Saturday, 7 January 2017

प्रेम



प्रत्येक व्यक्ति की
निर्धारित है नियति
उसे मिलती है
प्रकृति की भी
निराली होती छटा
मरुस्थल
रेत ही रेत
नदियां
जल ही जल
मन होता है विह्वल
कहीं धूुप कहीं छाँव
कौन जाने कहाँ  है
किसका ठांव
कभी अंधकार
कभी उजाला
कहीं खारा जल
कहीं निर्मल गंगाजल
एक समय ऐसा आता है
जहाँ फर्क नहीं दिखता
दुःख और सुख का
तब होता है ज्ञात
प्रेम क्या यही है
प्रेम समझना आसान है
 प्रेमी के लिए
बहुत मुश्किल
दुरुह कष्टप्रद
आज के माहौल में।
     #  कामेश्वर निरंकुश।

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