Sunday, 19 February 2017

अक्षर

अक्षर ब्रह्म है
अक्षर अक्षर साथ मिलकर
बनते हैं शब्द
शब्द शब्द एकजुट हो
वाक्य में ढल जाता है
वाक्य अनुभूति को
आरम्भ से श्रीइति तक
जन-जन के हृदय में ले आता है
सद्ग्रन्थ यही दर्शाता है
मन ग्रंथियाँ खुलती हैं
पवित्र हो जाती हैं
क्षीण हो जाता है विकार
साहित्य में वर्णित
भूत में घटित
भविष्य में कोई न हो चकित
हृदय में अंकित होता साकार
साकारता नए आकार की
आकार ज्ञान- विज्ञान का
सज्ञान है नव-विहान का
यही आकार
लौकिक वितर्क से परे
हृदय में करता दीप प्रज्जवलित
टीम स्वतः तिरोहित होकर
ज्योतिपुंज बनकर
दर्शनाभिलाषी
प्रभु अविनाशी
परमेश्वर की महिमा बताता है
ब्रह्म के स्वरूप को दर्शाता है
अक्षर यही तो दर्शाता है।
             *****
       @   #   कामेश्वर निरंकुश।

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