Friday, 18 November 2016

और हम हैं



हर  तरफ़ खामोशियाँ हैं और  हम  हैं।
अँधेरी    बस्तियाँ      हैं  और  हम  हैं।।

साथ   कोई  हो  न   हो   अपना  यहाँ,
बेवजह    मस्तियाँ    हैं  और  हम  हैं।।

कलम कागज़ और  सियाही  खून की,
गीत  ग़ज़ल रुबाइयाँ हैं  और  हम  हैं।।

रस्में - इन्सां  और मज़हब है रिवाजों में
बस  वही  बैसाखियाँ हैं  और  हम  हैं।।

सुलझा न पाया लाख कोशिश की यहाँ
उलझी  हुई  गुत्थियाँ हैं  और  हम  हैं।।

इसको  कहूँ  मैं बदनसीबी या  'निरंकुश'
यह  हमारी  गलतियाँ हैं  और  हम  हैं।।
                                  ---  निरंकुश ।

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