहा है
माना है
हृदय से
सच्चे मन से
अपना मानकर
सबकुछ तुम्ही हो
यही जानकर !
     ★★★
©  °#कामेश्वर_निरंकुश

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