होली में रंग गुलाल के बदले
मोबाइल लिए कवि निरंकुश निकले
चित्रांश परिवार में आए
मोबाइल की स्थिति सुनाए
... .. *अब सभी सम्वेदनाएँ
हथेली में धँस रही है,
बाजार की शक्तियों
शिकंजा कस रही है,
एसएमएस के जरिये
भावनाएं बह रही है,
वर्जनाओं की चट्टानें
रेत बन ढह रही है
टॉवर, टॉवर बड़ा और आदमी
छोटा होता जा रहा है।
सच मानिए मोबाइल कहीं कहीं
घिनौना होता जा रहा है।।
★★★
© #कामेश्वर_निरंकुश
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